रिश्वतखोर नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले से की बड़ी चोट, संसदीय विशेषाधिकार का मतलब नहीं घूसखोरी
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने नोट फॉर वोट मामले में सुनवाई करते हुए एकमत से 1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले को पलट दिया. फैसले में कोर्ट की तरफ से साफ तौर पर कहा गया कि अगर कोई विधायक रिश्वत लेकर राज्यसभा में वोटिंग करता है तो ये उन पर सीधे तौर पर 'प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट' के तहत केस चल सकता है. ये ऐसे वक्त पर फैसला आया जब साल 2023 में 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला लेते हुए सदन में 'वोट के लिए रिश्वत' मामले में संलिप्त सांसदों या विधायकों के खिलाफ कानूनी छूट के विशेषाधिकार पर सुनवाई को तैयार हुआ था. यानी, कोर्ट के इस फैसले के बाद अब घूस लेने के मामलों में सांसदों और विधायकों को किसी तरह का कानूनी तौर पर संरक्षण नहीं मिलेगा. इससे पहले साल 1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने पीवी नरसिम्हा राव के मामले में फैसला देते हुए कहा था कि विधायकों, सांसदों को संसद में और विधानमंडल को अपने वोटों और भाषण के लिए घूस के मामले में कानून तौर पर संरक्षण मिलेगा, यानी मुकदमे से छूट रहेगी.
इस मामले में एडवोकेट और दिल्ली बार काउंसिल के पूर्व चेयरमेन मुरारी तिवारी ने एबीपी डिजिटल टीम के राजेश कुमार के साथ बातचीत की. उन्होंने बताया कि इससे लोगों में ये साफ तौर पर संदेश जाएगा कि रिश्वत के मामले में किसी को कोई छूट नहीं होगी. आइये जानते हैं कि मुरारी तिवारी का क्या कुछ कहना है-
प्रश्न : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि नोट फोर वोट मामले में विधायक या सांसदों को कोई विशेषाधिकार नहीं मिलेगा. इससे पब्लिक के लिए क्या कुछ मैसेज जाएगा?
जवाब: - सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिया गया ये एक ऐतिहासिक फैसला है. सभी को इस फैसले को स्वागत करना चाहिए. हर आदमी एक तरह का छलावा महसूस कर रहा था कि एक इलेक्टेड मेंबर को ऐसा अधिकार क्यों मिल रहा है. यह मामला सीता सोरेन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के नाम से केस था. जिसमें सीता सोरेन एक विधायक थी. राज्य सभा के उम्मीदवार को वोट डालना था. उन्होंने अपनी पार्टी के लिए वोट डाला, जबकि एक निर्दलीय कैंडिडेट ने दावा किया था कि सीता सोरेन को एक अच्छी खासी रकम अपने पक्ष में वोट करने के लिए दिया था. बाद में वोट नहीं डाला. बाद में मुकदमा दर्ज किया गया और कोर्ट ने एक्शन लेते स्वत: संज्ञान लिया. बाद में कोर्ट के खिलाफ सीता सोरेन झारखंड हाइकोर्ट गई और कहा कि उनके पास 194 की उपधारा 2 के तहत न्यायालय में कोई भी ट्रायल नहीं चलाया जा सकता. उसी समय नरसिम्हा राव का भी केस चल रहा था, लेकिन उस दौरान झारखंड हाइकोर्ट ने उस केस को खत्म करने से मना कर दिया. वहीं मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था. जो काफी सालों से लंबित था. उसी मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है कि रिश्वखोरी के मामले में ऐसी छूट नहीं होगी. पैसे लेकर किसी के पक्ष में कोई विधायक या सांसद वोट नहीं कर सकेगा. यकीनन ये ऐतिहासिक फैसला है. एक तरह से यह पब्लिक के बीच विश्वास बनाने के लिए कारगर होगा क्योंकि जनता ने जिसे चुन कर भेजा है और वो पैसे लेकर दूसरे के पक्ष में वोट करता हैं तो ये गलत है.
प्रश्न : ये फैसला एक बार सुप्रीम कोर्ट के बेंच की तरफ से ही दिया गया था. अपने ही फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है तो क्या अक्सर अपने फैसले को कोर्ट पलट देता है या ये मामला रेयर है?
जवाब- ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. ये अक्सर होता है. इलेक्टोरल बॉन्ड (चुनावी चंदा) के मामले में भी हुआ. पहले एक बार सरकार ने पास किया और कोर्ट ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया. फिर उसको रिवर्स कर दिया गया है. समय के हिसाब से चीजें बदलते रहती है. सुप्रीम कोर्ट भी समय के हिसाब से और जरुरत को देखते हुए जजमेंट को बदलता है और सुप्रीम कोर्ट के पास ये पावर भी होता है कि वो अपने फैसले को बदल सके.
प्रश्न: - इस तरह से फैसला दिए जाने पर क्या आपको लगता है कि यह मामला न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका हो जाता है. इसको आप कैसे देखते हैं?
जवाब:- ऐसे फैसले से न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका नहीं होता. गैर कानूनी कामों के लिए कोई भी कोई भी रोक-टोक नहीं करेगा. रिश्वत लेकर कोई काम करे और खासकर पार्लियामेंट और विधानसभा में तो ये गलत हैं. पार्लियामेंट और विधानसभा तो डेमोक्रेसी के लिए एक मंदिर जैसा है, क्योंकि वहीं से रूल ऑफ लॉ को हमारी सोसायटी में एक्जिस्ट कराना होता है. वहां अगर ऐसे काम होता है तो ये पूरी तरह से गलत है. लोगों में भी उम्मीद जगेगी कि अभी लोकतंत्र जिंदा है. शायद इसीलिए अभी तक सभी ने इस फैसले का स्वागत किया है. अभी किसी ने इस फैसले के खिलाफ में कोई टिप्पणी नहीं की. ऐसे फैसले का खुद पीएम भी तारीफ कर चुके है.
प्रश्न: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से ऐसे कौन-कौन से नेता है जिनकी मुसीबतें बढ़ सकती हैं?
जवाब- इस फैसले को ध्यान में रखकर देंखें तो जो भी गलत करेगा परेशानी उसके लिए होगी. हाल में मोहा मोइत्रा की बात है तो एक आरोप है. जब तक कोई भी आरोप साबित नहीं हो जाता तो उसे दोषी की संज्ञा नहीं दी जा सकती. अभी तो कोर्ट में उनके मामले का ट्रायल चल रहा है. ऐसे फैसले से लोगों में डर की भावना आएगी. लोग गलत करने से परहेज करेंगे. समाज में नुकसान होने से रूकेगा. विधायकों और सांसदों में थोड़ा डर पैदा होगा. इसका असर दिखेगा.
प्रश्न: जन-प्रतिनिधि को जनता चुनती है तो लगता है कि ऐसे काम नहीं करेंगे, लेकिन वो ऐसे काम करते हैं वो उसमें भी सुप्रीम कोर्ट तय करती हैं तो इसको आप किस तरीके से देखते हैं?
जवाब:- हम सबको पता है कि पार्लियामेंट से सारे कानून पारित होते हैं. भारत की जूडीसीयरी इंडिपेंडेंट है. वो इसलिए बनाई गई कि कोई चीज जो गलत हैं और पार्लियामेंट ने पास कर दी है. तो सुनवाई के दौरान एक तरह से स्क्रुटनी का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है. दोनों पावर संविधान में अंकित किए गए हैं. अगर कुछ गलत है तो सुप्रीम कोर्ट को रिव्यू करने और उसको सही करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास होता है. और ये संविधान की ओर से दी गई है.
प्रश्न: सुप्रीम कोर्ट से ऐसे फैसले आने के बाद घूसखोर नेताओं के लिए कैसा संदेश रहेगा?
जवाब:- कानून पहले भी था. ये फैसला आने के बाद भी ये लागू होगा. लेकिन बड़ी बात है कि हमें अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है. अगर स्वभाव में घुसखोरी है तो कितने भी कानून बनते रहे है. पहले भी कईयों को सजा मिलते रहे है. इस तरह के जजमेंट होने से लोगों में डर होता है. कोई गलत करने से पहले सोचता है. और समाज में एक अच्छा प्रभाव जाता है.