आतंकवाद को पैदा करके उसे पालने-पोसने वाला और उसे भारत के ख़िलाफ़ सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाला हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान आज कुछ ज्यादा ही खुश हो गया है. इस खुशी की बड़ी वजह ये है कि छह साल की मशक्कत करने के बाद वो अब फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी FATF की लिस्ट से बाहर हो गया है. ये वो संस्था है, जो दुनिया में टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग पर वैश्विक निगरानी रखती है और उसी हिसाब से तय करती है कि कौन-सा देश उसकी किस लिस्ट में आने के काबिल है.


साल 2018 से इस संस्था ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे लिस्ट में डाला हुआ था जिसका मतलब ये है कि यह देश दुनिया में आतंकवाद को फैलाने में आर्थिक तरीके से आतंकियों की मदद कर रहा है. लेकिन फ्रांस की राजधानी पेरिस में इस संगठन की हुई ताजा बैठक के बाद एफएटीएफ की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वित्तीय आतंकवाद से निपटने में पाकिस्तान की महत्वपूर्ण प्रगति स्वागत योग्‍य है.


लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इस ग्रे लिस्ट से बाहर होने के बाद पाकिस्तान को अब विश्व बैंक आईएमएफ और एशियाई विकास बैंक जैसे अंतराष्ट्रीय संगठनों से जो भरपूर आर्थिक मदद मिलेगी उसका इस्तेमाल वह अपने देश की महंगाई-गरीबी दूर करने में करेगा या फिर पुरानी फ़ितरत के मुताबिक भारत में आतंक फैलाने के लिये तैयार हो जाएगा? पाकिस्तान ने इस ग्रे लिस्ट से बाहर होने के लिये जो तमाम आंकड़े-सबूत पेश किये हैं उसे बेशक FATF ने मान लिया है लेकिन हक़ीक़त ये है कि इन सालों में उसकी माली हालत इतनी खराब रही है कि उसके पास अपने अवाम को कोई रियायत देने की हैसियत ही नहीं थी तो वो आखिर किस खजाने से ISI के ट्रेंड किये हुए आतंकियों की जेब गरम कर पाता. इसलिये विदेश नीति के विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान को आर्थिक मदद मिलते ही उस पर सबसे बड़ी गिद्ध निगाह वहां की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI की होगी जो हर सूरत में ये चाहती है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने से पहले वहां आतंक का ऐसा खौफ़ पैदा किया जाये ताकि कोई प्रवासी वोट डालने की हिम्मत ही न कर पाये.


इसीलिये भारत ने अपनी चिंता भी जताई है. विदेश मंत्रालय ( MEA) के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि FATF की जांच के परिणामस्वरूप, पाकिस्तान के जाने-माने आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भारत की तरफ से मजबूर किया गया है जिसमें 26/11 को मुंबई में पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के खिलाफ हमलों में शामिल लोग शामिल हैं. भारत का स्पष्ट मत है कि साल 1989 में स्थापित FATF को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणालियों के लिए खतरों के खिलाफ काम करना अनिवार्य है और उसे इस कसौटी पर खरा उतरते हुए दिखना भी चाहिए.


बता दें कि FATF एक अंतर-सरकारी निकाय है जो आतंकवाद की सहायता करने वाले अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय अपराधों को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित करता है. यह एक नीति बनाने वाला यानी पॉलिसी मेकर संगठन है जो इन क्षेत्रों में विधायी और नियामक सुधारों के लिए अपने सदस्य देशों के बीच राजनीतिक इच्छाशक्ति पैदा करने के लिए काम करता है. भारत समेत इसके 39 सदस्यों में दो क्षेत्रीय संगठन यूरोपीय आयोग और खाड़ी सहयोग परिषद भी शामिल हैं इसलिये इस संगठन का वजूद कुछ ज्यादा ही बड़ जाता है. दरअसल, जुलाई 1989 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में जी-7 शिखर सम्मेलन हुआ था और उसी मौके पर FATF की स्थापना की गई थी. 


शुरुआती मकसद ये था कि इन 39 देशों में मनी लॉन्ड्रिंग से कैसे निपटा जाए और इसके दायरे को कहां तक बढ़ाया जाए. उसके बाद अमेरिका में हुए  9/11 के आतंकी  हमलों के बाद अक्टूबर 2001 में FATF ने आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने के प्रयासों को शामिल करने के लिए अपने जनादेश का विस्तार किया. अप्रैल 2012 में, इसने सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का मुकाबला करने के प्रयासों को जोड़ते हुए तय किया कि ऐसे किसी भी देश को व्हाइट लिस्ट से कब बाहर करना है.


ग्रे लिस्टिंग का मतलब है कि FATF ने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने के खिलाफ उपायों पर अपनी प्रगति की जांच करने के लिए एक देश को निगरानी में रखा है. "ग्रे सूची" को "बढ़ी हुई निगरानी सूची" के रूप में भी जाना जाता है. मार्च 2022 तक, FATF की बढ़ी हुई निगरानी सूची में 23 देश थे जिन्हें आधिकारिक तौर पर "रणनीतिक कमियों वाले क्षेत्राधिकार" के रूप में जाना जाता है जिसमें पाकिस्तान, सीरिया, तुर्की, म्यांमार, फिलीपींस, दक्षिण सूडान, युगांडा और यमन आदि शामिल हैं.


ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिए किसी देश को FATF द्वारा दी गई हिदायतों को पूरा करना होता है. मसलन, आतंकवादी समूहों से जुड़े व्यक्तियों की संपत्तियों को जब्त करना. अगर FATF उस देश से संतुष्ट होता है तो वह उस देश को सूची से हटा देता है. हालांकि ग्रे लिस्ट में जोड़े जाने का मतलब कोई आर्थिक प्रतिबंध (काली सूची के विपरीत) नहीं है, यह वैश्विक वित्तीय और बैंकिंग प्रणाली को संकेत देता है कि उस देश के साथ लेन-देन की जोखिम में वृद्धि हुई है लिहाजा, सोच-समझकर ही उसे पैसा दें. सबको मालूम है कि पाकिस्तान की माली हालत बेहद  खराब है और महंगाई वहां आसमान को छू रही है.


वह सऊदी अरब और चीन से कर्ज की बहुत बड़ी इमदाद भी ले चुका है लेकिन उसके बावजूद वह अपना घर संभाल पाने में आज भी बेबस ही नजर आता है. इसलिये 'ग्रे' लिस्ट से बाहर आना उसके लिए बड़ा सबक है कि दुनिया के तीन बड़े बैंकिंग संस्थानों से मिलने वाली मदद का इस्तेमाल वो अपने अवाम की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए करे न कि भारत में आतंक फैलाने के लिये. लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि क्या पाकिस्तान अपनी करतूतों से कभी बाज भी आयेगा?


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