ओडिशा के बालासोर में हुई स्वतंत्र भारत की भीषणतम दुर्घटनाओं में से एक के बाद फिलहाल वहां रेस्टोरेशन का काम चल रहा है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि दुर्घटना के कारणों का पता चल गया है और सभी दोषियों को सजा मिलेगी. दुर्घटना के बाद एंटी कोलिजन डिवाइस कवच को लेकर भी बहस छिड़ गई है. रेलमंत्री के मुताबिक अगले दो दिनों में रेलवे का प्रयास है कि पटरियों की हालत सुधार कर उन्हें चलने के लायक बना दिया जाए.
सेफ्टी हो हमारी प्राथमिकता
ये दुर्घटना स्वतंत्र भारत की भीषणतम दुर्घटनाओं में एक है और बेहद दुखद है. हमने कभी इस तरह की कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसी दुर्घटना भी हो सकती है. इतनी तकनीकी प्रगति के बावजूद ऐसी घटना हुई है, तो हमें भी अपनी सोच को फिर से नयी दिशा देनी होगी.
हमें सोचना होगा कि स्पीड और सेफ्टी में हम किसको तरजीह देना चाहते हैं? इसका मतलब यह नहीं है कि हम स्पीड के खिलाफ हैं, या जो स्टेशन विकसित किए जा रहे हैं, उनके खिलाफ हैं. सबसे बड़ी जरूरत हालांकि हमारी सुरक्षा को सुनिश्चित करने की है. इसे प्राथमिकता देनी होगी. जब कवच को स्टैंडर्ड बना लिया गया, आईएसओ ने भी उसका सर्टिफिकेशन कर दिया है तो फिर उसे सभी जगहों पर लागू करने में देरी बेमानी है. उस पर विचार करना चाहिए.
बजट या पैसे का बहाना भी इस मामले में नहीं चलेगा. हमारी जितनी भी मुख्य लाइन है, बड़ी लाइन है, उन सभी को एंटी-कोलिजन डिवाइस से लैस करने की जरूरत है. भारतीय रेलवे लगभग ढाई करोड़ लोगों को रोजाना सफर करवाती है. इन सभी यात्रियों को कॉन्फिडेन्स देने की बहुत जरूरत है.
खाली पदों को भरने की जरूरत
यह दुर्घटना इस मामले में असाधारण है कि तीन ट्रेनें इसमें शामिल थीं. इसके पहले पंजाब के खन्ना में एक दुर्घटना हुई थी, जहां एक तीसरी ट्रेन भी शामिल थी. पहले ही डब्बे चूंकि पटरियों पर थे, तो उनसे भीषण टक्कर हुई और काफी लोग मरे थे.
हमारा मानना है कि बुलेट ट्रेन भी चले, हाईस्पीड ट्रेन भी चले, पर हमारी दूसरी ट्रेनों की सुरक्षा भी चाक-चौबंद हो. वो तो भगवान की कृपा थी कि यशवंतपुर-भामा एक्सप्रेस निकल चुकी थी, वरना दुर्घटना और भीषण हो जाती. हमारे आंकड़े कहीं और त्रासद होते.
समस्या तो सबसे बड़ी बजट की है. रेलवे को सुरक्षा-संरक्षा के लिए जितना बजट मिलना चाहिए, उसमें जरूर कहीं न कहीं कोताही है. पिछले बरस केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो लाख 55 हजार करोड़ रुपये का बजट दिया, लेकिन उसमें सेफ्टी का हिस्सा बहुत कम था. तो, हमारी प्राथमिकता क्या है, वह तय होनी चाहिए. अगर एक लाख करोड़ रुपये चाहिए एंटी कोलिजन डिवाइस लगाने के लिए और 200 करोड़ रुपये मिल रहे हैं, तो हमारी प्राथमिकता में गड़बड़ तो है जिसे बदलना होगा.
अभी पिछले साल एक लाख 48 हजार पोस्ट भरी गयी हैं, लेकिन अभी भी दो लाख पद खाली हैं, साल का अंत होने तक 50 हजार लोग और रिटायर हो जाएंगे. हमारे यहां फिर से ढाई लाख पोस्ट खाली हो जाएंगे. जो भर्ती का मामला है, उसमें काफी बदलाव होने चाहिए. पिछले साल जो भर्तियां हुई हैं, उनकी तो अभी ट्रेनिंग चल रही है. तो, सेफ्टी कैटेगरी के जो 2 लाख पोस्ट खाली हैं, उनको पहले भरा जाए.
रेल बजट को आम बजट में मिलाने का फर्क पड़ा
रेल बजट के आम बजट में समाहित होने का फर्क तो पड़ा है. पहले रेलवे का बजट रहता था तो लोग अपनी प्राथमिकता खुद तय करते थे. अभी ये है कि हरेक चीज के लिए वित्त मंत्रालय में जाना पड़ता है और मनाना पड़ता है. पहले जो चीजें रेलवे के टेक्निकल अधिकारी प्रस्तुत करते थे, हमारा जो ऑटोनोमस तरीका था, वह भी प्रभावित हुआ है.
अब इस दुर्घटना की बात करें या किसी की भी, हमारी तो कोशिश रहती है कि कोई भी दुर्घटना न हो, क्योंकि सबसे पहले तो रेलवे के लोग ही शहीद होते हैं. इनको अगर सुरक्षित चलाना है तो हमें पूरे भारतीय रेल को एंटी कोलिजन डिवाइस की जद में लाना पड़ेगा. हमें अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारना होगा, चाहे वह रेलवे ट्रैक में सुधार हो, कोच में सुधार हो या ट्रेन में सुधार हो. विभिन्न पदों पर नियुक्ति की जो व्यवस्था थी, उस पर जो रोक लगी है, उसको भी खोलना पड़ेगा. सृजित करना पड़ेगा.
इसमें सबसे जरूरी है कि जो पैसा एंटी-कोलिजन डिवाइस के लिए चाहिए, वह तत्काल व्यवस्था की जाए. सरकार उसे रेलवे को दे. जो नई लाइनें खुल रही हैं, नये निर्माण हो रहे हैं, उनके लिए नए पद सृजित किए जाएं, प्रॉपर ट्रेनिंग दी जाए. नयी पटरियां बन रही हैं, नए काम हो रहे हैं, तो वहां भर्तियां की जाएं. हां, हमारे जो तमाम काम प्राइवेट लोगों को दिए जा रहे हैं, उन पर भी रोक लगाई जाए. जब तक रेल कर्मचारी अपने काम की व्यवस्था अपने हाथ में नहीं रखेंगे, तब तक मामला ठीक नहीं होगा.
प्राइवेट वाले लोग जब आते हैं तो केवल अपना फायदा देखते हैं, पैसा देखते हैं तो उनसे अपेक्षा नहीं की जा सकती कि सब कुछ वे ठीक कर देंगे. कर्मचारी कम होने की वजह से काम के घंटे भी अधिक हैं, लोग स्ट्रेस में रहते हैं तो इन पर भी ध्यान देना होगा. लोगों को काम के घंटे कम देने होंगे, ताकि वे डिप्रेशन में न जाएं, आराम से काम करें.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)