Norway Election: दुनिया का एक छोटा-सा लेकिन बेहद खूबसूरत मुल्क है नॉर्वे. आर्कटिक सर्किल में बसे नॉर्वे को Land of the Midnight Sun यानी 'मध्यरात्रि के सूर्य का देश' कहा जाता है. क्योंकि यहां साल में 76 दिन सूरज कभी नहीं डूबता है. कुदरत का ये नज़ारा देखने के लिए महज़ 53 लाख की आबादी वाले इस देश में दुनिया भर के पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है. लेकिन यहां बात करते हैं नॉर्वे की उस राजनीति की जहां संसदीय चुनाव के नतीजों ने बड़ा उलटफेर करते हुए पिछले आठ साल से सत्ता पर काबिज़ कंजरवेटिव पार्टी को बाहर का रास्ता दिखा दिया है.


लगता है कि नॉर्वे और दिल्ली के लोगों की राजनीतिक समझ में कोई ज्यादा फर्क नहीं है. वजह ये है कि जिस आम आदमी का नारा देकर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सत्ता में आये, ठीक उसी तर्ज पर वहां अब सत्ता संभालने वाली लेबर पार्टी के नेता जोनस गहर स्टोर ने भी 'आम आदमी' का ही नारा दिया था. हालांकि खुद वे अरबपति हैं लेकिन अब वे देश के नए प्रधानमंत्री होंगे. अपने जीने के बिंदास अंदाज़ से वे कहीं से भी आम आदमी नहीं लगते लेकिन उनके इस स्लोगन का इतना असर हुआ कि लोगों ने उन्हें देश की कमान ही सौंप दी.


करीब साढ़े चार लाख हिंदुओं की आबादी वाले नॉर्वे की 169 सदस्यों वाली संसद के आम चुनाव हर चार साल में होते हैं. लेकिन वहां बहुदलीय शासन प्रणाली वाली व्यवस्था है. यानी कोई एक पार्टी अकेले सत्ता हासिल नहीं कर सकती, उसे अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करना ही होता है. सोमवार को हुए चुनाव के नतीजे मंगलवार को घोषित हुए जिसमें सेंटरिस्ट और वामपंथी दलों के गठबंधन को काफी बढ़त मिली और उन्होंने कुल 169 सीटों में से अपनी मौजूदा 81 सीटों में इजाफा करते हुए सौ सीटें जीत ली हैं. पिछले आठ साल से सत्ता पर काबिज़ प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग के नेतृत्व वाले मौजूदा कंजर्वेटिव-लिबरल गठबंधन को भारी झटका लगा और सोलबर्ग ने अपनी हार मान ली है.


नॉर्वे के चुनाव प्रचार का सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि  पूरे अभियान में एक ऐसे नेता ने आम आदमी का नारा दिया जो उनकी निजी जिंदगी के बिल्कुल उलट है. हालांकि ऐसा नहीं हो सकता कि जनता को ये भी पता न हो कि वे खुद डेढ़ करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज्यादा की संपत्ति के मालिक हैं. 61 बरस के स्तोर का चुनाव अभियान नॉर्वे में असमानता दूर करने के नारे पर आधारित था. उन्होंने देश में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई का मुद्दा उठाया. वैसे विकसित देशों में नॉर्वे सबसे समान समाजों में से एक है लेकिन अब तक सरकार में रही दक्षिणपंथी पार्टी के शासनकाल में देश में अरबपतियों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है.


अपने अभियान के दौरान स्तोर ने बार-बार कहा, "अब आम लोगों की बारी है.” जब मीडिया ने उनके धनी होने पर सवाल उठाए तो उन्होंने सफाई देते है कहा कि "मेरी दौलत साधारण नहीं है लेकिन मेरी बहुत सी बातें साधारण हैं." उनकी जीत से ये पता लगता है कि यूरोप के समृद्ध देशों की जनता अपने नेता के धनी होने को हिकारत की नज़र से नहीं देखती और उसके वादों पर भरोसा भी कर लेती है.


तीन बच्चों के पिता स्तोर कई मायनों में खानदानी विरासत के मालिक हैं. उनकी दौलत का मुख्य स्रोत स्टोव बनाने वाली उनकी पारिवारिक कंपनी को बेचने से मिला धन है. इस कंपनी को कभी उनके दादा ने दीवालिया होने से बचाया था.


वैसे राजनीति भी स्तोर को विरासत में मिली है. पूर्व प्रधानमंत्री येन्स स्टोल्टेनबर्ग सिर्फ उनके मित्र ही नहीं, मार्गदर्शक भी रहे हैं और कह सकते हैं कि उनके नक्शेकदम पर चलकर ही स्तोर आज प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे हैं. स्टोल्टनबर्ग सरकार में वह 2005 से 2012 के बीच विदेश मंत्री और फिर 2012-13 में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं. वे सरकार चलाने के तौर तरीकों से पूरी तरह वाकिफ हैं.


साल 2014 में उन्हें जब लेबर पार्टी का प्रमुख बनाया गया था, तो पार्टी में ही ये फैसला कुछ लोगों के गले नहीं उतरा था. उनका मानना था कि ये कैसा अजीब विरोधाभास है कि मजदूरों-कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी की कमान एक अरबपति के हाथों में सौंप दी जाए. लेकिन अब तो इसे और भी बड़ा विरोधाभास ही माना जायेगा कि लोगों ने पूरे मुल्क की कमान ही उन्हें दे डाली. 


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