पाकिस्तान की स्थिति बहुत नाजुक है और मुझे पाकिस्तान में कोई नेता ऐसा नहीं दिखाई देता है कि जो इस परिस्थिति से पाकिस्तान को बाहर निकाल सके. जिस तरह की वहां पर राजनीतिक और आर्थिक संकट है वहां पर कोई लीडर नजर नहीं आता है. इमरान खान अकेले लीडर हैं, लेकिन उनके पास भी केवल नारे ही हैं कोई प्लान नहीं है कि किस तरीके से वो सत्ता में अगर आते हैं तो मौजूदा परिस्थिति से मुल्क को बाहर निकालेंगे. दूसरी बात ये भी है कि अगर वो सत्ता में आ भी जाते हैं तो मुझे नहीं लगता कि ये स्थिति बेहतर होगी. चूंकि जब से पाकिस्तान बना तब से उसका विकास का एजेंडा रहा ही नहीं है. पाकिस्तान धर्म के नाम पर अस्तित्व में आया और उसने धार्मिक मूल्यों को हीं प्रमोट किया है और सेना अपने इंटरेस्ट को आगे बढ़ाने के लिए ही काम किया.
पाकिस्तान के अंदर इथनिक डिवीजन बहुत ज्यादा हैं जैसे पहले बलूच है बाद में पाकिस्तानी है, पश्तून जो है वो पहले पश्तून है बाद में पाकिस्तानी है और सिंधी में वो पहले सिंधि है तो इन सब लोगों को ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की सरकार, सेना और वहां की संस्थाओं पर पंजाब का प्रभुत्व है. उनको लगता है कि उन्हें बंदी बना लिया गया है. कॉलोनाइज कर लिया गया है क्योंकि इन जगहों पर विकास नहीं हुए हैं और ये लोग और ये राज्य पाकिस्तान में मिलना भी नहीं चाहती थीं, इन्हें जबरन मिलाया गया है...तो स्थिति बहुत डीप रूटेड है.
एक बात ये भी है कि अभी जो वहां की जनता है वो चाहता है कि ये जो शासन है वो बिल्कुल गला-सड़ा शासन व्यवस्था है, भ्रष्ट है. वो लोग समझ गए हैं कि उन्हें अब तक धर्म के नाम पर और भारत के नाम पर सिर्फ और सिर्फ बेवकूफ बनाया जा रहा है. अब वे उनके झांसे में पड़ना नहीं चाहते हैं तो एक तरह की अपराइजिंग शुरू हो गई है. मुझे लगता है कि ये आगे भी बढ़ती जाएगी. इमरान खान अगर जेल जाएंगे तो भी और नहीं जाएंगे तो भी इनके लिए मुश्किल होती चली जाएगी. अगर चुनाव होती है और इमरान खान सत्ता में आते हैं तो आर्मी उनको चलने नहीं देगी. इस स्थिति से निकलना पाकिस्तान के लिए आने वाले समय में मुश्किल नजर आता है. अभी तक पाकिस्तान ने कोल्ड वार के समय अमेरिका से पैसे ले रहा था. उसके बाद उसने अमेरिका और चाइना दोनों से पैसा लेने लगा और अब सिर्फ चाइना से ले रहा है.
पहले अरब देश भी पाकिस्तान को पैसा देते थे. इनके इस्लामिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करते थे. अब वो एजेंडा उस तरह का रहा नहीं हैं तो वहां से उनको पैसा मिल नहीं पा रहा है. सऊदी अरेबिया भी पाकिस्तान से नाराज है क्योंकि उसने 22 देशों का एक एयरलाइन्स बनाया था यमन के खिलाफ जिसमें पाकिस्तान ने ज्वाइन नहीं किया. इस वजह से वो भी पाकिस्तान के खिलाफ है और खुश नहीं है. ये जो देश हैं अगर ये पाकिस्तान को आर्थिक तौर पर 1 से 2 बिलियन डॉलर का मदद कर भी देते हैं तो मुश्किल से एक या दो महीने तक पाकिस्तान का काम चल सकता है. लेकिन वो लोग भी कह रहे हैं कि जब आपको आईएमएफ का लोन मिलेगा तो हम मदद करेंगे. पाकिस्तान का 80 बिलियन डॉलर का आयात है और 30 बिलियन का सामान ये बाहर भेजते हैं. तो बहुत ज्यादा गैप है. पहले इनको रेमिटेंसेस से पैसे आ जाते थे जो अब वहां से भी कम आ रहा है. उद्योग है नहीं पाकिस्तान में बहुत ज्यादा तो..हालात बहुत खराब है.
अब क्या होगा ये कहना तो बहुत मुश्किल है लेकिन नजर नहीं आता कि कैसे इस स्थिति से बाहर निकलेगा और ये अपराइजिंग की शक्ल लेता चला जा रहा है.ऐसे में ये होगा कि इनके यहां जो आतंकवादी शक्तियां है वो आतंकवाद फैलाने लगती हैं. पहले से फैला भी रहे हैं. उनके पास हथियार भी है और वो इस स्थिति का फायदा उठाएंगे.
आईएमएफ की अपनी शर्तें होती हैं किसी भी देश को लोन देने की. पहली शर्त ये होती है कि आप अपने जो व्यापार घाटा है उसको पहले कम कीजिए. आपकी जितनी आमदनी है उतने ही खर्च होने चाहिए. दूसरा ये रहता है कि आप जो सब्सिडी दे रहे हैं किसानों को और दूसरे लोगों को और उनसे सस्ते दामों पर खरीदारी कर रहे हैं. उनसे टैक्स नहीं लेते हैं, ये सब आपको बंद करना होगा. धीरे-धीरे आपको एक बजट बनाना होगा. अगर आप बिजली बना रहे हैं और उसे सस्ती दरों पर बेच रहे हैं तो आपको ये बंद करना होगा. ताकि बजट बैलेंस हो जाए. अब अगर पाकिस्तान आईएमएफ की शर्तों को पूरा करता है तो वहां महंगाई और बढ़ जाएगी. ये समस्या उनके सामने है और इससे अराजकता और बढ़ने की उम्मीद है...तो पाकिस्तान के सामने एक असमंजस वाली स्थिति है. आईएमएफ से लोन लेने के लिए पाकिस्तान ने कुछ स्टेप्स तो लिया है लेकिन वो इससे ज्यादा खुश नहीं हैं., चूंकि जो उसकी शर्तें हैं उसको पूरी की जाए.
आईएमएफ का ये है कि अगर उनकी शर्तें पूरी नहीं होंगी तो उनका पैसा वापस नहीं होगा और पाकिस्तान चूंकि इतने दिनों से पैसा लेता चला आ रहा है और उसकी वापसी का भी समय आता चला जा रहा है अगले तीन-चार महीने में तो वो कहां से देंगे तो वो डिफॉल्ट होते हुए नजर आ रहे हैं. पाकिस्तान की इकोनॉमी कोलैप्स होता हुआ नजर आ रहा है.
जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए तो पाकिस्तान ने अपने यहां एक कंट्रोल्ड डेमोक्रेसी रखी और वो भी केवल चुनाव तक. उसे भी वो मैनेज करते थे मतलब ये कि चुनाव भी वही जीतता था जो आर्मी के साथ जुड़ा रहता था. देखिये, भुट्टो के मामले में क्या हुआ जब आर्मी से उनकी नहीं बनी तो उनको फांसी दे दी. फिर उसके बाद बेनजीर भुट्टो ने आर्मी को चैलेंज किया तो उनको आतंकवादियों ने मार डाला. नवाज शरीफ ने आर्मी के खिलाफ बात की तो उनको मुल्क छोड़कर जाना पड़ा. उसका कारण ये था कि नवाज शरीफ पंजाब के थे तो वो बच गए. अब इमरान खान आर्मी को चैलेंज कर रहे हैं तो उनको जेल भेजने की तैयारी चल रही है चूंकि उनका सपोर्ट बेस बढ़ गया है. अब इमरान खान कह रहे हैं उनको जेल में ले जाकर ये लोग टॉर्चर करेंगे. तो ये तो इतिहास रहा ही हैं पाकिस्तान का और इमरान जब पिछला चुनाव जीते थे तो सेना की मदद से जीते थे.
अब जब वो हटा दिए गये तो वो जनता की बातों को उठाने लगे. कहने लगे की भारत के साथ हम अच्छे संबंध स्थापित करेंगे. मोदी जी की तारीफ करने लगे. उन्होंने कश्मीर की बात नहीं की, अमेरिका की निंदा करते हुए कहा कि अमेरिका नहीं आने देता है लोकतंत्र उसकी वजह से ही सारी समस्याएं हैं. ये सब जो बातें जो उन्होंने की तो जनता का भी सपोर्ट बेस बढ़ गया है. दूसरी बात ये है कि जनता भी ये जानती है कि ये क्या करेंगे लेकिन उनकी बात हो रही है तो लोग भी खुल कर इनके समर्थन में आ गए हैं. पाकिस्तान में पॉलिटिकल इंस्टीट्यूशन नहीं हैं. चूंकि आपको डेमोक्रेसी चलाने के लिए राजनीतिक संस्थाओं की जरूरत होती है. फ्री मीडिया होनी चाहिए. न्याय प्रणाली स्वतंत्र होनी चाहिए. चुनाव आयोग स्वतंत्र होना चाहिए ये सब कुछ है ही नहीं इनके पास. जो संस्थाएं हैं वहां पर सिर्फ वैसे ही लोग भरे पड़े हैं जो सेना को सपोर्ट करते हैं. अब ये देखना है कि आगे क्या होता है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल रक्षा जानकार कमर आगा से बातचीत पर आधारित है.]