पाकिस्तान में संसद भंग हो चुकी है, कैबिनेट भी वजूद में नहीं है, अविश्वास प्रस्ताव पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना बाकी है और इन सबके बीच ऐसी खबरें आ रही हैं कि वहां के चुनाव आयोग ने तीन महीने के भीतर नेशनल असेंबली के चुनाव कराए जाने को लेकर अपने हाथ खड़े कर दिये हैं. एक तरह से वहां संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है. इसलिये बड़ा सवाल ये है कि पाकिस्तान में पैदा हुई इस सियासी अस्थिरता के लिए किसी विदेशी ताकत का मोहरा बनने वाला विपक्ष ही पूरी तरह से जिम्मेदार है या फिर इमरान खान भी उतने ही कसूरवार हैं?


हालांकि इमरान खान इसी बात पर अड़े हुए हैं कि उनकी सरकार गिराने के लिए अमेरिका ने ही साजिश रची थी और विपक्षी नेताओं ने इसे अंजाम तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इमरान के इस दावे को अब रूस से भी खुला समर्थन मिल गया है जिसके बाद पाकिस्तान की सियासत में नाटकीय मोड़ आना लाजिमी है.


रूस ने अपने बयान में इमरान खान के लिए अमेरिका द्वारा दिये गए 'जिद्दी' शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा है कि अमेरिका ने न केवल पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश की है बल्कि 'ज़िद्दी' इमरान ख़ान को सबक सिखाने की भी कोशिश की है. रूसी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में पाकिस्तान के हालिया राजनीतिक घटनाक्रम पर बहुत सारी ऐसी बातें कही गई हैं जो एक साथ तीन मुल्कों के कूटनीतिक रिश्तों में एक नया तूफ़ान लाने का जरिया बन सकती हैं.


रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा द्वारा जारी इस बयान में कहा गया है, "इस साल जैसे ही प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की 23 और 24 फरवरी को मॉस्को यात्रा का एलान हुआ, उसके फ़ौरन बाद अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देश प्रधानमंत्री पर अभद्र तरीक़े से इस बात के लिए बेज़ा दबाव डालने लगे कि वे अपना दौरा रद्द कर दें." "लेकिन इसके बावजूद जब वे हमारे यहां आए तो अमेरिकी विदेश विभाग के दक्षिण एशिया मामलों के डिप्टी सेक्रेटरी डोनाल्ड लू ने वाशिंगटन में पाकिस्तान के राजदूत को तलब किया और इमरान ख़ान के मॉस्को दौरे को फ़ौरन रद्द करने की मांग की, जिसे खारिज कर दिया गया."


रूसी विदेश मंत्रालय के इसी बयान में ये भी दावा किया गया है कि उसी मुलाकात में अमेरिकी अधिकारी ने पाकिस्तानी राजदूत के सामने ये साफ कर दिया था कि अमेरिका के साथ साझीदारी तभी संभव है, जब इमरान खान को सत्ता से बेदखल कर दिया जाए. कूटनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सरकार गिराने के मुद्दे पर रूस का इस तरह से इमरान खान के समर्थन में खुलकर आना थोड़ा हैरान करने वाला भी है. हालांकि ये इमरान के लिए दोबारा सत्ता में आने के लिए काफी हद तक मददगार भी हो सकता है लेकिन अगर आम चुनाव के बाद इमरान की पार्टी पीटीआई की बजाय संयुक्त विपक्ष अगर सत्ता में काबिज हो गया, तब उस सरकार को अपने कथित अमेरिकी रिश्तों के चलते रूस और चीन की भारी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है और पाकिस्तान की हालत पहले से भी ज्यादा बदहाल हो सकती है.


संसद भंग कराने के बाद इमरान खान के तेवर और ज्यादा तीखे हो गए हैं और वे अपने भाषणों के जरिये अवाम को ये भरोसा दिलाने में जुटे हुए हैं कि वे दोबारा सत्ता में वापसी कर रहे हैं. उन्होंने मंगलवार को लाहौर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए फिर से विदेशी साज़िश रचने की बात दोहराई. उनके मुताबिक इस साजिश के कई सूत्रधारों को पता भी नहीं था कि वे इस साजिश का हिस्सा बन रहे हैं. उन्होंने कहा कि तीन महीने में पाकिस्तान में चुनाव होंगे. इस बार हम इस पर कड़ी नजर रखेंगे कि किसे टिकट देना है.


विपक्ष पर हमलावर होते हुए इमरान खान ने बेहद तल्ख भाषा में कहा कि, "इस बार हम उन्हें सबक सिखाएंगे. यह देश उन्हें नहीं बख्शेगा. उन्हें सबक सिखाया जाएगा. उनकी राजनीति को कब्र में दफनाया जाएगा. "सरकार गिराने की साजिश रचने वाले नेताओं की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "तुम गुलाम हो हम नहीं, ये आजाद कौम है. हम किसी की गुलामी नहीं करते. जिन्होंने बाहरी मुल्क में साजिश की वो सब गद्दार हैं. एक जिन्दा कौम खड़ी रहती है. इस साजिश को कभी कामयाब नहीं होने देगी."


लेकिन इमरान खान ने अपने जिस 'गेम प्लान' के तहत नेशनल असेंबली भंग करवाकर तीन महीने के भीतर आम चुनाव कराने की जो रणनीति बनाई थी, वहीं अब उनके लिए एक बड़ी चुनौती बनती नज़र आ रही है. वजह ये है कि पकिस्तान के वहुनाव आयोग के हवाले से बड़ी ख़बर ये आई है कि वह अचानक तीन महीने के कम समय में चुनाव नहीं करा पाएगा. उसे इसके लिए कम से कम छह महीने का समय चाहिए होगा.


पाक के सियासी जानकारों के मुताबिक दूसरी कई सरकारी संस्थाओं की तरह चुनाव आयोग के साथ भी इमरान ख़ान के अच्छे संबंध नहीं हैं. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और कई अन्य मामलों को लेकर हाल के दिनों में दोनों के बीच तनाव काफ़ी बढ़ गया था. ऐसे में जरूरी नहीं कि चुनाव आयोग अब इमरान के इशारों पर काम करे.


पाकिस्तान के 'डॉन' अखबार की खबर के अनुसार इलेक्शन कमीशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि हाल ही में निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन हुआ है, ख़ासतौर से ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में जहां 26 वें संशोधन के तहत सीटों की संख्या में वृद्धि की गई थी, वहां के जिलों और निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार मतदाता सूची का मिलान बड़ी चुनौती है. उनके मुताबिक काम पूरा होने में कम से कम तीन महीने लगेंगे, जिसके बाद मतदाता सूची को अपडेट करना एक और बड़ा काम होगा.


चुनाव सामग्री ख़रीदना, बैलट पेपर की व्यवस्था और मतदान कर्मचारियों की नियुक्ति और प्रशिक्षण भी बड़ी चुनौतियां हैं. कानून के तहत वॉटरमार्क वाले बैलट पेपर्स का इस्तेमाल करना होता है, जो देश में उपलब्ध नहीं है और उन्हें आयात करना पड़ेगा. इलेक्शन कमीशन पहले ही बलूचिस्तान में स्थानीय निकाय चुनावों के शेड्यूल की घोषणा कर चुका है, जहां 29 मई को वोटिंग का दिन निर्धारित किया गया है, जबकि पंजाब, सिंध और इस्लामाबाद में भी स्थानीय निकाय चुनाव हो रहे हैं. आम चुनाव कराने की स्थिति में स्थानीय निकाय चुनाव की योजना को रोकना पड़ेगा.


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