सेना की भर्ती में जाति का मुद्दा उठाकर विपक्ष ने "सेल्फ गोल" तो नहीं दाग दिया ?
देश को आज़ादी मिलने के इन 75 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि हमारी तीनों सेनाओं पर राजनीति की मनहूस परछाई का ऐसा कोई साया पड़ा हो, जिसके आधार पर दावे से कोई ये कह सके कि हमारी सेनाओं का राजनीतिकरण हो रहा है. हां,ये अलग बात है कि सेना से रिटायर होने के बाद कई अफसरों ने राजनीति का दामन थामा है और इनमें कई पूर्व सेना प्रमुख भी शामिल रहे हैं.
फिलहाल उनमें एक बड़ा नाम पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह का भी है, जो मोदी सरकार के मंत्री हैं. लेकिन बावजूद इसके हमारी सेनाएं आज भी हर धर्म, जाति व राजनीति से अछूती हैं और उनके शौर्य व बलिदान पर हर भारतवासी को गर्व होता है. इसलिये सवाल तो ये भी उठता है कि सेना को राजनीति के अखाड़े में घसीटने के पीछे ये कौन-सी नई सियासत का ताना-बाना बुना जा रहा है?
ये तो किसी से छुपा नहीं है कि सेना में युवाओं की भर्ती को लेकर मोदी सरकार जो "अग्निवीर" योजना लेकर आई है, उसका पुरजोर विरोध विपक्षी दलों ने इसकी घोषणा होते वक़्त ही किया था. लेकिन अब विपक्ष इसे धर्म व जाति से जोड़कर इसकी मुखालफत करते हुए मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है. सवाल ये है कि विपक्ष अपने इस दावे को लेकर जो आरोप लगा रहा है, उसमें कितना सच है और कितना झूठ? और, अगर उसके दावे वाले आरोप का कोई ठोस आधार नहीं है, तो क्या ये हमारी सेनाओं को बदनाम करने की कोई सुनियोजित सियासी कोशिश है और इसका मकसद आखिर क्या है?
दरअसल, सेना में अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने मंगलवार को जो नया विवाद खड़ा किया है, वो थोड़ा चौंकाने वाला भी है. वह इसलिए कि जब विपक्षी दल किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार को घेरने की नीयत से अपने कुर्ते की बाजू ऊपर चढ़ाते हुए संसद में जब बोलते हैं, तो आमतौर पर यहीं माना जाता है कि वे पूरा होम वर्क करके आये हैं. लेकिन सेना की भर्ती प्रक्रिया का गौर से अध्ययन करने के बाद यहीं लगता है कि विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाकर एक तरह से "सेल्फ गोल" कर दिया है.
गौर करने वाली बात ये है कि मुख्य विपक्षी कांग्रेस की बजाय आम आदमी पार्टी और आरजेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां इस विवाद को उठाने की झंडाबरदार बनी हैं. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और आम आदमी पार्टी के नेता व राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने अग्निवीर भर्ती योजना को लेकर जो ट्वीट किए हैं, उनकी भाषा लगभग एक जैसी है.
दोनों नेताओं ने भर्ती विज्ञापन का हवाला देकर मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा है कि जाति प्रमाण पत्र मांगकर मोदी सरकार अग्निवीर नहीं बल्कि जातिवीरों की भर्ती कर रही है. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, "मोदी सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है. क्या मोदी जी दलितों/पिछड़ों/आदिवासियों को सेना में भर्ती के काबिल नहीं मानते? भारत के इतिहास में पहली बार सेना भर्ती में जाति पूछी जा रही है. मोदी जी आपको 'अग्निवीर' बनाना है या जातिवीर"
वहीं लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने तो एक कदम और आगे बढ़ते हुए अपने ट्वीट में लिख दिया कि "जात न पूछो साधु की लेकिन जात पूछो फौजी की...' आजादी के 75 वर्षों तक सेना में ठेके पर अग्निपथ व्यवस्था लागू नहीं थी. सेना में भर्ती होने के बाद 75% सैनिकों की छंटनी नहीं होती थी लेकिन संघ की कट्टर जातिवादी सरकार अब जाति/धर्म देखकर 75 फीसदी सैनिकों की छंटनी करेगी."
अब इन नेताओं के ऐसे आरोपों का जवाब देने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को ही खुद मैदान में कूदना पड़ा. उन्होंने विपक्ष के आरोपों को निराधार बताते हुए यहीं कहा कि सेना की भर्ती प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है. आजादी के समय से ही भर्ती (Recruitment) की ऐसी प्रक्रिया चलती आ रही है. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी कहा सेना में भर्ती के लिए धर्म का कोई काम नहीं है. हालांकि सरकार के लिए थोड़ी परेशानी वाली स्थिति तब बन गई, जब एनडीए की सहयोगी जेडीयू के वरिष्ठ नेता और पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी ट्वीट कर इस मुद्दे पर सरकार से स्पष्टीकरण देने को कहा.
आमतौर पर विपक्षी दलों द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों को लेकर सेना की तरफ से सीधे कोई भी बयान देने से बचा जाता रहा है क्योंकि सरकार ही उनका माकूल जवाब देती रही हैं. चूंकि ये मामला संवेदनशील होने के साथ ही समाज को बांटने की कोशिश से भी जुड़ा है, इसलिए सेना को विपक्ष के नेताओं के आरोपों का खंडन करते हुए आधिकारिक रुप से बयान जारी करने पर मजबूर होना पड़ा.
सेना के अधिकारियों ने कहा कि सेना की किसी भी भर्ती में पहले भी उम्मीदवारों से जाति प्रमाण पत्र और धर्म प्रमाण पत्र मांगा जाता था. इसे लेकर अग्निपथ योजना में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इसके अलावा भारतीय सेना तरफ से ये भी स्पष्ट किया गया कि प्रशिक्षण के दौरान मरने वाले रंगरूटों और सेवा में शहीद होने वाले सैनिकों के लिए धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार अंतिम संस्कार करने के लिए भी धर्म की जानकारी की आवश्यकता होती है. इसलिए सवाल उठता है कि हमारे देश में सही मायने में धर्मनिरपेक्षता का झंडा ऊंचा रखने वाली सेना पर ये आरोप लगाकर विपक्ष ने सरकार को घेरा है या फिर खुद अपनी ही फजीहत कराई है?
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