'दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए भारत-पाकिस्तान के रिश्तों का सामान्य होना जरूरी'
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेंशन (SCO) की विदेश मंत्रियों की बैठक मई में गोवा में होनी है. इसमें शामिल होने के लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी के नेतृत्व में पाकिस्तान की एक उच्च स्तरीय टीम भारत आएगी. चूंकि पाकिस्तान के साथ पिछले कुछ वर्षों में हमारे रिश्ते सामान्य नहीं रहे हैं. ऐसे में यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के डेलिगेशन टीम के आने से दोनों देशों के बीच के वर्तमान रिश्ते सामान्य होने की संभावना है.
हमें सबसे पहले यह समझना चाहिए कि रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. लेकिन हम अपना भूगोल नहीं बदल नहीं सकते हैं. हमारा जो दक्षिण भारत का क्षेत्र है इसमें चीन और बांग्लादेश बहुत महत्वपूर्ण है. चीन के साथ हमारा बहुत लंबा बॉर्डर भी है और ट्रेड भी बहुत बड़ा है.
पिछले 10-12 सालों में पाकिस्तान के साथ रिश्ते उतने अच्छे नहीं रहे थे जितने की होने चाहिए. लेकिन हमारा संबंध चीन और पाकिस्तान के साथ सामान्य होना बहुत जरूरी है. ये जितना अच्छा होगा, सामान्य होगा उतना ही बेहतर होगा. शांति का वातावरण बने ये सभी के हित में होगा. इसलिए पाकिस्तान के जो विदेश मंत्री बिलावल जरदारी और उनके साथ जो टीम एससीओ काउंसिल ऑफ मिनिस्टर की बैठक में शामिल होने आ रही है, उनका हमें स्वागत करना चाहिए. जितना भी लंबा सफर है उसे हमें निभाना होगा चूंकि हमें इनके साथ ही रहना है.
ये हमें भी सोचना चाहिए कि जब फ्रांस और जर्मनी एक साथ सामान्य रिश्तों को निभाते हुए रह सकते हैं तो हम पाकिस्तान के साथ क्यों नहीं रह सकते हैं. हमारा बांग्लादेश के साथ संबंध ठीक-ठाक है. पाकिस्तान के साथ भी कभी न कभी हमें अपने रिश्ते सामान्य करने पड़ेंगे. मसलों को लेकर विवाद और अन्य मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाना ये सभी देशों के बीच चलते रहता है. हर स्टेट के जीवन में आता है. लेकिन स्टेट्समैनशिप यही होता है कि हमें ये सब भूलकर आगे बढ़ना होता है. हम आगे अपने संबंधों को कैसे बढ़ाएं इस पर काम करना होता है. इसलिए यह मीटिंग बहुत ही महत्वपूर्ण है. ये अपने आप में आईस ब्रेकिंग भी है. इसी तरह धीरे-धीरे हम चलेंगे और अपने बीच जो भी विवाद हैं उनका हल हम बातचीत के माध्यम से ही निकाल पाएंगे.
पाकिस्तान की जो अंदरूनी राजनीति है वो यह है कि भारत के खिलाफ और जम्मू-कश्मीर के मसले पर उन्हें बोलने की राजनीति है. हालांकि उसमें भी एक लिमिट है. चूंकि अगर वहां पर भारत के खिलाफ वे नहीं बोलेंगे तो बाकी जो राजनीतिक दल हैं वो कहेंगे कि आप सब लोग मैदान छोड़कर भाग रहे हैं. चाहते हुए भी राजनीतिक परिदृश्य जो किसी भी देश की होती है उसमें एक सीमा निर्धारण हो जाता है और उसके बाहर वे नहीं जा सकते हैं. लेकिन यह एक उनका दिखावा है. लेकिन जो सच्चाई है वो यह कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान जब ट्रेड करेंगे और उसे बढ़ावा देंग तो इसमें दोनों को बहुत फायदा होगा. हमें यह देखना चाहिए कि दोनों के लिए विन-विन परिस्थिति कहां है. बाकी जो विवाद के मसले हैं उसे हमें पीछे रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए.
चूंकि जो विवादित मुद्दे हैं, उन्हें सुलझाने के लिए हमें इंतजार करना होगा. लेकिन मुझे लगता है कि हमें यह देखना होगा कि हमें जिन क्षेत्रों में आगे बढ़ने से फायदा होगा उसी में आगे बढ़ना चाहिए. अगर दोनों देश संभावित क्षेत्रों में आगे बढ़ेंगे तो विवाद के मसलों का भी निपटारा होते चला जाएगा. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में बस चली, कश्मीर की यात्रा हुई और रिश्ते सामान्य हुए थे. उसका आउटकम भी अच्छा ही रहा था. इसलिए हमें जो पुराने दिग्गज लोगों ने दिशा दिखाई है उसी को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना होगा. मेरा यही मानना है कि हम अपना भूगोल तो नहीं बदल सकते हैं लेकिन हम अपने रिश्तों को जितना सामान्य रखेंगे उतना ही बेहतर होगा. इससे दोनों देशों और पूरे साउथ एशिया में शांति और स्थिरता बनी रहेगा.
हमारी जो विदेश नीति है उसमें शुरुआती दौर से ही एक पैटर्न रहा है. मोदी सरकार के आने के बाद से कुछ और चीजों को आगे बढ़ाया गया है. कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर उन्होंने कश्मीर को एक नई दिशा दिखाई है. अभी तक कोई भी सरकार इस बेसिक सिद्धांत से पीछे नहीं हटी है कि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग नहीं है. इसका मतलब है कि देश इस मसले पर सहमत है, एकमत है. हिंदुस्तान की जो परिभाषा है, जो मैप है वो एक दफा बन गया सो बन गया और उसके साथ हम कभी भी कॉम्प्रोमाइज नहीं करेंगे. ये सभी देशों को पता है.
भारत कोई छोटा-मोटा देश नहीं है कि कोई वाकओवर कर ले. मुझे लगता है कि इन बातों को ध्यान में रखकर ही आगे भी लोग चलेंगे. सभी को पता है कि भारत एक आर्थिक और सामारिक तौर पर उभरती हुई शक्ति है. इसलिए सारी समस्याओं को पीछे छोड़ते हुए हम पाकिस्तान के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार..इन सभी एरिया में इंगेजमेंट बढ़ा सकते हैं और ये हमारे लिए विन-विन परिस्थितियां होगी.
हमें अपने जो रिश्ते बनाने होते हैं वो दो-तीन लेवल पर होता है. पहला यह कि हमने पहले ही दुनिया को यह बता दिया है कि हम आतंकवाद के मुद्दे पर अपनी नीतियों से कोई समझौता नहीं करेंगे. आतंकवाद के लिए हिंदुस्तान में कोई जगह नहीं है. पाकिस्तान से भी जो आतंकवाद भारत आएगा उसे हम रोक पाने में सक्षम हैं. हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि कश्मीर और पाकिस्तान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह चाहते हैं कि पाकिस्तान और भारत के आपसी रिश्ते सामान्य नहीं हो और हमें भी यह बात पता है. लेकिन हमें अपनी सुरक्षा के इंतजाम को ठीक रखते हुए पाकिस्तान के साथ आगे बढ़ना चाहिए.
(ये निजी विचारों पर आधारित आर्टिकल है)