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अप्रवासी भारतीय दिवस: 'पंछी पिंजरा तोड़ के आजा, देश पराया छोड़ के आजा'
![अप्रवासी भारतीय दिवस: 'पंछी पिंजरा तोड़ के आजा, देश पराया छोड़ के आजा' Non resident Indians Day nri day gdp indians pravasi bharatiya government of india ministry of external affairs अप्रवासी भारतीय दिवस: 'पंछी पिंजरा तोड़ के आजा, देश पराया छोड़ के आजा'](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/01/09/ad3439f1af7fcb15227fd61b4b675acb1673228296235142_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
साल 1982 में एक फ़िल्म आई थी- "नाम" उस फ़िल्म में पंकज उधास की गाई हुई एक ग़ज़ल ने इस देश के उन मां-बाप को रोने पर मजबूर कर दिया था जिनके बेटे सिर्फ पैसा कमाने की ख़ातिर उनके साथ ही अपना वतन भी छोड़ गए थे. आज यानी 9 जनवरी को हमारे देश में प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है. इतने सालों में बहुत कुछ बदला है और शायद आगे भी बहुत कुछ बदलेगा लेकिन कहते हैं कि जो वृक्ष अपनी जड़ों से कट जाता है, उसकी लकड़ी का इस्तेमाल सिर्फ आग जलाने के काम ही आता है.
इसलिए सवाल ये नहीं है कि प्रवासी भारतीय आज कितना पैसा कमा रहे हैं और कितना अपने घर भेज रहे हैं, बड़ी बात ये तलाशने की है कि वो हमारे वतन की सभ्यता-संस्कृति और सिद्धान्तों के साथ क्या वैसे ही जुड़े हुए हैं जिसका राग अलापने और ढोल पीटने में हमारा संघ सबसे आगे रहता है. इस सच से कोई भला कैसे इनकार करेगा कि गाने वाले से बड़ा उन शब्दों को अपनी लेखनी में पिरोने वाला लेखक ही बड़ा कहलाता है. बेशक उसको नाम-सम्मान नहीं मिलता लेकिन फिर भी उसके लिखे शब्द ही अमर बन जाते हैं.
दावा किया जा रहा है कि प्रवासी भारतीय हमारी अर्थयव्यवस्था की एक मजबूत रीढ़ बन चुके हैं जो हर साल हमारी GDP को बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं. बेशक ऐसा हो भी रहा है लेकिन फिर बड़ा सवाल ये उठता है कि अगर देश की GDP में सिर्फ इनकी ही बदौलत बढ़ोतरी हो रही है तो फिर हमारी सरकार आखिर क्या कर रही है और वो किन मोर्चो पर असफल हो रही है कि उसे इन अप्रावासी भारतीयों की कमाई से देश में आ रहे पैसों पर ही पूरा भरोसा है कि वे देश की आर्थिक सेहत दुरुस्त कर देंगे. अगर वे कर भी रहे हैं और आगे करते भी रहेंगे तब भी सवाल ये उठता है कि सरकार को अपनी विदेशी मुद्रा का भंडार भरने के लिए क्या सिर्फ इन पर ही निभर रहना चाहिए और विदेशी व्यापार के नए रास्ते तलाशने पर ध्यान आखिर क्यों नहीं देना चाहिए.
एक मोटे अनुमान के मुताबिक करीब 3 करोड़ भारतीय अप्रावासी हैं जो दुनिया के सौ से भी ज्यादा मुल्कों में रहते हुए खुद के लिए तो पैसा कमा ही रहे हैं लेकिन भारत में अपने घर-परिवार के लिए भी विदेशी मुद्रा में पैसा भेज रहे हैं. बीते साल भारत से बाहर रहने वाले प्रवासियों (Migrants) ने भारत में रिकॉर्ड स्तर पर पैसा भेजा है. कहा जा रहा है कि इससे एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को एक नया बूस्ट मिलेगा. ब्लूमबर्ग के अनुसार, भारत दुनिया में सबसे अधिक रेमिटेंस (remittance) का पैसे भेजे जाने वाला देश बनने की कगार पर है. इस साल भारत में वित्त प्रेषण ( Remittance) का बहाव 12% अधिक रहा है. बीते दिसंबर में प्रकाशित हुई वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इस साल करीब $100 अरब का रेमिटेंस बढ़ा है. इससे भारत मैक्सिको, चीन और फिलिपीन्स में आने वाले पैसे की तुलना में कहीं आगे बढ़ गया है.
गौर करने वाली बात है कि अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर जैसे अमीर देशों में भारत के कुशल कामगार प्रवासी रहते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, यह समूह अब भारत में अधिक पैसा भेज रहा है. पिछले कुछ सालों में भारतीय गल्फ देशों में कम तनख्वाह वाले काम से दूर हटे हैं. सैलरी बढ़ी है, रोजगार बढ़ा है और रुपया कमज़ोर हुआ है. यही वजहें रेमिटेंस में बढ़त का कारण बनी हैं. दुनिया के सबसे बड़े डायस्पोरा से आने वाला पैसा भारत के लिए कैश का एक बड़ा स्त्रोत है. भारत ने पिछले साल अपने विदेशी मुद्रा खाते से करीब 100 बिलियन डॉलर खो दिए थे. रेमिटेंस ( Remittance) भारत की कुल जीडीपी (gross domestic product) का 3 प्रतिशत है. यह भारत के वित्तीय घाटे को भरने में भी मदद करता है.
शायद यही सबसे बड़ी वजह है कि पिछले दो दशक में आई हमारी हर सरकार ने अप्रावासी भारतीयों की कमाई से अपना खजाना तो भरा लेकिन किसी ने आज तक उनसे ये कहने की हिम्मत नहीं जुटाई, जो पंकज उधास ने अपनी गज़ल के जरिये कह डाली थी- "मैं तो बाप हूँ ,मेरा क्या है, तेरी माँ का हाल बुरा है, तेरी बीवी करती है सेवा, सूरत से लगती हैं बेवा, तूने पैसा बहुत कमाया, इस पैसे ने देश छुड़ाया, पंछी,पिंजरा तोड़ के आजा, देश पराया छोड़ के आजा, आजा उमर बहुत है छोटी, अपने घर में भी है रोटी."
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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