दिल्ली की हवा हमेशा की भाँति इस साल जाड़े के मौसम के शुरुआत के साथ से ही राष्ट्रीय सुर्खियां बटोर रही है. दीवाली के बाद तो वायु-प्रदूषण के तमाम आंकड़े भयावह हो गए हैं. वायु प्रदूषण सूचकांक (एक्यूआई) के आंकड़ो पर नजर गड़ाये रहना इस साल दिल्ली वालो के लिए सोशल मीडिया के साथ-साथ एक नया शगल हो गया है. बिना दीर्घकालिक योजना के इस बार भी वायु प्रदूषण का सारा विमर्श पराली से निकले धुएं और उसके निस्तारण के तमाम तरीके पर केन्द्रित हो चुका है. पंजाब और हरियाणा की सरकारे नासा के आग के आंकड़ों से खुद को पाक-साफ साबित करने में लगे हैं.
तात्कालिक उपायों पर केंद्रित है विमर्श
वायु प्रदूषण से बचाव के जितने भी तात्कालिक उपाय हो सकते हैं, चाहे वो दिल्ली की परिस्थिति में कारगर हो, ना हो यहां तक कि ख्याली ही क्यों ना हो, उन सब पर शिद्दत से बातचीत हो रही है, जिसमें दिल्ली सरकार द्वारा प्रायोजित सूक्ष्मजीव वाला चमत्कारिक तरल, जो चुटकियों में पराली को खेत में खाद बना देगा, भीमकाय स्मॉग टावर, घर के लिए हवा को साफ करने वाली मशीन आदि शामिल हैं. इस बार तो चीन के क्लाउड सीडिंग से हवा के जहर से तात्कालिक निजात पाने की युक्ति तक बात पहुँच चुकी है और आनन- फानन में दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने तक की कवायद पर बात चल पड़ी है. दिल्ली हर लिहाज से वायु प्रदूषण के लिए मुफीद शहर है, यानी यहां की भौगोलिक, मौसम सम्बन्धी और मानवीय गतिविधियां वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ाने के लिए व्यवस्थित है. दिल्ली का भूगोल भी प्रदूषण त्रासदी के मूल में है. दिल्ली जमीन से घिरा,अरावली पर्वत के साथ हिमालय से 300 किमी की दूरी पर बसा है. इस कारण दिल्ली गर्मी में अधिक गर्म और सर्दी में अधिक सर्द हो जाती है. बरसात के बाद, सर्दी की शुरुआत के साथ तापमान तेजी से नीचे गिरने लगता है.
दिल्ली की हवा में प्रदूषण का विस्तार और उसकी सांद्रता हिमालय की नजदीकी से भी प्रभावित होती है. हिमालय पर्वत हवा में जमा हो रहे धुंए को दिल्ली की ओर ढकेलता है. वहीं सर्दी में ठंडी पहाड़ी हवा हिमालय से दिल्ली की ओर रुख करती है, साथ-साथ धरती की सतह भी तेजी से ऊष्मा निस्तारित कर सतह से लगी हवा को और ठंढा कर देती है. इस प्रकार जमीन की सतह से लगी ठंडी हवा के ऊपर गर्म मैदानी हवा की एक परत शहर के ऊपर एक आवरण बनाती है. इस परिस्थिति को इनवर्सन कहते हैं, जिसमें ठन्डी हवा के ऊपर गर्म तराई की हवा का आवरण बन जाता है जो तापमान गिरने के साथ धीरे-धीरे बहुत नीचे आ जाता है. इस वजह से हवा के आपस में घुलने-मिलने का आयतन काफी कम हो जाता है. इस प्रकार सर्दी की शुरुआत के साथ ही हवा में प्रदूषण के घुलने का आयतन गरम हवा की परत के काफी नीचे आ जाने के कारण काफी घट जाती है और प्रदूषण की मात्रा स्थिर रहने बाद भी प्रदूषक तत्वों की सांद्रता कई गुणी बढ़ जाती है. जिससे हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगता है जो दिसंबर तक जारी रहता है.
दिल्ली का मौसम और भूगोल भी जिम्मेदार
भूगोल के साथ साथ दिल्ली का मौसम भी प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है. मानसून के लौटने के साथ ही समूचे उतर भारत में हवा की दिशा उल्ट कर उत्तर-पश्चिम हो जाती है. और दूसरी तरफ मौसमी परिस्थिति के कारण स्थानीय हवा की गति काफी घट कर 10 किमी/घंटा से भी कम हो जाती है, जो हवा में , प्रदूषक तत्वों के विस्तार की काफी कम कर देती है. इस कारण प्रदूषित हवा दिल्ली से बाहर तेजी से ना जाकर दिल्ली और आस-पास के शहरों में ही अटकी रह जाती है. दिल्ली में अक्टूबर का महीना अपेक्षाकृत बारिश रहित होता है, जिससे हवा से प्रदूषक हटने की बजाय जमा होते रहते हैं. दिल्ली में आने वाली उत्तर-पश्चिम दिशा की हवा अपने साथ पश्चिमोतर के समृद्ध कृषि क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमोतर उतर प्रदेश) से भारी मात्र में प्रदूषण दिल्ली तक ले आती है, जो दिल्ली के ऊपर बने निचले स्तर के इनवर्सन में उलझ कर रह जाती है. जो हवा की कम गति और बारिश ना के बराबर होने के कारण अक्टूबर से दिसम्बर तक एक्यूआई बहुत ख़राब और खतरनाक स्तर के बीच बना रहता है. मौसम और भूगोल का यह घालमेल केवल दिल्ली और आसपास के शहरों तक ही नहीं पूरे उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में कमोबेश एक जैसा रहता है. पंजाब से पूरब में बंगाल तक एक विशाल नदी घाटी का क्षेत्र बनता है जो उत्तर में हिमालय और दक्षिण में मालवा, अरावली और दक्कन के पठार से घिरा है, जहाँ सर्दी की शुरुआत से ही वायु में प्रदूषण के विस्तार के लिए अनुकूल परिस्थितियां बन जाती हैं.
दिल्ली के इतर मैदानी इलाके भी गंभीर प्रदूषित
हाल के वर्षो में पाया गया है कि दिल्ली के इतर मैदानी इलाके भी वायु प्रदूषण के हॉट स्पॉट बनते जा रहे हैं. पिछले साल की सर्दी में बिहार के लगभग शहर और बंगाल और उतर प्रदेश के कुछ शहरों में एक्यूआई दिल्ली से ज्यादा दर्ज की गयी. इन छोटे शहरों की वायु गुणवत्ता लगातार गंभीर श्रेणी (एक्यूआई 400 या उससे ऊपर) में बनी रही. इस बार भी मैदानी इलाको में वायु प्रदूषण उसी राह में जाती दिख रही है. 10 नवम्बर 2023 के सीपीसीबी के भारत के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में कम से कम बिहार के दस शहर बहुत ख़राब स्तर के हैं और सबसे प्रदूषित दस शहरों की सूची में पांच बिहार के शहर (पूर्णिया, पटना, छपरा, कटिहार और मोतिहारी) शामिल हैं. लगभग सारे बहुत खराब स्तर के शहर उत्तरी भारत के नदी घाटी क्षेत्र में दर्ज किया गया.
दिल्ली के वायु में प्रदूषण के दो मुख्य स्रोत हैं, जीवाश्म ईंधन, और बायोमास के जलने से निकला धुंआ और शहरी गतिविधियों से निकलने वाला धूलकण, इसके अलावा छोटे स्तर पर हवा में उपस्थित रसायनिक गैसों से बनने वाले धूलकण भी शामिल हैं. दिल्ली जैसे शहरों में हवा में सूक्ष्म धूलकण यानी पीऍम2.5 द्वारा निर्धारित होता है, जो जिसका मुख्य स्रोत जीवाश्म ईंधन, और बायोमास के जलने से निकला धुँआ है. वायु प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों में गाड़ियों से निकला धुँआ और धूल, औद्योगिक उत्सर्जन, भवन-निर्माण का धूल और कचरे को खुले में जलाने से और लैंडफिल से निकला धुँआ और लकड़ी और जीवाश्म इंधन के जलने से निकलने वाला धुँआ है. अकेले दिल्ली में लगभग 80 लाख गाड़िया रजिस्टर्ड है, जो इसे विश्व का पांचवा सबसे ट्रैफिक जाम वाला शहर बनाते है. दिल्ली के कोयले आधारित पॉवर प्लांट बंद किये जा चुके हैं, पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अब भी 11 कोयले आधारित पॉवर प्लांट कार्यरत हैं और दिल्ली की हवा में लगातार जहर घोल रहे हैं. पालिसी के स्तर पर दिल्ली में अब केवल हरित उर्जा वाले ईंधन इस्तेमाल होते हैं पर सच्चाई इससे इतर है.
पराली जलाना भी है जिम्मेदार
सर्दी की शुरुआत के साथ एक्यूआई में होने वाली गिरावट के मूल में शहर के अपने वायु प्रदूषण के स्रोत और स्थानीय मौसम की परिस्थितयों के अलावा पड़ोसी राज्यों में धान की पराली जलाने से निकला धुआं भी शामिल है. हालाँकि पराली जलाने की घटना केवल कुछ हफ्तों तक सीमित है फिर भी सर्दी के मौसम इसका दिल्ली के प्रदूषण में योगदान किसी किसी दिन 46 % तक चला जाता है. धान शुष्क पश्चिमोत्तर राज्यों का प्राकृतिक फसल नहीं है, बल्कि भू-जल के बेजा इस्तेमाल से किसानों में उपजी नयी प्रवृति है, जिससे पैदावार और आमदनी तो बढ़ी पर भू-जल का स्तर गर्त तक चला गया. हरियाणा और पंजाब सरकार ने धान की खेती के समय को 2009 में कानून द्वारा नियंत्रित कर प्रावधान किया कि क्रमशः 15 और 10 जून के बाद ही धान की रोपनी शुरू हो ताकि भू-जल के दोहन और वाष्पीकरण को नियंत्रित किया जा सके. इस वजह से किसान के पास रबी की खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और पराली से निजात पाने के लिए जलाने से बेहतर कोई और विकल्प नहीं दीखता.
धीरे धीरे जाड़े के मौसम में वायु प्रदूषण का दायरा दिल्ली से निकल कर पूरे मैदानी इलाकों तक फ़ैल रहा है, खासकर पश्चिम में पंजाब और हरियाणा के शहर और पूरब में बिहार और बंगाल के शहर वायु प्रदूषण के हॉट स्पॉट में बदल रहे हैं. अब ये लाजमी है कि दिल्ली सहित बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण से निजात के लिए समग्रता से कार्य करने की जरुरत है क्योंकि अब ये स्पष्ट है कि ये सिर्फ़ वायु प्रदूषण की समस्या नहीं है यह फसल चक्र में बदलाव, भू-जल का दोहन, गैर नियंत्रित शहरीकरण, उपभोक्तावाद और कचरे की समस्या, कार संस्कृति से उत्पन्न परेशानियों का समुच्चय है. हम कह सकते है की सालो साल बिगड़ता वायु प्रदूषण का स्तर पहला ही चरण है.जो बाद में एक बड़े स्तर के स्वास्थ्य संकट में बदल जाये, क्योंकि हवा में सूक्ष्मतम धूलकणों की मात्रा बढती ही जा रही है, जिससे जहरीले रसायन श्वसन तंत्र के रास्ते सीधे खून तक जा रहे हैं.
आपदा में भी है अवसर
हर आपदा एक अवसर देती है और वायु प्रदूषण आपदा समस्याओं के समग्रता से निदान ढूंढने का अवसर दे रहा है. यह एक मौका है जब भू-जल संकट से जूझ रहे पंजाब, हरियाणा को धान के बदले अनुकूल खरीफ श्रीअन्न/मिलेट के खेती के लिए राजी कर सकते हैं. वही सम्यक नगर नियोजन, उचित उपभोक्ता प्रवृति को बढ़ावा और सार्वजानिक परिवहन को सुदृढ कर कार की तरफ आकर्षित खाए पिए अघाये शहरी जनसंख्या को एक साफ हवा और कचरा मुक्त शहर दे सकते हैं, जैसा कि पश्चिम के देशों ने दशकों पहले आये वायु या जल प्रदूषण के बाद दिया था. जिसे गंदे नाली में बदल चुकी टेम्स नदी और लन्दन स्मोग जैसे उदाहरण से समझ सकते है. वायु प्रदूषण से निदान के लिए अब तक के किये गए प्रयास स्पष्ट रूप से तात्कालिक और लक्षण आधारित ही रहे हैं, अब जरुरत है कि प्रदूषण के मूल कारण का निदान किया जाये जो कि फसल चक्र में बदलाव, भू-जल का दोहन, गैर नियंत्रित शहरीकरण, उपभोक्तावाद और कचरे की समस्या, कार संस्कृति से जुड़ा है.
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