नूंह में ब्रजमंडल यात्रा के दौरान और उसके बाद की सांप्रदायिक हिंसा में नौ लोगों की मौत हो गयी. इसके बाद खट्टर सरकार ने वहां भी बुलडोजर नीति अपनायी और घरों-दुकानों को ध्वस्त करवा दिया. सरकार का कहना है कि ये सारे निर्माण अवैध थे और उनको ही तोड़ा गया, लेकिन लोगों का कहना है कि यह सरकार की तुगलकी नीति थी. हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस तोड़फोड़ पर रोक लगा दी है.
हाईकोर्ट का फैसला स्वीकार्य
हाईकोर्ट के फैसलों पर तो कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. न्यायालय ने जो फैसला दिया है, उसको या तो स्वीकार करना होता है या उससे ऊंची अदालत में चुनौती दी जाती है. हालांकि, कुछ सवाल मन में उठते हैं. जब हिंसा हो रही थी, तीर्थयात्रा रोकी गयी थी, मेवात में डीएसपी जैसे पदों पर बैठे लोगों को मार दिया जाता था, अखबारों में आता था कि दिनदहाड़े लड़कियां उठा ली जाती थीं, मणिपुर के मुद्दे पर जुडिशियरी ने स्वतःसंज्ञान लिया, क्या दिल्ली के 50 किलोमीटर की दूरी पर जो घटनाएं हो रही थीं, न्यायालय खुद संज्ञान नहीं ले सकता था, यह प्रश्न आम लोगों के मन में उठता है. इस फैसले में भी जो पंक्तियां मैंने पढ़ी हैं, वह कुछ ऐसी ही हैं कि कानून के दायरे से बाहर कोई डेमोलिशन नहीं हो, उस पर रोक लगे. तो, मुझे नहीं लगता कि कानूनी दायरे के बाहर कुछ हो रहा है, आखिर उनको भी तो जवाब देना है.
बुलडोजर कोई असफलता छिपाने के लिए नहीं
पहला फेल्योर इंटेलिजेंस का था, स्थानीय प्रशासन का था, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन खट्टर सरकार अपनी असफलता को छिपाने के लिए तोड़फोड़ कर रही है, इसमें कोई दम नहीं है. आज जब ऐसे लोग जो वंदेमातरम् के विरोधी हैं, हिंदुओं के कत्ल की धमकी देते हैं, वो जब बिलबिला रहे हैं, तो इसका मतलब है कि चोट वहीं हो रही है, जहां होनी चाहिए. अंदर क्या चल रहा है, हमें नहीं पता. हम अभी कार्यकर्ताओं को भेज भी नहीं रहे हैं. यह ठीक है कि मुख्य अपराधी भाग गए, लेकिन उनके समर्थक तो हैं. उन पर कार्रवाई हो रही है. अपुष्ट जानकारी के अनुसार 200 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, तो यह केवल छिपाने के लिए तो नहीं होगा. रोहिंग्या वहां बड़ी संख्या में हैं. दिल्ली के बसंत बिहार से भगाए गए, तो मेवात चले गए और वहीं घुलमिल गए. जो झुग्गियां और मकान गिरे हैं, वे बिल्कुल जायज हैं. रोहिंग्या भी इस हिंसा में शामिल थे. इनको शर्म नहीं आती कि हरेक जगह से लुटे-पिटे ये लोग जब भारत आए, तो यहां भी हिंसा कर रहे हैं. इनके अवैध निर्माण को जमींदोज करना बिल्कुल ठीक है. जिस होटल पर पत्थर रखे गए, पेट्रोल बम रखे गए थे, वह अगर अवैध था, तो उसको गिराना ही चाहिए. जिस हॉस्पिटल से मुझ पर गोली चलायी गयी, वह अगर अवैध था तो उसको क्यों नहीं गिराना चाहिए?
सरकार ने कर दी देर
मैं इस बात से बिल्कुल सहमत हूं कि सरकार को यह काम पहले करना चाहिए था. हम लगातार चेतावनी दे रहे थे. सरकार ने कुछ एक्शन भी लिया. गोहत्यारों को, खनन माफिया को इन्होंने रोका. भारत का सबसे बड़ा साइबर-क्राइम का हब होने पर रोक लगी. 100 ग्राम हिंदूशून्य हुए, तो वह खट्टर सरकार से पहले हुआ, अब तो रुक रहा है. जो लोग हिंसा के उत्तरदायी हैं, मामन खान और इलियासी जैसे लोग, जिन्होंने टुकड़े-टुकड़े करने की धमकी दी थी, उनके नेताओं के कारण ही तो यह स्थिति पैदा हुई. स्थानीय प्रशासन की विफलता तो है ही. सरकार के जो उच्चपदस्थ सूत्र हैं, वे भी बता रहे हैं कि उनको खबर नहीं थी. इस पर सरकार निश्चित तौर पर कार्रवाई करेगी, कर रही है. आज का दौर हालांकि दोषारोपण का नहीं, विश्वास-बहाली का है. जो हिंदू विरोधी और राष्ट्रविरोधी हैं, उनके मन में संविधान का भय हो, यह जरूरी है.
जहां तक बिट्टू बजरंगी का सवाल है, वह हमारा कार्यकर्ता नहीं. उसने जिस तरह का वीडियो जारी किया है, उसका हम समर्थन नहीं करते हैं. वह किसी तरह उपयुक्त नहीं है, लेकिन मोनू ने क्या कहा है? जिस राजस्थान के केस की बात है, उसकी चार्जशीट में उसका नाम ही नहीं है. जो भी उसे अपराधी कह रहे हैं, वह या तो अनजान हैं या बेईमान. वे जान-बूझकर मामन खान जैसे अपराधियों के पापों पर पर्दा डालना चाहते हैं. उसने इतना ही तो कहा कि वह आ रहा है. हां, जो गो-हत्यारे हैं, उनके मन में उसका डर तो है. वह तो कानून का सहारा लेकर ही गोरक्षा करता है, उसने कोई अपशब्द नहीं कहा, कोई धमकी नहीं दी. वह तो केवल कवर फायर दिया जा रहा है, और कुछ नहीं.
सरकार कार्रवाई कर रही है. इस सरकार के खिलाफ जाएं, तो किसको लेकर आएं? अगर आप खट्टर सरकार के पिछले कार्यकाल पर ध्यान दें, तो मेवात में हिंदुओं का पलायन रुका है, मेवात के विकास के लिए इंडस्ट्रियल हब बनाने की योजना चल रही है. अभी तो एक्शन का समय है. समय है, वहां के हिंदुओं को सुरक्षित रखने का, वहां जंगलों को बचाना है, उसको छुड़वाना है, हमारे मंदिरों को छुड़ाना है. सरकार को उन मंदिरों को भी छुड़ाना चाहिए.
आगे की राह और एक्शन-प्लान
मैं बताता हूं कि क्या होना चाहिए? वहां एक पैरामिलिट्री फोर्स का सेंटर बने. वहां सड़कें रोक दी गयी थीं, बाहर से फोर्सेज को नहीं आने दे रहे थे. वहां कम से कम तीन सेंटर बने और अर्द्धसैनिक बल रहें. अलग से नूंह जिला क्यों? जिस तरह पहले गुरुग्राम और पलवल पहले से थे, उसी तरह इसका फिर से बंटवारा हो और तुष्टीकरण बंद हो. कुछ परिवार जो तमाम तरह के अपराधों में लिप्त हैं, उनकी गुंडागर्दी खत्म हो. वहां के हरेक जिहादी के मन में कानून का डर हो. हम पहले देख चुके हैं. किस तरह संप्रदाय विशेष के गुंडे वहां खड़े रहते थे, लड़कियों को छेड़ते थे, उस पर भी रोक लगे. जो साइबर क्राइम है, जो अपराध के अड्डे हैं, उसे खत्म होना चाहिए, तभी ये जो छवि है मिनी पाकिस्तान की या हिंदुओं के कब्रिस्तान की, उसमें सुधार आ पाएगा.
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