कश्मीर को फिर से अशांत करने की फिराक में है पाकिस्तान, भारत है चाक-चौबंद लेकिन बढ़ानी होगी चौकसी
कश्मीर में पिछले पांच दिनों से लगातार आतंकियों ने कई तरह की गतिविधियों को फिर से अंजाम दिया है. उन्होंने 21 दिसंबर को सेना के वाहनों पर घात लगाकर पुंछ में हमला किया और चार जवानों ने मुठभेड़ में बलिदान दिया. उसके बाद अखनूर में घुसपैठ की कोशिश की गयी और फिर एक रिटायर्ड एसएसपी को मस्जिद में, जब वह मुअज्जिन की ड्यूटी कर रहे थे, तब आतंकियों ने गोली मार दी. इससे एक बार फिर ये सवाल सुर्खियों में आने लगा है कि सरकार जिस बदलाव और शांति की बात कर रही है, वह कश्मीर में आया भी है या वह केवल हवाई दावे हैं. वैसे सूत्रों का यह भी कहना है कि इन सबके पीछे पाकिस्तान की हरकतें हैं और सरकार जल्द ही इन सभी घटनाओं पर अंकुश लगा देगी.
पाक की जारी हैं नापाक हरकतें
जम्मू-कश्मीर की अगर बात करें, तो हम पाएंगे कि अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद फिर से एक बार उसे सुर्खियों में लाने की कोशिश की जा रही है. कोशिश इसलिए कि जिस तरह से सुरक्षाबलों ने सीमा पर या फिर दक्षिणी कश्मीर में अपनी पकड़ मजबूत की है, जो आतंकी गतिविधियों के लिए खासा बदनाम था, उस प्रक्रिया में कश्मीर पुलिस की भूमिका रीढ़ की हड्डी की तरह है. पिछले कुछ वर्षों में वह इसी भूमिका में रही है. इसीलिए, पुलिस के मनोबल को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. जैसे, रिटायर्ड एसएसपी मुहम्मद मीर की बात करें तो वह लगभग 70 वर्षों के थे. मोअज्जिन की भूमिका में थे, स्थानीय मस्जिद में वह यह भूमिका निभाते थे. उनको वहीं मार दिया गया. तो, आतंकियों ने मजहब का भी लिहाज नहीं किया और वे उन पुलिस वालों का मनोबल तोड़ना चाहते हैं, जो कश्मीर में शांति स्थापित करने में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं.
वे इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. पाकिस्तान की भूमिका को एक बड़े परिदृश्य में देखना होगा. चीन और पाकिस्तान कई हिस्सों में मिलकर काम कर रहे हैं. पाकिस्तान अपने मसलों में जरूर उलझा है, लेकिन हम जानते हैं कि पाकिस्तान में भारत-विरोधी मानसिकता को प्रश्रय दिया जाता है, सेना का अस्तित्व तो इसी मुद्दे पर निर्भर है, उसके आंतरिक हालात जो भी हों, लेकिन वहां के कठमुल्ले या फिर सेना भारत-विरोध में लगातार लगे रहते हैं, वे दिखाना चाहते हैं कि कश्मीर में वो अभी भी कुछ उल्टा करने में सक्षम हैं और कश्मीर में शांति है नहीं. अगर अपुष्ट तौर पर विश्लेषकों की बात मानें तो इसमें चीन की भी भूमिका है. चीन पर पूर्वी लद्दाख में एक तरह का दबाव है, तो पीओके से लगे इलाके को लेकर चीन लगातार अपने अंगूठे पर खड़ा है.
सीपेक से लेकर बलूचिस्तान का विद्रोह है कारक
एक बेहद महत्वपूर्ण मसला सीपेक, यानी चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर का है. चीन उस इलाके में जिस तरह से अपने निवेश को देख रहा था, खासकर बलूचिस्तान से गुजरनेवाले इलाके को लेकर, वह पूरा होता दिख नहीं रहा है. बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के आतंक और क्रूरता की कहानियां हम सबने सुनी हैं. एक तरह से कहें तो सीपेक उस इलाके में असफल हो रहा है. चीन जिस तरह की उम्मीद पाले बैठा था, वह पूरा तो नहीं ही हो रहा है, पाकिस्तान का नुकसान अलग से दिख रहा है. चीन जिस तरह की सुरक्षा और बाकी चीजें चाहता था, पाकिस्तान वह मुहैया नहीं करा पा रहा है. तो, एक तरह का दोहरा दबाव है. अभी-अभी ईरान ने भी पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियों को लेकर बहुत तगड़ी झाड़ लगायी थी और उसे इन पर काबू पाने को कहा था. पाकिस्तान एक तरह से धार्मिक, आर्थिक, आतंकी और मजहबी दुष्चक्र में फंस चुका है. चीन का दबाव उस पर अलग से है और पाकिस्तान कई मोर्चों पर एक साथ जूझ रहा है. पाकिस्तानी सेना अपना इकबाल बुलंद रखना चाहती है और वह उसी के लिए जीतोड़ कोशिश कर रही है.
अल्लाह, आर्मी और अमेरिका
अमेरिका ने पाकिस्तान को अभी लगभग छोड़ा हुआ है, क्योंकि उसकी अपनी प्राथमिकताएं हैं. खासकर, यूक्रेन युद्ध के बाद दक्षिण एशिया में नये तरह के समीकरण बने हैं. इस नए समीकरण में रूस है, चीन है और पाकिस्तान है. रूस और चीन एक तरह से गठबंधन में हैं और अमेरिका विरोधी गुट का एक तरह से नेतृत्व कर रहे हैं. पाकिस्तान का तो हम जानते ही हैं. जब अमेरिका उस पर मेहरबान था, तब भी अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से पाकिस्तान को काफी डॉलर और पर्क्स मिलते थे, क्योंकि वहां से अमेरिका अफगानिस्तान पर नजर रख सकता था, घुस सकता था. अब चीन वही चाह रहा है. चीन अपनी विस्तारवादी और आक्रामक नीति को लेकर मध्यपूर्व में भी घुसा हुआ है. रूस जिस तरह यूक्रेन में फंसा है, वैसे में वह भी पाकिस्तान के साथ गलबंहियां बढ़ा रहा है. पिछले एक-डेढ़ साल में हम ये देख भी रहे हैं. शंघाई कॉरपोरेशन यानी एससीओ में भी रूस, पाकिस्तान संयुक्त अभ्यास में शामिल हुए हैं. तो, एक नया समीकरण तो बन ही रहा है.
कश्मीर में सुरक्षा हुई है चाक-चौबंद
कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति की अगर पिछले पांच वर्षों में हम बात करें, तो जब ऑपरेशन ऑलआउट चला (भले ही सेना ने इसको कभी आधिकारिक नाम नहीं दिया है) तो यह आंकड़ा बार-बार दिया जाता ता कि सीमा के पास करीबन 200 आतंकवादी थे, उस समय एक आतंकी की औसत उम्र लगभग 15 से 20 दिन की होती थी, मतलब वह कमांडर बनता था, नयी भर्ती होती थी उसकी तो उसको न्यूट्रलाइज इतने दिनों में कर दिया जाता था, आज ये आंकड़ा दक्षिण कश्मीर के आसपास 30-35 ही सक्रिय आतंकियों का रह गया है और उनकी आतंकी गतिविधियों की औसत उम्र अब एक हफ्ते से अधिक नहीं रही है. ये आंकड़े खुद बताते हैं कि किस तरह से सुरक्षा चाक-चौबंद हुई है. इसी वजह से आतंकी भी लक्षित हमला करने लगे हैं और बड़े हमलों की जगह चुने हुए छोटे हमले करने लगे हैं.
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