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नतीजों से पहले विपक्ष ने शुरु की मोर्चे की कवायद

23 मई के नतीजे से पहले विपक्ष अपनी रणनीति बनाने में जुट गया है। मुलाकातों का दौर शुरु हो चुका है। आखिर ये कवायद किस विश्वास की उपज है।

चुनाव के दो चरण अभी बाकी है, लेकिन अब तमाम दिग्गजों की नज़र में नतीजों और उसके बाद बनने वाली सरकार का ताना-बाना बुनने लगी हैं। 23 मई को नतीजों से पहले ही इसके लिए एक बड़ी कवायद भी सामने आ सकती है। ये कवायद सूबों के क्षत्रपों की ओर से हो रही है और इस कवायद के सूत्रधार बने हैं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू। ये दिग्गज मानते हैं कि अबकी बार नहीं होगी मोदी सरकार, इसी उम्मीद के सहारे 21 मई को दिल्ली में बन सकती है बड़ी रणनीति। जिसमें राहुल गांधी तो जुड़े नज़र आ रहे हैं, लेकिन मायावती और अखिलेश से दूरी बनाने की खबरें हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या, नतीजों के बाद की बिछने लगी बिसात? क्षेत्रीय क्षत्रपों के सहारे राहुल-प्रियंका की रणनीति?  माया-अखिलेश के बगैर नए मोर्चे की तैयारी?

तो क्या टूट जाएगा बीजेपी का सपना। मोदी के रहते मुमकिन नहीं होगा। सत्ता में वापसी का प्लान। बीजेपी के सपनों में कौन सेंध लगाने की तैयारी में है। भले ही इन सवालों का ताल्लुक 23 मई की तारीख से है। लेकिन विपक्ष के तेवर तारीखों पर तरीके से उम्मीद लगाए है और माना जा रहा है कि अगर जनादेश स्पष्ट नहीं होगा तो बीजेपी की सरकार रोकने के लिए पूरा जोर लगा दिया जाएगा।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु की मुलाकातों में कुछ ऐसे ही संकेत छिपे हैं। दोनों के बीच दिल्ली में हुई मुलाकात में चुनाव के बाद और नतीजों से पहले बनने वाले समीकरण को लेकर चर्चा हुई। माना जा रहा है कि आखिरी चरण के चुनाव 19 मई को होने के दो दिन बाद 21 मई को विपक्ष की एक अहम बैठक होगी।

राहुल और नायडु के बीच ये मुलाकात पश्चिम बंगाल में ममता की रैली में नायडु के शामिल होने से पहले हुई। बैठक में कई दूसरे मुद्दे मसलन, वीवीपैट, पांच चरणों के वोट प्रतिशत और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव जैसे मुद्दे भी शामिल रहे लेकिन सूत्रों की मानें तो दोनों नेताओं का मुख्य एजेंडा पोस्ट इलेक्शन अलायंस लेकर रहा, जिसमें नतीजों बाद की संभावनाएं टटोली गई। सिर्फ इतना ही सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं अहमद पटेल से मुलाकात की है।

सूत्रों की मानें तो नायडु और राहुल की मुलाकात से मुमकिन है राष्ट्रपति से विपक्षी पार्टियों का दल मुलाकात कर सकता है और अपने गठबंधन की ताकत के आधार पर उनसे गुजारिश कर सकता है कि बहुमत के अभाव में सबसे बड़ी पार्टी को आमंत्रण देने से रोका जाए, क्योंकि विपक्ष का मानना है कि मौजूदा हालातों में बीजेपी का सहयोगी दलों से रवैया उसके बहुमत साबित करने में रोड़ा हो सकता है। हालांकि विपक्ष की कवायद को कोरे सपने मान रही है।

सूत्रों की मानें तो नए मोर्चे की संभावनाओं में ममता बनर्जी का रोल अहम होगा। वैसे भी जिस तरह सीबीआई के मुद्दे पर नायडु के समर्थन में ममता उतरीं थी और ममता की रैली में नायडु ने शिरकत की उससे माना जा रहा है कि ममता की रोल प्ले करेंगी। वहीं दूसरी तरफ इस मोर्चे से बीएसपी और एसपी को भी दूर रखने की बात की जा रही है ताकि किसी तरह की बारगेनिंग या दबाव से दूर रहा जा सके।

गैर बीजेपी सरकार की ये कवायद कांग्रेस के साथ कितना परवान चढ़ेगी और कितना विपक्ष को सत्ता के करीब लाएगी, इसका फैसला तो 23 मई को नतीजों के बाद ही साफ होगा, लेकिन दो दिन पहले शुरू होने वाली नई सरकार की ये कवायद फिलहाल बीजेपी को डराने के लिए है या उकसाने के लिए, इस पर जरूर बहस की गुंजाइश है।

उम्मीदों पर किसी का ज़ोर नहीं। सत्ता की ख्वाहिश तो हर नेता की होती है। ऐसे में किसी थर्ड फ्रंट को लेकर जो कवायद नजर आ रही है, उस पर हमारी चर्चा का लब्बोलुआब यही निकलता है कि अब तक वोटिंग के जो आंकड़े सामने आए हैं, उन्हें देखते हुए लगता नहीं कि त्रिशंकु लोकसभा बनेगी। नेता दुविधा में हो सकते हैं, लेकिन जनता संशय के हालात पैदा करेगी ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि अगर ऐसे हालात बनते भी हैं तो मायावती और अखिलेश को संभावित मोर्चे से अलग रखना भी मुश्किल ही नजर आता है। मतलब ये कि छोटे दलों की नतीजों से पहले होने वाली तैयारी उम्मीदों के आसरे तो ठीक है, लेकिन हकीकत में उसका अमली जामा पहनना दूर की कौड़ी लगता है।

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