कांग्रेस और समाजवादी पार्टी समेत देश के 19 राजनीतिक दलों ने नए संसद भवन के 28 मई को होने जा रहे उद्घाटन का बहिष्कार किया है. इसका मुख्य कारण नए संसद भवन के उद्घाटन की तारीख और बिना राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मु के ही पीएम मोदी की तरफ से इस नए संसद भवन का उद्घाटन किया जाना. विपक्ष की तरफ से साफ कहा गया है कि ये राष्ट्रपति कार्यालय का अपमान है और संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. विपक्ष की तरफ से एक साझा बयान में कहा भी गया है कि प्रधानमंत्री की तरफ से खुद ही उस बिल्डिंग का उद्घाटन करने का फैसला लोकतंत्र पर सीधा हमला है. नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को किया जाना है.
जिन 19 दलों ने नई बिल्डिंग के उद्घाटन के बहिष्कार करने का फैसला किया है, वो हैं- कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, शिव सेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी, टीएमसी, जनत दल यूनाइटेड, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, सीपीएम, आरजेडी, आईयूएमएल, नेशनल कॉन्फ्रेंस, सीपीआई, जेएमएम, केरल कांग्रेस (मणि), आरएलडी, आरएसपी, डीएमके और विदुथलाई चिरुथिगल कच्ची.
इसकी क्या थी जरूरत
नया संसद भवन उस वक्त बनाया गया जिस समय कोविड काल चल रहा था. हमलोगों ने कहा था कि कोविड के चलते लोग परेशान हैं. लोगों की मौतें हो रही हैं और जरूरत इस वक्त लोगों की मदद करने की है. उस समय वे नया संसद भवन बनाने की बात कर रहे थे. अब चूंकि संसद भवन बन गया है तो उसका उद्घाटन अब राष्ट्रपति से कराइये. राष्ट्रपति हमेशा से दोनों सदन को बुलाते रहे हैं. यही उनका अधिकार है. इसलिए नए संसद भवन का राष्ट्रपति के हाथों से उद्घाटन कराया जाना चाहिए था, जो नहीं हो रहा है.
दूसरी बात ये कि पार्लियामेंट चलती नहीं है. जब पार्लियामेंट चलने नहीं दिया जाता है, पार्लियामेंट में जनहित के मुद्दों पर चर्चा होती नहीं है, तब बताइये कि क्यों पार्लियामेंट हैं. पुरानी पार्लियामेंट थी तो आपने कोई चर्चा नहीं की. अभी जो सेशन चल रहा था क्या उसमें राष्ट्र के मुद्दों पर चर्चा हुई? क्या महंगाई और बेरोजगारी पर चर्चा हुई? किसानों पर चर्चा हुई? जो बिल पास किया गया था उसको लेकर विपक्ष ने मना किया था. विपक्ष के मना करने के बावजूद सरकार ने इस बिल को पास किया गया और किसान धरने पर बैठे रहे. इस दौरान न जाने कितने किसानों की मौत हो गई और इसके बाद इन्होंने उस बिल को वापस लिया.
विपक्ष का नहीं सम्मान
इसी तरह जब नोटबंदी की बात थी उस वक्त भी हमलोगों ने ये कहा था कि 2 हजार के नोट अभी मत लाओ. इसकी कोई जरूरत नहीं थी. उसके बावजूद सरकार 2 हजार रुपये का नोट लेकर आई और उसके बाद उस 2 हजार के नोट को वापस लिया. मेरा कहना का मतलब ये है कि आप विपक्ष का सम्मान नहीं कर रहे हैं तो फिर लोकतंत्र का सम्मान कैसे होगा? लोकतंत्र के मंदिर में विपक्ष का सम्मान नहीं है, विपक्ष को बोलने नहीं दिया जाता है. विपक्ष की आवाज दबा दी जाती है. तो फिर ये लोकतंत्र का मंदिर कैसे है, जो उसे बोलने का मौका ही नहीं दिया जाता है.
सांसद नए या फिर भव्य बनाने से नहीं होगा. आप कहेंगे कि पार्लियामेंट भव्य बन जाए लेकिन वहां पर बेरोजगारी पर चर्चा न हो, तो पार्लियामेंट की भव्यता का क्या फायदा? पार्लियामेंट भव्य बनेगी लेकिन महंगाई पर कोई बात नहीं होगी और लोगों की महंगाई से कमर टूट जाए, तो ऐसी पार्लियामेंट की भव्यता का क्या फायदा? पार्लियामेंट बिल्डिंग भव्य बनेगी लेकिन वहां पर किसानों की बात नहीं होगी. ऐसी भव्य पार्लियामेंट का क्या मतलब? पार्लियामेंट भव्य बनेगी लेकिन समाज से जुड़े मुद्दों पर चर्चा नहीं होगी इस फिर पार्लियामेंट की ऐसी भव्यता का फायदा क्या है?
ऐसी भव्यता का क्या फायदा?
पार्लियामेंट भव्य तब बनती है जब लोगों की समस्याओं का समाधान हो. जब लोगों में खुशहाली हो. लोगों की उन्नति हो रही है, हर युवा अपने पैरों पर खड़ा हो रहा हो और महिलाओं की समस्या का समाधान किया जा रहा हो. किसान खुशहाल हो, तब पार्लियामेंट भव्य बनती है. बिल्डिंग बनाने से कोई पार्लियामेंट या देश भव्य नहीं बनता है. देश भव्य बनता है जब लोकतंत्र मजबूत बनता है. जब वहां के लोगों को उन्नति होती है. जब लोगों की वहां पर महंगाई से कमर न टूटती हो. लोगों को खुशहाली देने की जिम्मेदारी सरकार की होती है, जो नहीं कर रही है, ये चिंता की बात है.
पार्लियामेंट भवन बीजेपी के पैसे से तो बना नहीं है. ये तो जनता के पैसे से बनाया गया है. हर चीज को भारतीय जनता पार्टी ये कहती है कि उसने किया है. ये उसने नहीं किया बल्कि जनता का पैसा उसमें लगा है. ये बात बीजेपी को समझने की जरूरत है. इससे पहले भी देश में काम होते रहे हैं. अभी ऐसा कुछ नया नहीं है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]