एक्सप्लोरर

साहित्य का उन्मुक्त गगन और सीमाएं, सोशल मीडिया के प्रसार से जन-साधारण में बढ़ती रुचि और नियमों का दबाव

पिछले एक दशक में सोशल मीडिया का प्रसार काफ़ी तेज गति से हुआ है. इसी के साथ साहित्य के प्रति आम लोगों की रुचि भी बढ़ी है. जो हिन्दी के प्रकांड विद्वान या फिर साहित्य के अलग-अलग विधाओं के मर्मज्ञ नहीं हैं, उनको भी सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों के जरिए अपनी भावनाओं, अपने जज़्बातों को शब्द देने का मौका मिला है.

इससे ही जुड़ा एक विमर्श है कि आम लोग जो सामान्य तौर पर शब्द ज्ञान या शब्दों के प्रयोग से जुड़ी बारीकियों की बेहतर समझ नहीं रखते हैं, उनसे साहित्य को क्या नुकसान हो रहा है. ऐसी सोच रखने वालों को एक मत है, लेकिन इस विमर्श को समझने के लिए व्यापक और खुला नज़रिया महत्वपूर्ण हो जाता है.

साहित्य की सीमा तय नहीं हो

साहित्य की सीमा तय नहीं करें...उसे किसी बंधन में मत जकड़ें..साहित्य व्यापक है, सर्वग्राही है..उसे शब्दों से नहीं बांधा जाना चाहिए, शब्द प्रयोग के नियम क़ा'इदा की ज़ंजीरों से नहीं जकड़ा जाना चाहिए. ऐसा नहीं है कि इनके मायने नहीं हैं, लेकिन आम जनमानस को उन नियम क़ा'इदा से मुक्त रखना ही साहित्य के विस्तार और समृद्धि की गारंटी है.

अलग-अलग भाषाओं के बीच शब्दों के आदान-प्रदान से अगर मर्म, भाव का खुलासा और समझ सुनिश्चित होती है, तो फिर इसे गुनहगार नहीं, बल्कि मददगार मान लें. साहित्य सिर्फ़ चंद प्रकांड विद्वानों की थाती नहीं है, इस पर हर मनुष्य का बराबर अधिकार है. साहित्य का विकास उन चंद विद्वानों से तय नहीं हो सकता..यह तो सर्वसुलभ होने पर ही संभव है. इसमें हर शख्स साहित्य के दोनों किनारों पर खड़ा होने का अधिकार रखता है. रचना से जुड़ा किनारा हो या फिर पाठक का हाशिया.. दोनों मिलकर ही साहित्य को परिपूर्ण करते हैं. अगर ऐसा है तो कौन रचनाकार होगा..कौन पाठक होगा..इसकी सीमा नहीं होनी चाहिए. एक ही शख्स कभी रचनाचार हो सकता है तो कभी पाठक. मनुष्य होने के नाते ये उसका नैसर्गिक और मौलिक दोनों अधिकार है. अगर हम शब्दों से, शब्द भंडारों से, शब्दों के ज़हीन प्रयोग से उसे बांधने की कोशिश करते हैं और जनमानस को उससे दूर करते हैं, तो हर तरह से ये किसी के साहित्यिक अधिकारों का हनन ही होगा.

साहित्य को सीमित नहीं किया जा सकता है

साहित्य के उच्च कोटि के नियमों को मानिये, कौन इंकार कर रहा है, कौन नकार रहा है.... जो क़ा'इदा से वाक़िफ़ हैं, जिनको नियमों की समझ है, वे उसके हिसाब से गाथा रचें, काव्य गढ़ें..किसी ने नहीं रोका है, किसी ने नहीं टोका है..लेकिन साहित्य सिर्फ़ उनसे या उन तक ही नहीं है.

साहित्य एक ज़री'आ है, एक माध्यम है..अपने भावों को जन्म देने का, शब्द देने का.. अपने अंदर छिपे मर्म को पन्ना देने का..और ये सिर्फ़ नियम क़ा'इदा से घोंट कर ही किया जा सकता है, ऐसा मानने वाले साहित्य के पैरोकार कतई नहीं हो सकते. ऐसे लोग साहित्य को सीमित करने वाले ज़रूर हो सकते हैं.

सोचने की क्रिया से साहित्य का गहरा संबंध

मनुष्य है तो स्वाभाविक है कि वो सोचेगा, चाहे आम हो या ख़ास ...अगर आम हुआ और सोचेगा तो ख़ुद-ब-ख़ुद शब्द उसके ज़ेहन में दस्तक देंगे और जब मन मस्तिष्क में शब्दों का हिलोर उठेगा, तो साहित्य के पन्नों पर उसका भी उतना ही आधिपत्य है जितना शब्द, शब्द प्रयोग के नियम और अलग-अलग विधा से जुड़े क़ा'इदा  के मर्मज्ञों का है.

वो आम भी अपनी भावनाओं को, अपने मर्म को साहित्य के पन्नों पर अंकित करेगा. वो कितना ग्राहय होगा, नियम क़ा'इदा से कितना आबद्ध होगा...ये उस शख़्स के लिए मायने नहीं रखता..उसे तो बस इतना पता है कि उसके भाव... उसके मर्म..उसके ज़ेहन में आने वाले शब्दों को साहित्य के व्यापक पटल पर बस जगह मिल जानी चाहिए और वो ऐसा ही करता/करती है. इससे साहित्य का किसी भी प्रकार से नुक़सान नहीं होता, अपितु ये प्रक्रिया साहित्य के संसार को और विस्तृत ही कर देती है.

हर किसी के लिए है साहित्य का पन्ना

साहित्य का नुक़सान तब होता, जब ऐसे लोगों को साहित्य के पन्नों पर जगह नहीं मिलती, तब साहित्य सिकुड़ने लगता, सिमटने लगता.. साहित्य खुला आसमान है, जिस पर किसी का ज़ोर नहीं है..और अगर नियम क़ा'इदा के प्रकांड विद्वानों..मर्मज्ञों को लगता है कि इस खुले आसमान पर उनका क़ब्ज़ा है ..या क़ब्ज़ा होना चाहिए, तो फिर उनसे ज्यादा साहित्य का नुक़सान कोई नहीं कर रहा है.

साहित्य को मायावी मत बनाएं.. साहित्य के उन्मुक्त आंचल में गांठ बांधने की कोशिश मत करें.. मिलने दो उन निश्चल ख़्वाबों को भी साहित्य का पन्ना.. उन सहज विचारों को भी मिलने दो मन मुताबिक़ शब्दों का आधार. चिढ़ना और चिढ़ाना बंद करें..उन मासूम अरमानों से जो सीधे जुड़े हैं मन के तारों से.. नियमों के तीखे बाणों से भेदना बंद करें उन कुंवारे एहसासों को..

साहित्य में सभी के हित का भाव

ऐसे भी साहित्य शब्द की व्युत्पति पर गौर करें, तो इसका मतलब ही है...'सहितयो: भाव: साहित्यम्' ..अर्थात् जिसमें सभी के हित का भाव हो...सहित या साथ होने का भाव हो..इस रूप में साहित्य एक साथ होना है, एक साथ रहना है, एक साथ मिलना है.

व्युत्पत्ति के हिसाब से साहित्य शब्द और अर्थ का मंजुल सामंजस्य है. बिना नियम क़ा'इदा को जाने..समझे, अगर कोई शख्स शब्द और अर्थ के मंजुल सामंजस्य की आभा को अपनी सोच के हिसाब से आकार देना चाहता है, तो ये भी उसी साहित्य का हिस्सा है, जिससे साहित्य के दायरे में और व्यापकता आती है.

अगर साहित्य का दायरा तय करें, तो यह इतना व्यापक है जितनी व्यापकता मानव अस्तित्व को लेकर हम सब मानते हैं. मनुष्यों की सोचने की अद्वितीय क्षमता.. जो मनुष्य होने के नाते हर शख्स के पास कम या ज्यादा होती है.. साहित्य की पहुंच हर उस सोच तक है.

माना चंद लोग होंगे शब्दों के जादूगर, लेकिन इससे साहित्य पर ख़ास-ओ-'आम की मिलकिय्यत ख़त्म तो नहीं हो जाती.. आप बंधे रहें उसूलों की बेड़ियों से.. सर्वसाधारण को आज़ाद रहने दें.. तभी साहित्य उस ऊंचाई तक पहुंच पाएगा, जिसमें मानव कल्पना का असीम भंडार निहित होगा. ऐसी ऊंचाई, जिसकी कोई सीमा नहीं होगी, जिसमें किसी प्रकार का बंधन नहीं होगा, वहां तक साहित्य की पहुंच सुनिश्चित हो पाएगी.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

रूस का बड़ा ऐलान- हमने बना ली कैंसर की वैक्सीन, सबको फ्री में मिलेगी
रूस का बड़ा ऐलान- हमने बना ली कैंसर की वैक्सीन, सबको फ्री में मिलेगी
'कान खोलकर समझ लें, वो हमारे भगवान, मांगें माफी', अमित शाह के बाबा साहेब आंबेडकर वाले कमेंट पर खरगे हुए फायर
'कान खोलकर समझ लें, वो हमारे भगवान, मांगें माफी', अमित शाह के बाबा साहेब आंबेडकर वाले कमेंट पर खरगे हुए फायर
Maharashtra Weather: महाराष्ट्र में शीतलहर की मार, कश्मीर जैसी पड़ रही ठंड! इतना पहुंच गया पारा
महाराष्ट्र में शीतलहर की मार, कश्मीर जैसी पड़ रही ठंड! इतना पहुंच गया पारा
अरे कोई जहर लाकर दे दो! दूल्हा और दुल्हन का एंट्री डांस देखकर बाल नोच लेंगे आप, हर तरफ हो रही किरकिरी
अरे कोई जहर लाकर दे दो! दूल्हा और दुल्हन का एंट्री डांस देखकर बाल नोच लेंगे आप, हर तरफ हो रही किरकिरी
ABP Premium

वीडियोज

दिन की बड़ी खबरेंएक देश-एक चुनाव की 'तारीख' पर तल्खीसंसद में Congress पर शाह का जोरदार हमलाएक देश एक चुनाव कब तारीख आ गई?

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
रूस का बड़ा ऐलान- हमने बना ली कैंसर की वैक्सीन, सबको फ्री में मिलेगी
रूस का बड़ा ऐलान- हमने बना ली कैंसर की वैक्सीन, सबको फ्री में मिलेगी
'कान खोलकर समझ लें, वो हमारे भगवान, मांगें माफी', अमित शाह के बाबा साहेब आंबेडकर वाले कमेंट पर खरगे हुए फायर
'कान खोलकर समझ लें, वो हमारे भगवान, मांगें माफी', अमित शाह के बाबा साहेब आंबेडकर वाले कमेंट पर खरगे हुए फायर
Maharashtra Weather: महाराष्ट्र में शीतलहर की मार, कश्मीर जैसी पड़ रही ठंड! इतना पहुंच गया पारा
महाराष्ट्र में शीतलहर की मार, कश्मीर जैसी पड़ रही ठंड! इतना पहुंच गया पारा
अरे कोई जहर लाकर दे दो! दूल्हा और दुल्हन का एंट्री डांस देखकर बाल नोच लेंगे आप, हर तरफ हो रही किरकिरी
अरे कोई जहर लाकर दे दो! दूल्हा और दुल्हन का एंट्री डांस देखकर बाल नोच लेंगे आप, हर तरफ हो रही किरकिरी
MI का धांसू प्लेयर बना न्यूजीलैंड का नया कप्तान, केन विलियमसन को किया रिप्लेस
MI का धांसू प्लेयर बना न्यूजीलैंड का नया कप्तान, केन विलियमसन को किया रिप्लेस
ओवर ईटिंग की समस्या से हैं परेशान? स्वामी रामदेव ने बताया कंट्रोल करने का तरीका
ओवर ईटिंग की समस्या से हैं परेशान? स्वामी रामदेव ने बताया कंट्रोल करने का तरीका
एग्रीस्टैक परियोजना के तहत 37 लाख किसानों की बनी किसान आईडी, ये काम भी हुआ पूरा
एग्रीस्टैक परियोजना के तहत 37 लाख किसानों की बनी किसान आईडी, ये काम भी हुआ पूरा
Maharashtra: देवेंद्र फडणवीस की सरकार के लिए संजय राउत ने की राहत भरी भविष्यवाणी, ऐसा क्या कह दिया?
देवेंद्र फडणवीस की सरकार के लिए संजय राउत ने की राहत भरी भविष्यवाणी, ऐसा क्या कह दिया?
Embed widget