जनरलों को बर्खास्त करना पाक सेना की प्रतिष्ठा बहाल करने का प्रयास, पाकिस्तान को नहीं मिला जल्द बेलआउट पैकेज तो हो जाएगा तबाह
पाकिस्तान. हमारा पड़ोसी मुल्क. कभी जो हमारा हिस्सा ही था. आज चौतरफा परेशानियों में है. उसकी आर्थिक हालत बदतर है. एक डॉलर के बदले लगभग 300 पाकिस्तानी रुपए खर्च करने पड़ते हैं. महंगाई चरम पर है. इसके अलावा अफगानिस्तान से सटे बॉर्डर पर अलग घमासान है, तो पीओके में अलग विद्रोह. वहां के लोग अब यूट्यूब पर, विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खुलकर अपने सत्ताधीशों की आलोचना कर रहे हैं. आइएमएफ का बेलआउट पैकेज भी अभी तक उसे नहीं मिला है. बौखलाहट में वह कभी भारत की आलोचना करता है, कभी अमेरिका की. हालांकि, आज उसकी हालत हारे हुए जुआरी की है. जल्द ही हालात नहीं सुधरे तो पाकिस्तान शायद फिर एक बार बिखर जाएगा.
पाकिस्तान बौखला गया है
भारत और अमेरिका का संयुक्त बयान एक तरह से भारत की बहुत बड़ी डिप्लोमैटिक जीत है. इस बार अमेरिका ने भारत का आतंकवाद और अतिवाद के मुद्दे पर पूरी तरह साथ दिया है. अभी तक होता यह था कि अमेरिका भी खुलकर नहीं सपोर्ट करता था, यहां तक कि यूएन में आतंकवाद को सर्वमान्य तरीके से पारिभाषित भी नहीं किया जा सका है. तो, पाकिस्तान को मिर्ची लगना तो बता ही है और यह ठीक भी है.
पाकिस्तान वैसे भी इस वक्त कई मुसीबतों से जूझ रहा है. सबसे बड़ी चुनौती तो आर्थिक संकट की है. वहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है, बदहाल हो गयी है. वहां राजकोषीय घाटा हो या महंगाई हो, सब कुछ अपने चरम पर है. अमेरिका ही उनकी पूरी इकोनॉमी को सपोर्ट करता था. वॉर ऑन टेरर के नाम पर अमेरिका की दी हुई मलाई पाकिस्तान ने खूब खाई है. अभी अगर उसको आइएमएफ या ऐसी ही किसी संस्थान से लोन चाहिए तो भी अमेरिका की सहमति जरूरी है, जो उसे मिल नहीं रही तो पाकिस्तान अभी बौखलाया हुआ है.
पाक में कोई सरकार नहीं पूरा करती कार्यकाल
कहने को भले पाकिस्तान में लोकतंत्र है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि वहां की कोई भी सरकार अपना पूरा कार्यकाल नहीं कर पाती, 5 साल नहीं चल पाती. अब ये जो सरकार है, इमरान के जाने के बाद आयी है और अक्टूबर में वहां चुनाव हैं. पहले तो उन्होंने चुनाव को टालने की काफी कोशिश की, लेकिन मान लीजिए, सुप्रीम कोर्ट दखल देकर चुनाव करवा दे, तो इन्होंने अभी जो एक बदलाव किया है, वह केवल नवाज शरीफ की वजह से किया गया है. हाल ही में पाकिस्तान की संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया है कि किसी भी सांसद का निर्वासन पांच साल से अधिक नहीं रह सकता.
साफ है कि यह कानून नवाज शरीफ के लिए है, जो अभी लंदन में निर्वासन झेल रहे हैं ताकि वह आएं और चुनाव में प्रचार कर सकें. एक और बात पीओके की है. अभी हाल ही में गिलगित-बाल्टिस्तान का जो ग्रांट है, उसको 30 परसेंट पाकिस्तान ने कम कर दिया है. हमारे माननीय रक्षामंत्री ने भी अभी इस ओर इशारा किया है. उन्होंने कहा है कि भारत इस दिशा में भी सोचेगा. माननीय रक्षामंत्री ने कहा भी है कि वहां के लोग इच्छुक हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा है कि हम अब उन इलाकों की बात करेंगे, जो पाकिस्तान के पास जबरन चले गए. गिलगित के लोग भले पासपोर्ट पाकिस्तान का रखें, लेकिन पाकिस्तान केवल उनका शोषण करता है. तो, पाकिस्तान के लिए चिंता का एक विषय वह भी है.
आर्मी के समर्थन बिना नहीं रहेगी सरकार
बिना आर्मी के सपोर्ट के पाकिस्तान में कोई शासन नहीं कर पाया है. अभी जो आर्मी के जनरल्स को सजा दी गयी है, वह शायद बस दिखावे के लिए है. आर्मी हेडक्वार्टर पर जो हमले हुए मई के पहले सप्ताह में, उसके प्रभाव को शून्य करने के लिए अभी ये उपाय किया गया है. भारत और पाकिस्तान में आर्मी की स्थिति बिल्कुल अलग है. हमारे यहां तो सेना एक्ज्क्यूटिव से बंधी है, लेकिन पाकिस्तान के कांस्टीट्यूशन का स्ट्रक्चर ही ऐसा है कि वहां सेना कभी भी राजनीतिक नेतृत्व से बंधी नहीं रही, उसको पूरी स्वायत्तता है और वह बिल्कुल अलग है. पाकिस्तान में आर्मी कभी भी सरपरस्ती में काम कर नहीं पायी है और मुझे लगता भी नहीं कि करेगी. पाकिस्तान में तीन ए, यानी अल्लाह, अमेरिका और आर्मी काफी पॉपुलर है. अब अमेरिका के लिए पाकिस्तान उतना प्यारा नहीं है, जितना कोल्ड-वॉर के दिनों में था. हां, आर्मी का सपोर्ट अभी भी सरकार को है, वरना यह सरकार चल नहीं पाती. जिस दिन यह समर्थन आर्मी ने वापस ले लिया, उस दिन सरकार गिर जाएगी.
पाकिस्तान का भविष्य ठीक नहीं दिखता
जहां तक पाकिस्तान के भविष्य की बात है, तो वह फेल्ड स्टेट होने की ओर बढ़ रहा है. आइएमएफ ने लोन देने की शर्तें रखी हैं. बिना शर्त वह मिलेगा नहीं. पाकिस्तान तो कोशिश कर रहा है कि वह किसी तरह उन शर्तों को पूरा कर लोन ले सके, क्योंकि लोन अगर नहीं मिला तो पाकिस्तान पूरी तरह टूट जाएगा. इस वक्त चीन के अलावा उसका कोई मददगार नहीं है और खुद चीन भी आर्थिक तौर पर इतना शक्तिशाली नहीं है कि वह पाकिस्तान को बहुत दिनों तक संभाल सके. इसलिए, बेल-आउट पैकेज तो बहुत जरूरी है. पाकिस्तान के साथ एक यही मुसीबत नहीं है. वहां तहरीक-ए-तालिबान (पाकिस्तान) ने सिर उठा लिया है, इस्लामिक खुरासान स्टेट सिर उठा रहे हैं, दूसरी तरफ बरेलवी अलग बखेड़ा कर रहे हैं औऱ लश्कर-ए-जंगवी के साथ वे भी लामबंद हो रहे हैं. ये सब पाक-अफगान बोर्डर पर हो रहा है और बड़ा सेक्योरिटी चैलेंज है. इसके अलावा हाल ही में तालिबान जो अफगानिस्तान पर फिलहाल काबिज है, उसके रक्षामंत्री मौलवी मुहम्मद याकूब मुजाहिद ने जो बयान दिया है, उस पर भी गौर करना चाहिए. वह मुल्ला उमर का बेटा है, जिसने तालिबान को स्थापित किया था. अब याकूब ने डूरंड लाइन को ही खारिज कर दिया है औऱ कहा है कि वह बस एक रेखा है, कोई अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं है.
यह कहने का मुख्य कारण यह है कि तहरीके-तालिबान (पाकिस्तान) जिसे कभी पाकिस्तान ने ही पाला-पोसा औऱ जो कभी पाक का रणनीतिक असेट था, वह आज भस्मासुर बन गया है. अफगानिस्तान इनको अब बचा रहा है. उस इलाके में जो लोग हैं, वे पश्तून ही हैं औऱ एक ही संस्कृति के हैं. वहां अफगानी-पाकिस्तानी का भेद नहीं पता चलता औऱ वे खैबर पख्तूनख्वा के पूरे इलाके को अफगानिस्तान में मिलाना चाहते हैं. इसके अलावा भी कुछ और मुद्दे हैं, लेकिन मुख्य मसला है अफगानिस्तान का डूरंड रेखा को मिटाकर वहां के पाकिस्तानी इलाके को खुद में शामिल करना. तो, अगर संक्षेप में कहें तो पाकिस्तान के पास आज दर्जनों समस्याएं हैं, लेकिन समाधान एक भी नहीं.
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