चीन, पाकिस्तान और तुर्की का ये 'नापाक गठजोड़' क्या बन जाएगा भारत के लिए बड़ा खतरा?
भारत के तमाम विरोध को दरकिनार करते हुए कर्ज में डूबे पाकिस्तान ने एक बड़ा कूटनीतिक दांव खेलते हुए अब तुर्की को फिर से दाना डाला है. भारत ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (China–Pakistan Economic Corridor) यानी सीपीईसी का हमेशा से विरोध किया है. बड़ी वजह ये है कि यह कॉरिडोर पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरेगा, जो भारत की सुरक्षा व संप्रभुता के लिए बड़ा खतरा है लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अब तुर्की (Turkey) को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया है.
पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार तुर्की को दिया ये सीपीईसी का निमंत्रण गरीबी को दूर करने और मुल्क में समृद्धि लाने में मददगार बन सकता है. ज़ाहिर है कि अगर तुर्की इसमें भागीदार बनता है, तो वह पाकिस्तान को इफरात में पैसों की मदद करेगा. गौर करने वाली बात ये है कि तुर्की वह देश है, जो कश्मीर के मसले पर हमेशा अपनी टांग अड़ाता आया है, इसलिए अगर तुर्की इस प्रोजेक्ट में भागीदार बनता है तो भारत के लिए ये स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक बन जाएगी. वह इसलिए कि तीनों का ये ऐसा नापाक गठजोड़ बन जायेगा, जो अपनी खुराफातों से भारत को चैन से नहीं रहने देगा.
हालांकि भारत की तरफ से बीते जुलाई में ही इस बात की आलोचना की गई थी कि किस तरह से चीन और पाकिस्तान एक तीसरे देश को इस प्रोजेक्ट में शामिल करने को बेताब हैं. बीते मई में भी पाकिस्तान ने तुर्की को इसमें शामिल होने का ऑफर दिया था. दरअसल,पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस समय तुर्की के दौरे पर हैं. शुक्रवार को तुर्की पहुंचे शहबाज ने अपने इस दोस्त को चीन के प्रोजेक्ट सीपीईसी में शामिल होने का आमंत्रण दिया है. अभी तक तुर्की ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है लेकिन अपनी माली हालत ठीक करने की कोशिश के अलावा इसे भारत के खिलाफ पाकिस्तान की एक बड़ी चाल भी समझा जा रहा है.
शरीफ ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के साथ मुलाकात के दौरान उन्हें सीपीईसी में शामिल होने का न्योता देते हुए दावा किया है कि पाकिस्तान को इससे काफी फायदा हो रहा है और यहां की जनता भी खुश है. पीएम शहबाज ने कहा, 'मैं कहना चाहूंगा कि चीन, पाकिस्तान और तुर्की के बीच यह सीपीईसी बहुत ही उम्दा साझा सहयोग होने वाला है और इसके जरिए हम रोजाना की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं.' उन्होंने यह भी कहा कि अगर तुर्की इस पर रजामंद होता है तो फिर वह इस मसले पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से चर्चा करेंगे. गौरतलब है कि तुर्की और पाकिस्तान के बीच इस साल राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे हो जाएंगे.
दरअसल, सीपीईसी चीन की परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसका उद्देश्य देश के प्राचीन व्यापार मार्गों को नवीनीकृत करना है. वहीं प्रधानमंत्री का मानना है कि सीपीईसी लोगों को रोजगार के साथ सशक्त बनाने में मदद कर सकता है. दरअसल, ये पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने तुर्की को इस तरह का कोई प्रस्ताव दिया हो.
इसी साल पाकिस्तान ने तुर्की के सामने 60 अरब डॉलर वाले सीपीईसी प्रोजेक्ट में शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया था. उस दौरान पीएम शहबाज शरीफ ने कहा था कि पाकिस्तान और तुर्की के बीच कई आयामों पर आपसी सहयोग जारी है. उल्लेखनीय है कि सीपीईसी को लेकर तुर्की ने पहली बार साल 2020 में बड़ा बयान दिया था. उस समय एर्दोगन पाकिस्तान के दौरे पर गए थे और उन्होंने तत्कालीन पीएम इमरान खान के साथ द्विपक्षीय वार्ता की थी. एर्दोगन ने तब मीडिया के सामने कहा था कि सीपीईसी, तुर्की के व्यापारियों के लिए एक बेहतर अनुभव हो सकता है. ऐसे में वह इस प्रोजेक्ट पर काम करने को लेकर इच्छुक हैं. एर्दोगन ने ये भी कहा था कि तुर्की को इस तरह के मौके नहीं मिले हैं जैसे बाकी देशों को हासिल हुए हैं.
बता दें कि सीपीईसी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है जिस पर करीब 60 अरब डॉलर का निवेश किया गया है. इस प्रोजेक्ट के तहत चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित शिनजियांग से पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर तक करीब 3000 किलोमीटर लंबे रास्ते पर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स चलाए जा रहे हैं. भारत की तरफ से हमेशा से इस प्रोजेक्ट का विरोध किया गया है. भारत का कहना है कि सीपीईसी, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, लिहाजा यह देश की संप्रभुता के खिलाफ है. इस प्रोजेक्ट में शामिल होने के लिए तुर्की की मिन्नतें करने के पीछे पाकिस्तान का अपना स्वार्थ है. दरअसल, चीन ने पाकिस्तान को सीपीईसी के नाम पर अब तक करीब 21.7 अरब डॉलर का कर्ज दिया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2019 तक पाकिस्तान ये कर्ज चीन से ले चुका है.
बताया गया है कि पाकिस्तान को 6.7 अरब डॉलर चीन को लौटाने हैं और यही उसके गले की हड्डी बन गया है. चीन अब और रकम पाकिस्तान में निवेश नहीं करना चाहता है. मोटे अनुमान के अनुसार पाकिस्तान के पास भी सिर्फ 10 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा है. ऐसे में,किसी तीसरे देश से इमदाद मिले बगैर चीन को इतनी बड़ी रकम चुका पाना उसके लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है.
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