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Organ Donation में क्या उम्र सीमा नहीं है बाधक, कोई भी व्यक्ति कर सकता है अंगदान? जानें सभी जवाब

प्रधानमंत्री जी ने अंगदान को लेकर बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है. अगर हम भारत में अंगदान के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो हम पाते हैं कि सिर्फ लिवर की बीमारी से या लिवर के कैंसर से प्रतिवर्ष दो लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है. वहीं, 20 से 50 हजार तक के केसेस में तो लिवर ट्रांसप्लांट करने की जरूरत पड़ती है. लेकिन वर्तमान समय में गौर करें तो ट्रांसप्लांटेशन का आंकड़ा बहुत कम देखने को मिलता है. पिछले साल 2022 में पूरे देश में मात्र 3000 लोगों का ही लिवर ट्रांसप्लांट हो पाया है. उसमें से भी केवल 700 से 800 के बीच ही अंगदान के जरिये हो पाया है. बाकी सारे मामलों में परिवार वालों ने अपने लिवर का एक हिस्सा दिया है. तो इन आंकड़ों से हमें यह स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि देश में अंगदान को बढ़ावा देना और लोगों को इसके प्रति जागरूक करना कितना जरूरी है.

वहीं, अगर किडनी ट्रांसप्लांट के सरकारी आंकड़ों पर भी गौर करें तो पता चलता है कि उसके लिए भी तकरीबन दो लाख ट्रांसप्लांटेशन की आवश्यकता है. लेकिन अगर हम 2022 में हुए ओवरऑल हुए ट्रांसप्लांटेशन की बात करें तो कुल 15000 हुए हैं. लेकिन जरूरत इससे कहीं ज्यादा है. एक तरीके से अंगदान के लिए हमें वर्तमान आंकड़ों से 10 गुणा अधिक की आवश्यकता है. इसलिए अंगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि किडनी और लिवर से संबंधित जो बीमारियां हैं उन केसेस में ट्रांसप्लांटेशन और अंगदान की वजह से किसी की भी जिंदगी पूरी तरह से सामान्य हो सकता है. अगर सही समय पर डोनर मिले और ऑर्गन मिल जाए तो इन सबकी जाने बच सकती हैं और हेल्थ केयर का खर्चा भी कम हो सकता है...तो इससे हर तरह से फायदा ही होना है.  

हमने महाराष्ट्र में और दुनिया भर में देखा है कि अगर कोई 75 से 80 साल का व्यक्ति भी अपना अंगदान करता है और अगर उनके ऑर्गन की गुणवत्ता अच्छी है तो किसी की भी जान बचाई जा सकती है. यहां महाराष्ट्र में हमने कोकिलाबेन धीरूभाई अस्पताल में भी 80 वर्ष तक के व्यक्ति का लिवर ट्रांसप्लांट करके मरीजों की जान बचाई है. प्रधानमंत्री जी ने जो बात कही की 65 के ऊपर के मरीज जिनके की लिवर और किडनी खराब हैं उनको भी हम ऑर्गन देंगे. इससे पहले ये रूल नहीं था कि उनको ऑर्गन मिल सकता है लेकिन अब वो भी हो सकता है...तो जो बीमार हैं उनके लिए भी एक उम्मीद की किरण जाग गई है.

भारत में अंगदान के लिए कानून तो 1994 से ही है. इस कानून के तहत कोई भी व्यक्ति अपना अंगदान कर सकता है. अगर किसी को कोई बीमारी हो और अगर उसे नहीं बचाया जा सकता है और वह व्यक्ति भी अपना अंगदान करने की इच्छा व्यक्त करता है तो उसके भी ऑर्गन लिए जा सकते हैं. लेकिन इस तरह के मामलों में हम उसकी मेडिकल फिटनेस देखते हैं. किडनी और लिवर के केस में तो उसके परिवार के लोग भी अपना एक हिस्सा दे सकते हैं.

दोनों तरह के मामलों में कानूनी रूप से पूरी व्यवस्था की गई है. जब कोई जीवित व्यक्ति अपना अंगदान करता है तो उसके लिए हरेक ट्रांसप्लांटेशन से पूर्व एक सरकारी कमेटी और लोक ऑथोराइज्ड कमेटी होती है जोकि सभी तरह के पेपर वर्क और मेडिकल फिटनेस की जांच को देखती है और सब कुछ अगर कानूनी प्रक्रिया के तहत सही पाया जाता है और कोई वित्तीय लेनदेन नहीं हुआ है तो उसके बाद वो ट्रांसप्लांटेशन की अनुमति प्रदान करती है. अप्रूवल मिलने के बाद ही हम ट्रांसप्लांट कर सकते हैं. वहीं, अगर कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु से पूर्व अंगदान करने की इच्छा व्यक्त करता है और उसमें उसके परिवार की भी सहमति है तो इसमें बड़ा ही आसान सा कानूनी प्रक्रिया है. ये काम किसी भी अस्पताल में किया जा सकता है. वो अपने डॉक्टर को बताएं की हमारी ये इच्छा है.

ब्रेन डेथ के केस में कोई भी व्यक्ति अपना अंगदान कर सकता है. चूंकि इस तरह के मामले में हमारा दिमाग तो काम करना बंद कर देता है लेकिन हार्ट, लिवर और किडनी में खून का प्रवाह होता रहता है मशीन के जरिए क्योंकि वो वेंटिलेटर पर होते हैं तो ये ऑर्गन काम कर रहे होते हैं. ब्रेन डेथ के बाद कार्डियक डेथ यानी ब्रेन के जाने के बाद हार्ट भी काम करना बंद कर देता है और फिर धीरे-धीरे सारे ऑर्गन अपना काम करना बंद कर देते हैं. ये एक नेचुरल प्रक्रिया है..तो ब्रेन डेथ के मामले में तकरीबन 24 से 72 घंटो तक ऑर्गन को सुरक्षित रूप से बाहर निकाला जा सकता है. लेकिन इसका दूसरा हिस्सा ये भी है कि अगर हम ऑपरेशन करने के बाद ऑर्गन को निकाल लें तो लिवर को हमें 8-12 घंटे के अंदर उपयोग कर लेना होता है. वहीं, हार्ट और लंग्स को 4 से 6 घंटे के अंदर और किडनी को तकरीबन 12 से 18 घंटे में ट्रांसप्लांट कर देना होता है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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