पिछले कुछ दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदू-मुस्लिम के बीच हुए उपद्रव का मसला अभी पूरी तरह से शांत भी नहीं हुआ है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने एक और विवादित बयान देकर आग में घी डालने का काम कर दिया है. उन्होंने हिंदुओं के आराध्य देवता मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भगवान मानने से इनकार करते हुए ब्राह्मणों के खिलाफ भी काफी जहर उगला है, जिसके बाद बिहार की सियासत गरमा गई है. बीजेपी ने इस बयान पर उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि जीतनराम मांझी को पहले अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए.


सवाल उठता है कि मांझी ने सिर्फ खबरों में बने रहने के लिये ही ये बयान दिया है या फिर उनका मकसद कुछ और है? ऐसे बयानों के जरिये क्या वे दलितों को उच्च सवर्ण जातियों के खिलाफ भड़काने का एक नया माहौल तैयार कर रहे हैं? क्योंकि उन्होंने खुले मंच से दलितों को ये सलाह दी है कि उन्हें ब्राह्मणों से पूजा-पाठ करवाना बंद कर देना चाहिये. ये सोच समाज में ऊंच-नीच की खाई को न सिर्फ और गहरा करेगी, बल्कि एक ही धर्म के दो वर्गों के लोगों के बीच नफ़रत का जहर भी घोलेगी.


लिहाज़ा, मांझी के बयान को मजाक में कही बात मानकर दरकिनार नहीं किया जा सकता. दलितों के दिलो-दिमाग में सवर्णों के खिलाफ नफ़रत के बीज बोने वाली इस लड़ाई को संभाल पाना इसलिये मुश्किल हो जायेगा, क्योंकि अगर इसे बढ़ावा दिया गया तो आने वाले दिनों में इसे अमीर बनाम गरीब के बीच होने वाले संघर्ष का रुप धारण करने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. इतिहास गवाह है कि दुनिया के जिस भी देश ने गृह युद्ध को झेला है, वहां ऐसे ही वर्ग-संघर्ष से उसकी शुरुआत हुई थी. इसलिये मांझी के इस बयान की उस गहराई को समझते हुए गंभीरता से लेना होगा, जिसके जरिये वे दलितों के लिए वर्ग-संघर्ष छेड़ने की एक नई जमीन तैयार कर रहे हैं.


दरअसल, जीतन राम मांझी ने बिहार के जमुई जिले में भीमराव अंबेडकर जयंती के एक कार्यक्रम में अपने बड़बोले बयान से बिहार की राजनीति में भूचाल लाने के साथ ही तमाम हिन्दू संगठनों को भी हवा दी है. मांझी ने भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि " मैं राम को भगवान नहीं मानता, न ही वे भगवान थे. वे तो तुलसीदास और बाल्मीकि रामायण के काल्पनिक पात्र थे. मैं गोस्वामी तुलसीदास और वाल्मीकि को तो मानता हूं, लेकिन राम को मैं नहीं मानता." उन्होंने ये भी कहा कि देश के सारे सवर्ण और उच्च जाति के कहलाने वाले लोग बाहरी हैं,वे भारत के मूल निवासी नहीं हैं.


मांझी ने ब्राह्मणों पर निशाना साधने के लिए दलितों को पूजा पाठ बंद कर देने की नसीहत देते हुए कहा कि " जो ब्राह्मण मांस खाते हैं और शराब पीते हैं, झूठ बोलते हैं. ऐसे ब्राह्मणों से दूर रहना चाहिए. उनसे पूजा पाठ नहीं कराना चाहिए. आप लोग पूजा पाठ करना बंद कर दीजिए.साथ ही ये भी कह डाला कि शबरी के झूठे बेर को राम ने खाया था."


उनके इस बयान से नाराज बिहार बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष मिथिलेश तिवारी ने कहा है कि मांझी को मन-मस्तिष्क का इलाज कराना चाहिए. अगर राम को नहीं मानते हैं तो अपने नाम में जीतन राम क्यों लिखते हैं. पहले तो उन्हें अपने नाम के साथ जीतन राम जो लिखते हैं, इसे बदल देना चाहिए, अगर राम को नहीं मानते हैं तो." उनके मुताबिक राम को नहीं मानने वाला व्यक्ति भारत की सभ्यता व संस्कृति को जानता ही नहीं है. जीतनराम मांझी की आस्था अगर श्रीराम को भगवान मानने में नहीं हैं तो वे न मानें, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि वे समूचे दलित समुदाय पर अपनी आस्था थोपकर आखिर किस तरह की राजनीति करना चाहते हैं?


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