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प्रकृति के साथ समन्वय बिना विकास है अधूरा, वातावरण में संतुलन इसीलिए नहीं है पूरा

दौड़ती भागती आज की दुनिया में विकास की जो राह है वो वाकई चौंकाने वाली है. इस विकास की राह पर चलते हुए हम अपने विनाश के रास्ते खुद ही बनाते चले जा रहे हैं. विकास और तकनीक की दुनिया में हम कहीं न कहीं अपनी प्रकृति के प्रति उदासीन होते गए, जिसका परिणाम आज देखने को मिल रहा है. इसका ताजा उदाहरण 2024 के ग्रीष्मकाल का समय है. प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के कारण आज हम वायुमंडल को इतना गर्म कर चुके हैं कि इस बार की गर्मी ने अब तक की सबसे अधिकतम तापमान ने रिकार्ड तोड़ दिया. दिल्ली में तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस साल 2024 में रिकॉर्ड किया गया और पहली बार काफी मात्रा में हिमालय के ग्लेशियर पिघले हैं. ये सारी घटनाएं ये बताती है कि हमने प्रकृति का ख्याल नहीं रखा, जिसके कारण अब प्रकृति रूठ चुकी है. अगर अभी से कुछ हद तक काम किया जाए तो शायद जीने लायक धरती बच पाए. इस बार की गर्मी ने ये तो बता दिया कि आगे का आना वाला वक्त और भी काफी खराब रहने वाला है. 

अंधाधुंध विकास और प्रकृति

विकास के नाम पर पक्के के घर बनते गए, घर आंगन, तालाब-पोखर, गलियां तक पक्के हो गए. पोखर के किनारों तक का हमने पक्कीकरण कर दिया ताकि पैरों तक मिट्टी की पहुंच ना हो, लेकिन आज वही घातक बनते जा रहा है. खेत की भूमि कम होती गयी, उस पर पक्के मकान बनते गए. सड़कें, रेलगाड़ी, एक्सप्रेसवे के साथ कई विकास के काम होते गए, लेकिन पर्यावरण के बारे में हमने नहीं सोचा. आसमान से आ रही धूप को जमीन सोख नहीं पा रहा है क्योंकि अधिकांश भूमि पक्की हो चुकी है. इस कारण तापमान पृथ्वी के सतह पर ही रह जा रही है. दूसरा नुकसान ये है कि हर जगह पर पक्कीकरण होने के कारण जमीन के अंदर बारिश का पानी नहीं जा पा रहा, जिस कारण भू जल का रिचार्ज नहीं हो पा रहा. आज कई जगहों पर नहरों को भी पक्का कर दिया गया है. पानी जमीन के अंदर नहीं जाने के काऱण भू जल में लगातार कमी होती जा रही है. पानी की कमी का दंश सिलिकॉन सिटी कहे जाने वाले बेंगलुरु और देश की राजधानी दिल्ली दोनों ने भयानक तौर पर झेला है. इसके बावजूद लोग चेत नहीं रहे हैं. जलवायु परिवर्तन की बात हर जगह सुनने को मिल रही है पर इसका गंभीरता से कोई नाता नहीं है. जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि बिना मौसम बारिश, आंधी और तेज धूप देखने को मिल रहे हैं. देश ने  हाल-फिलहाल में तरक्की की है तो दूसरी ओर पर्यावरण का खूब नुकसान हुआ है. विकास के नाम पर पेड़ों को काट कर, पहाड़ों को तोड़कर आगे बढ़ते गए. 

पूरा विश्व परेशान 

ऐसा नहीं है कि भीषण गर्मी की चपेट में सिर्फ भारत है बल्कि पूरे विश्व के कई देश ऐसी भीषण गर्मी की जद में आए हैं. भारत के अलावा अमेरिका भी गर्मी की चपेट में है. इसके अलावा पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देश भी इसका खामियाजा भुगत रहे हैं. गर्मी के अलावा पेयजल की किल्लत भी पूरी दुनिया के लिए समस्या बनते जा रही है. ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में हुआ है. दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी  परिवर्तन को देख रही है. यूरोप, अफ्रीका और साउथ एशिया में भी कई जगहों पर ऐसी परेशानी झेलनी पड़ रही है, उसमें से एक देश भारत भी है. कई देश  जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रहे हैं.  बेतहाशा गर्मी का कारण का एक वजह कार्बन उत्सर्जन भी है, जिसको नियंत्रण करने की सभी प्रक्रिया विफल साबित हुई है. कंपनियों और चिमनियों से निकलने वाले काले धुएं के कारण भी कार्बन उत्सर्जन तेजी से हो रहा है. इसके लिए भी अभी तक कोई ठोस रणनीति बनाने में सभी लोग विफल रहे हैं. गाड़ियो से निकलने वाला धुआं और कूड़ा भी कार्बन के उत्सर्जन का मुख्य कारण है.

बढ़ता तापमान, गलते ग्लेशियर  

बढ़ते हुए तापमान के कारण पहाड़ी और घाटी में बर्फबारी में कमी आई है. ठंड में भी कम बर्फबारी हो रही है जबकि इस बार गर्मी के अधिक होने के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है, जिसका संकेत ठीक तो बिल्कुल ही नहीं माना जा सकता है. दूसरी ओर दिन-प्रतिदिन नदियों का स्तर सिमटते जा रहा है. कई नदियां अभी गर्त में चली गई है तो कई सुख चूकी हैं. कई जगहों पर तो नदियों की जगह को भी कम कर दिया गया. हिमालय में ग्लेशियर काफी तेजी से पिघलते हुए देखे गए हैं. कुछ जगहों पर इस कारण नदियों में तेजी से पानी की रफ्तार भी देखने को मिला. अगर ऐसा ही हाल रहा तो बाढ़ की स्थिति आ जाएगी.  भारत एक ऐसा देश है, जहां नदियों को पूजा जाता है. गंगा नदी को मां की संज्ञा दी गई है. उसके सफाई के लिए नमामि गंगे योजना शुरु हुई लेकिन कुछ खास ना हो सका. आज भी कई शहरों का गंदा पानी गंगा में आकर गिरता है. शव का दाह संस्कार करने के बाद लोग अस्थियां बहा देते हैं. गंगा का जल भी अब उतना पवित्र नहीं रहा. दूसरी ओर यमुना नदी का पानी इस कदर है कि पशु भी पानी पीने से बचने की कोशिश करता है. इसके अलावा भारत की कई नदियां हैं जो गंदगी का दंश झेल रही हैं और कई तो लगभग विलुप्त होने के कगार पर हैं.  

पर्यावरण संरक्षण का काम

पर्य़ावरण के संरक्षण का महत्व अब लोगों को समझ जाना चाहिए. इस गर्मी ने ये तो बता दिया कि आने वाला समय काफी कठिन रहने वाला है. दिल्ली में 52 तो नागपुर में 56 डिग्री सेल्सियस तक तापमान जाना इसका एक संदेश है. पर्यावरण के संरक्षण से ही हम कुछ हद तक काबू करने का प्रयास कर सकते हैं. कोविड में लॅाकडाउन के समय पर्यावरण और वातावरण काफी स्वच्छ हो गया था, मानों हम प्रकृति की दी गयी जिंदगी में वापस आ गए थे. जैसे ही स्थिति सामान्य हुई फिर से प्रदूषण बढ़ते गया और फिर से वही स्थिति हो गई. पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक से अधिक पौधे लगाने, प्रकृति के पास जाने, नदियों को ठीक रखने आदि पर काम करना होगा. ग्लोबल वार्मिंग के असर को रोकने या कम करने के लिए हमें स्थानीय स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पर काम करना होगा. इसकी शुरुआत लोकल स्तर पर आंदोलन के रूप में जंगल को बचाने के लिए काफी प्रयास करने से ही होगा.  

आज हर किसी के पास एक से दो वाहन है. हर दिन बेतहाशा ईंधन के उपयोग से वायुमंडल पर काफी प्रभाव पड़ रहा है. दिल्ली में ठंड के समय तो लोगों को सांस तक लेने में दिक्कत होने लगती है. हमें ईंधन के उपयोग पर भी काम करना होगा ताकि वायुमंडल को ठीक रख सके. ईंधन के उपयोग से वाहनों और उससे निकलने वाले धुएं काफी नुकसान करते हैं. इसको कम करने पर भी विचार करना होगा. दुनिया में जिस कदर जनसंख्या बढ़ी है, उसके बाद से वाहनों की संख्या भी काफी बढ़ी है. इसके बाद अधिक गाड़ियो के उपयोग से पर्य़ावरण को भी काफी हद तक क्षति हो रही है. 

समुद्र का बढ़ता जलस्तर

विकास के नाम पर सड़कों को कंक्रीट का बना दिया, गलियां पक्की हो गई, तालाबें पक्की हो गई. इसके कारण पानी जमीन के अंदर नहीं जा पा रहा, जिस कारण ही भूजल रिचार्ज नहीं हो पा रहा है. इस कारण बारिश का पानी नदियों के माध्यम से समुद्र में जा रहा है. ग्लेशियर के पिघलने के कारण भी समुद्री जलस्तर में काफी बढ़ोतरी हो रहा है. इससे ये संकट होगा कि आने वाले समय में छोटे टापू और टापू पर के देश समुद्र में विलीन हो जाएंगे, इसके लिए भी अभी से ही रणनीति बनाकर काम करना होगा. धरा पर रहने के लिए आधुनिकता से दूर जाकर हमें प्रकृति पर ध्यान देना होगा. देश में विकास के लिए जीडीपी का दर देखा जाता है, लेकिन जीडीपी के तर्ज पर पर्यावरण संरक्षण का भी एक मानक होना चाहिए ताकि पता चल सके कि सरकार और लोगों ने इसके लिए क्या कुछ किया है. प्रकृति सभी के लिए होती है. इसलिए प्रकृति सबसे ही होनी चाहिए, जिसकी शुरूआत करने की जरूरत है. हर व्यक्ति को ये सोचना होगा कि वो जितना प्रकृति का उपयोग कर रहा है और उसने प्रकृति को क्या दिया है. आज के समय में तथाकथित विकास के नाम पर कई चीजों को भूल गए है. लोगों को ये जानने की जरूरत है कि विकास और समृद्धि दोनों में अंतर होता है. विकास जो हुआ है वो हमारी आंख के सामने हैं, लेकिन समृद्धि में ये होना चाहिए उसमें प्रकृति भी शामिल होनी चाहिए. कुल मिलाकर हमें अब आधुनिकता के साथ प्रकृति पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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