(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
नाजुक मोड़ पर है पाकिस्तान, अब PM शहबाज शरीफ के झांसे में न आए हिन्दुस्तान
पाकिस्तान के हालात बेहद दिलचस्प होते जा रहे हैं. पाकिस्तान के लिए ये बेहद नाजुक मोड़ है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत से बातचीत के प्रस्ताव से जुड़ा इंटरव्यू सोमवार को सबसे पहले दुबई के टीवी अल अरबिया को दिया. उसके तुरंत बाद पाकिस्तान के पीएमओ ने पीएम शहबाज शरीफ के बयान पर स्पष्टीकरण भी दे दिया कि जो भी वो भारत के साथ पीस टॉक और सिंसियर टॉक की बात कर रहे हैं, वो तभी मुमकिन है, जब भारत अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के लीगल स्टेटस को रिवर्स कर लेता है. ट्वीट के जरिए कहा गया कि रिवर्स करने के बाद ही कोई बातचीत हो सकती है.
इससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान की ओर से बातचीत का प्रस्ताव बेबुनियादी बातें हैं क्योंकि भारत के लिए अनुच्छेद 370 को दोबारा रिवर्स करना नामुमकिन है. मैं समझता हूं कि ये थोड़ा बेताल वाला कहानी है.
टू स्टेप फॉरवर्ड, वन स्टेप बैकवर्ड
शहबाज शरीफ का बयान 'टू स्टेप फॉरवर्ड, वन स्टेप बैकवर्ड' वाली बात है क्योंकि पाकिस्तान की अंदरुनी स्थिति बहुत नाजुक है. हर पहलू से समीक्षा करने पर ऐसा ही लगता है. एक तो उनकी आर्थिक स्थिति बदतर होते जा रही है. दूसरी तरफ इंटरनल सिक्योरिटी के हालात भी खराब होते जा रहे हैं. पिछले दो महीनों से पाकिस्तान में टीटीपी उनके फौज और पुलिस अधिकारिओं के ऊपर हमला कर रहा है. टीटीपी यानी पाकिस्तानी तालिबान उनके लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है. पहले ये चुनौती थी, अब खतरा बन गया है.
शहबाज शरीफ की राजनीतिक स्थिति अच्छी नहीं
राजनीतिक स्तर पर देखेंगे तो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का जो स्थिति है, वो अच्छी नहीं है. इमरान खान के समर्थन बार-बार उनको चुनौती दे रहे हैं, ललकार रहे हैं. इस तरह से हर पहलू से पाकिस्तान की स्थिति नाजुक है. इसलिए शायद पीएम शहबाज शरीफ ने एक कूटनीतिक दायरे में भारत से बातचीत का इस तरह का प्रस्ताव किया है. हालांकि पाकिस्तान ने तुरंत इसको बैकट्रैक भी कर दिया है. भारत को लेकर बयान इस वक्त पाकिस्तान के जो आंतरिक हालात हैं, उसका एक प्रतिबिम्ब है.
आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं
हम जानते है दहशतगर्दी को लेकर हमने एक प्रकार से पाकिस्तान के हाथ बंधवाने की कोशिश किया है. हम जानते है कि मोदी सरकार के पहले टर्म में उन्होंने एक गंभीर पहल की थी. लेकिन उसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं नकला था. उसके बाद भारत के पास बार-बार इसके सबूत आए कि पाकिस्तान का आईएसआई और खुफिया एजेंसियां दहशतगर्दी का समर्थन कर रहे हैं. हमने बार-बार यही कहा है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं हो सकता है. इसके बावजूद भारत ने साथ-साथ एक बैक चैनल से लाइन ऑफ कंट्रोल(LOC) के ऊपर थोड़ा स्टैबिलिटी लाने के लिए एक प्रकार का डायलॉग किया था. बैक चैनल से ये डायलॉग कमर जावेद बाजवा के पाकिस्तान के सेना प्रमुख रहने के दौरान हुआ था. भारत अपनी तरफ से जरूर शांति चाहता है, पर उसके लिए जो फ्रेमवर्क है, वो सही होना चाहिए. मेरी निजी राय है कि बातचीत के फ्रेमवर्क में अनुच्छेद 370 को जोड़ना बिल्कुल सही नहीं होगा.
पाकिस्तान में स्थिरता चाहता है भारत
लॉन्ग टर्म के लिए हम भी वहीं चाहते हैं कि पाकिस्तान के अंदरुनी हालात स्थिर रहे. सीमाओं के ऊपर उथल-पुथल होता है तो भारत के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है. ये बीते 25-30 साल से हमने देखा है, जब से शीत युद्ध खत्म हुआ है. चाहे अफगानिस्तान हो या पाकिस्तान हो, दहशतगर्दी का जो लहर है या कट्टरपंथी इस्लामिक गुट की प्रतिक्रियाओं और गतिविधियों का असर भारत के अंदरुनी पॉलिटिक्स के ऊपर भी होता है. लॉन्ग टर्म के लिए भारत को यहीं ऑब्जेक्टिव रखना चाहिए कि हम शांति जरूर चाहते हैं, अमन चाहते हैं, परंतु वो धमकी के साथ नहीं हो सकता है. ये नहीं हो सकता कि आप आतंकवाद को समर्थन दीजिए और अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर में रिवर्स करने को कहें, तभी बातचीत हो सकती है, ये बिल्कुल मुमकिन नहीं है. शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ एक-दूसरे के कट्टर खिलाफ थे, फिर भी उनके बीच में बातचीत होती थी. जब दोनों देशों के पास इस प्रकार की क्षमता है, खासकर परमाणु क्षमता और बीच में चीन का भी एक हाथ है. ऐसे में डायलॉग होना चाहिए या डायलॉग के चैनल जो हैं, वे होने चाहिए. बेशक सहमति न हो, पर आपस में बातचीत के लिए एक फ्रेमवर्क होना चाहिए. जो भी हमारे बैक चैनल हैं, उसने साबित किया कि उसका भी आउटकम हो सकता है.
पाकिस्तान के रुख का इंतजार करे भारत
मेरा मानना है कि शहबाज शरीफ के बयान का स्टडी होना चाहिए. हमारे पास जितने भी एजेंसी हैं, ऑफिसियल्स हैं, जरूर इसको बारीक तरीके से देखेंगे कि पाकिस्तान के तरफ या पाकिस्तान की फौज की तरफ से कल या परसों और कौन सा बयान आएगा. ये पाकिस्तान में कई बार हुआ है कि पॉलिटिकल लीडरशिप ने कुछ कहा है और उसके थोड़े समय बाद पाकिस्तान सेना के मुख्यालय रावलपिंडी से कुछ और टिप्पणी आती है. इसलिए इस वक्त वेट एंड वॉच वाला पॉलिसी सही है. इस पॉलिसी के तहत देखना है कि पाकिस्तान कहां तक पहुंचेगा अपनी पीस प्रोसेस में, और कहां तक अपने लक्षण में बदलाव लाएंगे, खासकर दहशतगर्दी को लेकर.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]