(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
पाकिस्तान की नाव भंवर में, 'कट्टरपंथ, सेना और ढुलमुल पार्टियां' तीनों बन गए हैं शूल
पाकिस्तान के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. वहां पहले पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी हुई, फिर रिहाई हुई और अब सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही माहौल बन गया है. इमरान खान की रिहाई के बाद शहबाज सरकार के गठबंधन में शामिल पार्टियां सुप्रीम कोर्ट से खफा हैं. वहां 26 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ धरने के हालात बन रहे हैं. वहीं, पाकिस्तान की संसद में चीफ जस्टिस के खिलाफ रेफरेंस लाने की तैयारी हो गई है. आसमान छूती महंगाई, घरेलू अस्थिर हालात और दुनिया के ताकतवर देश अमेरिका की अनदेखी कहीं पाकिस्तान को भारी न पड़ जाए.
पाकिस्तान की नाव भंवर में
पाकिस्तान एक 'फेल्ड स्टेट' यानी असफल राष्ट्र तो बहुत पहले ही घोषित हो चुका था. राजनीतिक संकट तो वहां बहुत पहले से ही थी. समस्या ये है कि अब वहां की अर्थव्यवस्था भी खत्म हो गई है. राजनीतिक अस्थिरता है और आर्थिक बदहाली है, ये दोनों ही एक साथ हो जाएं तो बहुत दिक्कत होती है. मुद्रास्फीति लगभग 50 फीसदी तक हो गई है, महंगाई कमरतोड़ है, एक डॉलर की कीमत पाकिस्तानी रुपयों में 290 से ज्यादा हो गई है और चारों ओर कोहराम है. हर घंटे चीजों के दाम बदल रहे हैं. लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं. तेल की कमी से हजारों कारखाने बंद हुए और उन बंद कारखानों से निकली है बेरोजगारों की जमात. मार्केट बिल्कुल डूब गया, लोगों की क्रय शक्ति शून्य है और लोग जरूरी चीजें खरीदने में भी परहेज कर रहे हैं.
दूसरा कोई इनवेस्टर नहीं है, क्योंकि अस्थिरता है. कोई दूसरा मुल्क भी पाकिस्तान को पैसे देने को राजी नहीं है, क्योंकि ये पैसा लेते हैं, तीन महीना चलाते हैं, फिर दूसरा उधार लेकर उसको चुकाते हैं. अगले दो-तीन साल में 60-70 बिलियन डॉलर ये कहां से लौटा पाएंगे.
इन सब हालात में पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. वे चाहते हैं कि सेना अपनी भूमिका बदले और राजनीति की जगह अपना काम करे, यानी देश की सुरक्षा में ही लगे. उन्होंने करप्शन की खिंचाई की है और पाकिस्तान की फॉरेन पॉलिसी को भारत की तर्ज पर बनाने की बात कही है. उन्होंने कहा है कि वह अपने देश की अब भलाई देखेंगे, किसी बड़े देश का मोहरा नहीं बनेंगे. इन सब बातों से इमरान खान की लोकप्रियता बढ़ी है, क्योंकि जनता भी ठीक यही चाहती है. हालांकि दूसरी तरफ सेना है. सेना का दबदबा तो न्यायपालिका से लेकर पाकिस्तान की संसद तक है. हरेक जगह उसके लोग, उसके समर्थक हैं.
जनता को हो गई है सेना से चिढ़
सेना के बैरक पर या इंस्टीट्यूशन पर पाकिस्तानी अवाम का हमला बताता है कि सेना से जनता कितनी चिढ़ चुकी है. कभी पाकिस्तानी सेना पर वहां की जनता का बड़ा भरोसा था. पाकिस्तान की सेना खुद को मुहाफ़िज़ यानी अभिभावक कहती थी, इस्लामिक रिपब्लिक की. जनता को अब लग रहा है कि सेना तो खुद ही इतनी भ्रष्ट है, खुद ही सारी जंगें हार चुकी है. बांग्लादेश अलग हो गया. फिर, वहां जो सेना ने हरकतें की, इन सब बातों को देखते हुए सेना के प्रति लोगों में प्रचंड नफरत पैदा हो गई है, इसलिए सेना के ठिकानों पर लगातार हमले हो रहे हैं. लाहौर में तो कोर कमांडर के घर पर आग लगा दी.
हालांकि, सेना के पास भी समर्थक हैं. उसके पास नवाज शरीफ की पार्टी का एक धड़ा है, पीडीपी है, और भी कई दल हैं. इसके अलावा सबसे बड़ा जो समर्थन सेना को मिलता है, वह तो वहां की कट्टरपंथी धार्मिक संस्थाओं, जैसे जमात-ए-इस्लामी से मिलता है. इमरान खान के खिलाफ आज यही लोग तो धरने पर बैठे हैं और आने वाले समय में टकराव की भी स्थिति बन सकती है.
इमरान एक प्रतीक बन गए हैं, सिंबल बन गए हैं. सभी जानते हैं कि इमरान जब सत्ता में थे, तो कुछ नहीं कर पाए. अब इमरान कह रहे हैं कि उनको कुछ करने ही नहीं दिया गया. अब वह कह रहे हैं कि सेना पहले बैरक में जाए, अपनी सुपर पावर को खत्म करे, तभी हालात सुधरेंगे. इमरान चूंकि जनता की बातें कर रहे हैं, इसलिए पॉपुलर हो रहे हैं. हालांकि, सेना में भी चूंकि रेडिकल तत्व बहुत हैं, तालिबान के साथ वे बहुत समय रहे हैं, तो वहां भी डिवीजन हो सकता है.
अमेरिका का जहां तक सवाल है, तो पिछले 10-15 साल से अमेरिका का सपोर्ट इस्लामिक देशों से कम हुआ है. जिस तरह वो खुलकर इजरायल का समर्थन करता है, अरब-विरोधी नीतियां बनाता है, उसको लेकर बहुत नाराजगी है. अब सऊदी अरब ने भी काफी रिफॉर्म्स किए हैं, क्योंकि उनको भी अरब-स्प्रिंग का डर लगा हुआ है. सूडान में अभी देखिए कि सेना औऱ अमेरिका के खिलाफ भावनाएं हैं. पाकिस्तान में भी जो इस्लामिक प्रोजेक्ट था, उसको अमेरिका से कोई फायदा नहीं मिला. सेना और सरकार मिलकर आम जनता के खिलाफ ही हैं. सेना और कट्टरपंथी धार्मिक नेता मिलकर एक दूसरे को सपोर्ट करते हैं और वे अमेरिका के पीछे रहते हैं. अब वे चीन के साथ हैं.
पाक का भविष्य बहुत खराब, मीडिया बेबाक
पाकिस्तान का भविष्य बहुत खराब नजर आ रहा है. भविष्य में क्या होगा, ये कहना भी बहुत मुश्किल है. जो संकेत मिल रहे हैं, वे बहुत बुरे हैं. आज अगर जमात-ए-इस्लामी ने धरना दिया है, तो कल इमरान के समर्थक देंगे. फिर, मारपीट हो सकती है. असामाजिक तत्व सक्रिय हो सकते हैं. अगर झड़प होती है, तो कट्टरपंथी संगठन भी सामने आ जाएंगे. कोई बड़ा नेता भी नहीं है जो लार्जर दैन लाइफ हो, सबको संभाल ले, इकोनॉमी भी खत्म है. तो, क्या होगा कह नहीं सकते.
इमरान खान ने जो 10 साल कैद वाली बात कही है कि विरोधी किसी तरह उनको इतने साल कैद में रखना चाहते हैं, वह कई मायने रखता है. वह सिंपैथी भी चाहते हैं औऱ सेना में अपने लोगों तक संदेश भी पहुंचा रहे हैं. आज तक सेना के खिलाफ पाकिस्तान में जो उभरा, उसका हश्र क्या हुआ, आप जानते ही हैं. जुल्फिकार अली भुट्टो को जिया उल हक ने फांसी ही दे दी, बेनजीर की भी हत्या आतंकियों ने की, अब किसके इशारे पर की, ये सब जानते हैं. नवाज शरीफ ने जब चुनी हुई सरकार की ताकत चाही, तो उनको भी जेल मिली. हां, वे जमात वगैरह से जुड़े रहे हैं, तो बच गए. इमरान के पास दिक्कत ये है कि कट्टरपंथी गुट तो पहले से ही उनके खिलाफ थे कि ये प्ले बॉय है, अच्छा मुसलमान नहीं है. चूंकि सेना उनको लेकर आई थी, तो लोग चुप थे. अब सेना का समर्थन खत्म हो गया है, तो फिर वे भी निशाने पर हैं.
मीडिया का पाकिस्तान में हमेशा से हमने देखा है कि वे अच्छी रिपोर्टिंग करते हैं. जिया उल हक के समय भी हमने ये देखा था. बाद में वो लोग पूरी तरह प्रो-इस्टैब्लिशमेंट हो गए. ये बीच के लम्हे में दिखा था. अब दिख रहा है कि वहां फिर से बेहतर रिपोर्टिंग हो रही है. असल में, वहां दो तरह के मीडिया वाले हैं. एक तो, पूरी तरह जमात-ए-इस्लामी के समर्थक हैं, दूसरे इमरान खान के. जो नए यूट्यूबर्स हैं, वे बहुत सक्रिय हैं और बहुत पावरफुल हो गए हैं. इनकी बड़ी व्यूअरशिप है, बहुत फॉलोअर हैं. हालांकि, सेना बहुत दिनों तक इनको टॉलरेट नहीं करती. जब इंटरनेट पर ही रोक लगेगी तो यूट्यूबर्स कहां से शक्तिशाली रह पाएंगे?
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)