पाकिस्तान: इमरान खान के चले जाने से आखिर कैसे बदल पायेगी अवाम की किस्मत?
कहने को पाकिस्तान हमारे मुकाबले बहुत छोटा व कम ताकतवर देश है लेकिन वहां की सियासत ने शनिवार की आधी रात को अपने इतिहास की दो नई इबारतें लिख डालीं जो आने वाली नस्लों के लिये एक नज़ीर साबित होगी. पहली तो ये कि वहां की न्यायपालिका ने संविधान के दायरे में रहते हुए पूरी दुनिया को ये अहसास करा दिया कि वह न तो कार्यपालिका के इशारे पर नाचती है और न ही उससे डरती है.
दूसरा ये कि पाकिस्तान के 75 बरस के इतिहास में इमरान खान पहले ऐसे वज़ीरे आज़म कहलायेंगे जिन्हें वहां की नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव लाकर और उसमें शिकस्त देकर कुर्सी से हटाया गया है. इसे हम वहां की विपक्षी पार्टियों के एकजुट होने की जीत ही कहेंगे. लेकिन सावल उठता है कि संसद का सत्र शुरु होने से महज 12 घंटे पहले तक जो इमरान खान ये दावा कर रहे थे कि वे आखिरी गेंद तक मुकाबला करेंगे वहीं हरफनमौला आखिर इतना किस लिये डर गए कि सियासी अखाड़े में कूदने से पहले ही उसे छोड़कर भाग गए.
पाकिस्तान के सियासी जानकार कहते हैं कि खेल की दुनिया से सियासत का दामन थामने वाले और बरसों से पेशेवर राजनीति के खिलाड़ी रहे लोगों में यहीं बुनियादी फर्क होता है. विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर और उस पर वोटिंग न कराने के डिप्टी स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर इमरान खान पर ऐसा मनोवैज्ञानिक दबाव डाला कि वे सियासत रूपी शतरंज की अगली चाल खेलना ही भूल गए. उनके मुताबिक इमरान ने इन तमाम दबावों के बावजूद अगर तस्सली से अपना होम वर्क किया होता तो वे इन तीन गेंदों को सावधानी से खेलते हुए खुद को क्लीन बोल्ड होने से बचा सकते थे.
इमरान की सरकार गिराने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष के समर्थम में 174 वोट पड़े जबकि इमरान को अपनी सरकार बचाने के लिए महज़ 172 वोटों की ही जरुरत थी. लेकिन कहते हैं कि सियासत में जो हकीकत में न भी हो लेकिन उसका हौव्वा खड़ा करना जरुरी होता है. क्योंकि उसके बगैर अपने दुश्मन को कमजोर करने और शिकस्त देने की सारी रणनीति फेल हो जाती है.
पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों की तारीफ इसलिए भी की जानी चाहिए कि बीते मार्च से वे अपनी जिस रणनीति पर काम कर रहे थे उसे अंज़ाम पर पहुंचाने में वे कामयाब भी हुए. इसलिये कि उनके पास जरुरी बहुमत से महज़ दो वोट ही ज्यादा थे लेकिन उन्होंने पिछले महीने भर से मीडिया के जरिये ये हौव्वा बना रखा था कि उनके पास 199 सदस्यों का समर्थन है.
पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इमरान खान को अपने जाल में फंसाने का संयुक्त विपक्ष का ये एक बेहतरीन सियासी दाव था जिसमें वे आसानी से फंस गए. अपनी सरकार और सारी खुफिया एजेंसियों की ताकत होते हुए भी न तो इमरान ने और न ही उनके करीबी सलाहकारों ने ये होम वर्क करने की ज़हमत उठाई कि विपक्ष के दावों में कितना दम है और उनके साथ आखिर कितने सदस्य हैं. अगर शुक्रवार की रात तक भी वे पता लगा पाते कि सारा खेल तिकड़ी का है और किसी भी तरह से तीन सदस्यों को ही अपने पाले में लाना है तो वे शनिवार को मैदान छोड़कर 'रणछोड़ दास' नहीं बन जाते.
शुक्रवार के लेख में भी हमने ये इशारा किया था कि इमरान खान की जन्म कुंडली से हम वाकिफ़ नहीं हैं लेकिन लगता है कि शनिदेव की उल्टी चाल उन्हें सिंहासन से हटाकर अर्श से फर्श पर ला सकती है. हालांकि अविश्वास प्रस्ताव पर मिली इस ऐतिहासिक जीत के बाद पाकिस्तान के अगले संभावित वज़ीरे आज़म बनने वाले शाहबाज़ खान ने इसे मुल्क के लिए एक नई सुबह का आगाज़ बताया है. इमरान सरकार की इस तरह से हुई विदाई पर उन्होंने संसद में ये भी कहा कि आज पाकिस्तान के आवाम की दुआ कबूल हुई है.
पाक के सियासी जानकार मानते हैं कि विपक्ष की घेरेबंदी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इमरान खान इतना डर चुके थे कि उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग को दरकिनार करते हुए पहले अपनी हिफाज़त की परवाह की और इस्तीफा देने के लिए अपनी तीन शर्तों में सबसे पहली शर्त ही ये रख दी कि कुर्सी छोड़ने के बाद न मुझे गिरफ्तार किया जाएगा और न ही मेरे खिलाफ कोई मुकदमा ही चलेगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस पुनर्विचार याचिका को मंजूर ही नहीं किया.
हालांकि, शाहबाज़ शरीफ ने शनिवार की देर रात नेशनल असेंबली में जो भाषण दिया है उस पर बारीकी से गौर करेंगे तो समझ जाएंगे कि आने वाले दिनों में इमरान खान के साथ क्या होने वाला है. पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके नवाज़ शरीफ के भाई शाहबाज़ ने कहा कि "पाकिस्तान में कैसे नेताओं को जेलों में भेजा गया हम उस माजी में नहीं जाना चाहते. हम पाकिस्तान को बेहतर बनाना चाहते हैं. मैं ये बात कहना चाहता हूं कि हम इस कौम के जख्मों पर मरहम लगाना चाहते हैं. हम किसी के साथ बदला नहीं लेंगे. हम किसी को जेल नहीं भेजेंगे लेकिन कानून अपना काम करेगा. इंसाफ का बोलबाला होगा. हम मिलकर इस मुल्क़ को चलाएंगे और पाकिस्तान को कायदे आजम का पाकिस्तान बनाएंगे." उनके इस बयान का सबसे अहम सियासी हिस्सा ये है कि
"हम किसी को जेल नहीं भेजेंगे, लेकिन कानून अपना काम करेगा."
यानी सोमवार को बनने वाली नई सरकार में अगर इमरान खान के खिलाफ देश से गद्दारी करने या अवाम से झूठ बोलने या ऐसे ही किसी अन्य आरोप को लेकर कोई व्यक्ति मुकदमा दर्ज करवाता है तो वह दर्ज भी हो जाएगा और फिर कानून अपने हिसाब से काम करते हुए उन्हें सिंखचों के पीछे भेजने में देर भी नहीं लगाएगा.
वैसे भी पाकिस्तान का सियासी इतिहास बदले की राजनीति वाला ही रहा है लेकिन वहां के अवाम का सबसे बड़ा दर्द तो ये है कि सत्ता के मुखौटे बदल जाने से आसमान छूती महंगाई पर लगाम आखिर कैसे लगेगी और उनकी बदहाली दूर करने के लिए नई सरकार किस जादुई छड़ी का इस्तेमाल करेगी?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)