चारों तरफ चीख-पुकार, लाशों का अंबार... बालासोर MLA की जुबानी, हादसे की पूरी कहानी
ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार को बड़ा रेल हादसा हुआ. बहानगार बाजार स्टेशन के पास हुए इस हादसे के बाद वहां का मंजर बेहद खौफनाक था. इसमें करीब 297 लोगों की मौत हो गई जबकि 1100 से ज्यादा घायल हुए हैं. कई शवों की अब तक पहचान नहीं हो पाई है. रेल मंत्री की तरफ से सीबीआई जांच की मांग की गई. जो शुरुआती दौर था, ट्रेन दुर्घटना का, तब स्थानीय लोगों की सहायता से सारा काम किया गया. माननीय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी पूरी स्थिति को मॉनीटर कर रहे थे और राज्य एवं जिला प्रशासन की सारी ईकाइयां एक होकर काम कर रही थीं. एक बात आपलोगों को बताना चाहूंगा.
यह जैसे कयामत की रात थी
जो एक कल्चर लगभग पिछले दो दशकों से माननीय नवीन पटनायक जी ने जो सेवा का विकसित किया है, वह बालासोर में देखने को मिला. वहां स्थानीय लोगों ने ही राहत कार्य शुरू किया और उनकी बड़ी सहायता मिली इस काम में. राज्य सरकार ने 200 एंबुलेंस तैनात किए थे और उनकी मदद से 1200 पेशेंट को अलग-अलग अस्पतालों में भेजा. जो क्रिटिकल थे, उनको बड़े-बड़े अस्पतालों में भी जनस्वास्थ्य स्कीम के तहत भेजा. जिन लोगों की जान गयी, उनकी बॉडी को प्रिजर्व किया गया, मॉर्चुरी में रखा है ताकि उनके परिवार वाले देख सकें. ऐसे करीब 200 बॉडी हैं. हरेक डेड बॉडी का डीएनए भी रखा गया है, ताकि आगे कभी जरूरत हो तो काम आए. जो भी डेड बॉडी की पहचान हुई है, उनको परिवार तक पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है. इसके अलावा कोलकाता और भुवनेश्वर जाने के लिए बसों की व्यवस्था की गयी है, बिना किसी शुल्क के. हरेक हॉस्पिटल में सरकारी अधिकारी पूरी नजर रखे हुए हैं. कह सकते हैं कि हरेक जीवन को बचाने के लिए हर प्रयास हो रहा है.
अंधेरा, धूल और चीख-पुकार
हम लोग दुर्घटनास्थल पर 20 से 25 मिनट बाद ही पहुंच गए थे. वहां घनघोर अंधेरा था, धूल थी औऱ चारों तरफ से बचाओ-बचाओ की आवाजें आ रही थी. पहले तो मोबाइल फोन की रोशनी के जरिए हमने रेस्क्यू किया. जो भी गाड़ी या ऑटो उपलब्ध था, उससे जिसको भी जहां पहुंचा सकते थे, पहुंचाया नजदीकी हॉस्पिटल तक. उसके बाद सरकारी अमला जैसे फायर डिपार्टमेंट, पुलिस विभाग, एंबुलेंस आदि भी पहुंचने लगे और रेस्क्यू का काम पूरी तरह से चलने लगा. रेस्क्यू का काम आधा घंटे बाद ही शुरू हो गया था और आधी रात तक लगभग काम जो रेस्क्यू का था, वह पूरा हो गया था. यह एक बड़ी बात है. यह उड़ीसा सरकार की एक जानी हुई बात भी है कि कोई भी प्राकृतिक आपदा हो, उसका मुकाबला हम पूरी तरह मुस्तैदी से करते हैं.
वहां हालांकि जो माहौल था, उसे बोलने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. हरेक की आंखों में आंसू था. रोने और चीखने का बाजार गर्म था. हरेक तरफ आह-कराह की आवाज आ रही है. हरेक की आंखों में एक उम्मीद थी, सहायता की अपेक्षा थी. सुबह 8 बजे मुख्यमंत्री पहुंचे और तब से रिलीफ वर्क के लिए हरेक को और भी अधिक मुस्तैद दिया. उन्होंने हरेक को यही सलाह दी कि जब तक हरेक घायल घर न पहुंच जाए, तब तक कोई भी आराम न करे.
खतरनाक मंजर, दिल दहलानेवाला नजारा
हमने तो 1999-2000 में ओडिशा में चक्रवात का मंजर देखा था, उसके बाद कुछ भी इस तरह का हादसा नहीं देखा था. हमारे लिए तो यह दिल दहला देनेवाला हादसा है. यह अपने आप में न सोच पाने लायक हादसा है. ऐसी परिस्थिति कभी न आए, इसके लिए रेलवे को अपनी सेफ्टी पर काम करना चाहिए. सीबीआई की टीम भी पहुंचने वाली है. बुलेट ट्रेन औऱ वंदे भारत का हम स्वागत करते हैं, लेकिन सेफ्टी के साथ कभी समझौता नहीं हो. रेलवे जिस तरह विकास का काम कर रही है, उसी तरह सुरक्षा पर भी करे. अब हमारा जो सेक्शन है, उसमें तो हरेक 10 मिनट पर ट्रेन जाती है, तो उसका मेंटेनेंस भी उसी तरह से हो. हरेक स्टेशन में जहां अधिक यातायात है, उन स्टेशन पर रेस्क्यू के उपकरण हों औऱ वहां के लोगों को भी रेस्क्यू का प्रशिक्षण देना चाहिए. अभी जैसे इस घटना में हमने देखा कि जब तक एसडीआरएफ, एनडीआरएफ के लोग नहीं पहुंचे, तब तक हम लोग बहुत छिटपुट सहायता कर सके, क्योंकि कटर वगैरह कुछ भी नहीं था हमारे पास. उड़ीसा सरकार ने जैसे प्राकृतिक आपदा की ट्रेनिंग कम्युनिटी लेवल पर दे रही है. बिजली गिरने से लेकर सांप काटने तक हम, गांव के स्तर पर प्रशिक्षण दे रहे हैं. उसी तरह रेल कर्मियों को भी न्यूनतम प्रशिक्षण मिलना चाहिए, ताकि वे भी काम कर सकें.
सीबीआई तो एक न्यूट्रल बॉडी है और पूरा देश उनको सम्मानित मानता है. यह जांच बहुत जरूरी है, क्योंकि रेलवे की विश्वसनीयता पर यह प्रहार होता है. टेक्निकल ग्लिच हो या कोई भी कारण हो, उसको जांचना बहुत जरूरी है. इस सेक्शन के रेलवे लाइन में ट्रेन 125 से 130 की रफ्तार में चलते हैं. वंदे भारत तो 160 की रफ्तार से चलता है. हम तो यह मानते हैं कि जो भी कारण हो उसका पता चले औऱ सीबीआई से बेहतर ये काम कौन कर सकता है?
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