किसी भी सेक्युलर पार्टी ने नहीं ली सुध, विकास की राह में आज भी पीछे खड़ा पसमांदा मुसलमान
देश में काफी समय से कोई जनगणना नहीं हुई है. हाल में बिहार में जाति आधारित जनगणना हुई है. बिहार में हुए जातिगत जनगणना में पाया गया है कि 100 में से 80 फीसद पसंमादा मुसलमान है. देश में करीब 17 प्रतिशत मुसलमान है. उसमें भी अगर देखा जाए तो करीब 80 फीसद के आसपास पसमांदा मुसलमान मिलेंगे. देश में ऐसे कई मामले मिलेंगे जिसमें पाया जाता है कि जो पसमांदा नहीं है वो पसमांदा समुदाय में घुसे हैं. जबकि कुछ लोग बड़े समाज में दिखने के लिए खुद को पसमांदा से दूर किया है. अपने नाम के साथ टाइटल लगाकर खुद को ऊंचा दिखाने की कोशिश करते हैं.
देखा जाए तो जिस प्रकार से हिंदू समाज है ठीक उसी प्रकार से मुस्लिम समाज भी है. शायद ही ऐसी कोई जाति होगी जो हिंदुओं में हो और मुसलमानों में ना हो. पसमांदा को देखा जाए तो सीधे तौर पर उसे दलित मुसलमान की श्रेणी दी जा सकती है. मुसलमानों में करीब एक दर्जन से अधिक ऐसी जातियां है जो पसमांदा समाज के अंतर्गत आते हैं. हिंदू दलित से भी सबसे अधिक हाल खराब पसमांदा मुसलमानों का है. ये जानकारी तो सिर्फ बिहार के जातिगण जनगणना के आधार पर आई है. एक अनुमान लगाया जाए तो पूरे देश के मुसलमानों का भी यही हाल होगा.
भाजपा की नहीं गलने वाली है दाल
सबसे पहले हैदराबाद के सीएससी बैठक में भाजपा ने पसमांदा समुदाय की बात की. उसके बाद से पसमांदा को न्याय दिलाने के लिए यात्रा भी निकाली गई. उसके बाद ये बातें दिल्ली में भी दोहराई गई. भोपाल में भाजपा ने यहां तक कहा कि मुसलमानों में भी एक तबका ऐसा है जिनको मुसलमानों समाज भी उसको अछूत समझता है और उसको उसका हक नहीं देता. इसके लिए उन्होंने सेक्यूलर पार्टियों को जिम्मेदार माना. भाजपा के ऐसे बातों से मुसलमानों के पसमांदा के वोट में सेंध मारने की बू आती है. मुसलमान कभी बीजेपी को वोट नहीं करता.
भाजपा की ये चाह है कि असराब और पसमांदा यानी की अगड़ी और पिछड़ी करके पसमांदा के वोट को अपने पक्ष में किया जाए. इसके लिए भाजपा ऐसा काम कर रही है. ये सिर्फ मुसलमान में विवाद कराने के लिए किया गया था. लेकिन ये बात पहले की है. इस चुनाव में ये बातें भाजपा की ओर से कहीं भी नहीं कही जा रही है. चुनाव में तो सीधा मुसलमानों के खिलाफ में भाजपा बोल रही है. पूरी तरह से चुनाव को हिंदू बनाम मुसलमान कर दिया है. भाजपा को ये लग चुका है कि मुसलमानों को आपस में लड़ाने का कोई फायदा नहीं है. आखिरकार मुसलमानों का वोट सेक्यूलर पार्टियों को ही जाएगा. मोदी भाईजान के नाम से एक अभियान शुरू किया था, बाद में वो कामयाब ना हुआ तो उसे बंद कर दिया गया.
आजादी के समय से संघर्ष
पसमांदा समाज ऐसा है जो हिंदूओं के साथ साथ मुसलमान के खिलाफ रहते हैं. ओवैसी की पार्टी सभी मुसलमान को एक करने की बात करती है. जिस तरह से ही भाजपा सभी हिंदुओं को एकजुट करने की कोशिश करती है. आजादी के समय देखा जाए तो 1940 में दो देश करने के मामले को लेकर भी पसमांदा समुदाय खिलाफ था. उस समय पसमांदा की जगह मोमीन शब्द का इस्तेमाल किया जाता था. 1998 में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के नाम से जब संगठन बनाया गया तब से पसमांदा शब्द प्रचलन में आया.
ऐसे में भाजपा को एक पसमांदा काफी प्रचलित शब्द मिल गया उसके बाद उसमें सेंध लगाने की कोशिश की. पसमांदा में सिर्फ एक नहीं बल्कि कई जातियां निहित हैं. पसमांदा कोई जाति और धर्म नहीं है. जो गरीब और दलित है उसी को उर्दू में पसमांदा कहा जाता है. चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने ऐसा कोशिश की थी, लेकिन चुनाव में ऐसा अभी तक कुछ नहीं बोला है. अभी चुनाव में अंदरखाने क्या हो रहा है ये कहना थोड़ा जल्दबाजी होगी. भाजपा वालों ने अपना पसमांदा मुस्लिम महाज के नाम से एक संगठन बनाने की कोशिश किया था, लेकिन उसमें वो फेल हो गए. भाजपा को अब ये लग चुका है कि उनका इसमें दाल गलने वाला नहीं है.
सरकार ने भी नहीं दिया ध्यान
पसमांदा समुदाय खुद से पीछे नहीं छूटा बल्कि उसको पीछा छोड़ा गया. पसमांदा शब्द का अर्थ ही ये होता है कि जिसको पीछे ढ़केल दिया गया हो और वो थक हार के बैठ गया हो. पसमांदा को मानसिक रूप से पीछे किया गया. आज तक किसी सेक्यूलर पार्टियों ने भी शुद्ध रूप से पसमांदा समुदाय की बात नहीं की. वो सिर्फ मुस्लिम समुदाय की बात करते रहते हैं. आज तक पसमांदा समुदाय के हक के लिए लड़ाई नहीं लड़ा है. पसमांदा की मांग तो सीधे सरकार से है कि पसमांदा समुदाय पर ध्यान दिया जाए.
सरकार को बताया गया है कि जिस तरह से हिंदू जातियों में शेड्यूल कास्ट है उसी तरह से मुस्लिम जातियों में भी शेड्यूल कास्ट है. आखिरकार सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा की कमेटी ने ये बात माना है लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार ने उसे लागू नहीं किया. मुसलमान समुदाय में जो अग्रणी जातियां है उनके डर से सरकार ने ये लागू नहीं किया और उनके डर से ही सेक्यूलर पार्टियां भी खुलकर कभी भी पसमांदा समुदाय की बात नहीं करती है. गरीब कहकर दूसरे रास्ते से निकल जाते हैं. पसमांदा समुदाय को हर जगह सांप्रदायिकता और गरीबी को झेलना पड़ता है. पसमांदा समुदाय ओवैसी द्वारा मुसलमानों को इकट्ठा करने की भूमिका और बीजेपी द्वारा सभी हिंदुओं को इक्ट्ठा करने दोनों की रणनीतियों को गलत ठहराता है.
राजनीतिक गलीयारे से भी रखा गया दूर
पसमांदा एक तरह से सामाजिक सुधार का आंदोलन है. ईश्वर ने किसी को छोटा नहीं बनाया है पहले इस मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है. कुरान और हदीस नहीं है और पैगंबर के विचारों में भी ये नहीं है. सरकार से ये मांग है कि दबंग और अग्रणी जातियों ने पीछे किया है उसपर ध्यान दिया जाए. बिहार में जितने भी टिकट का बंटवारा होता है उसमें पसमांदा मुस्लिम को एक भी टिकट नहीं दिया जाता है. चाहें वो विधानसभा, लोकसभा और विधानपरिषद या फिर राज्यसभा का चुनाव हो. हालांकि भाजपा की ओर से तो मुसलमानों को टिकट नहीं दिया जाता है. बीजेपी को छोड़कर दूसरे सेक्यूलर पार्टियां पसमांदा समुदाय को टिकट नहीं देते. पहले पसमांदा समुदाय की वोट साधने के लिए मोदी मित्र योजना लाया गया बाद में उसे मोदी भाईजान का नाम दिया गया.
लेकिन आखिरकार ये कामयाब नहीं हुआ. मॉब लिचिंग, लव जिहाद, घर वापसी और गौ हत्या के नाम पर बुलडोजर पसमांदा समुदाय के घरों पर चलता है. मॉब लिंचिंग की घटना में 95 प्रतिशत पसमांदा मुस्लिमों की जान जाती है. किसी अमीर या फिर अग्रणी जातियों के मुसलमान के घरों पर बुलडोजर नहीं चलता है, सिर्फ गरीब के घरों पर ऐसी कार्रवाई होती है. सीएए और एनआरसी का जो मामला है उसमें सबसे अधिक चपेट में पसमांदा समुदाय आएंगे. कोई भी अमीर या अग्रणी जाति का मुसलमान इसकी जद में नहीं आएगा. जिस परिवार में शिक्षा नहीं है और गरीब है उनके यहां कागजात आदि कहां होंगे. कुल मिलाकर देखें तो बीजेपी की चालाकी में कोई भी पसमांदा समुदाय नहीं आने वाला है.
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