पाकिस्तान इस वक्त अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. उसके हालात काफी खराब हैं और पॉलिटिकल लीडरशिप फेल है. आर्थिक संकट से ये मुल्क आज गुजर रहा है. ऐस लगता है की धीरे-धीरे पाकिस्तान अराजकता के खतरे की तरफ बढ़ता जा रहा है, क्योंकि आम लोगों के पास खाने-पीने के सामान की भारी कमी है. लोगों के पास पैसे नहीं बचे हैं. महंगाई बेकाबू हो चुकी है. आर्मी ने सोचा था कि शाहबाज शरीफ अगर आते हैं तो मामला कंट्रोल में आ जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अब अगर इमरान खान भी आते हैं तो वो भी हालात को नहीं सुधार पाएंगे, क्योंकि हालात काफी बिगड़ चुके हैं.


इस हालत में हमने देखा है कि जब भी स्थिति बहुत खराब होती है तो सेना ही सत्ता अपने हाथ में लेती है. अभी तक सिर्फ पूर्व मंत्री फव्वाद चौधरी को गिरफ्तार किया गया है. हो सकता है कि कुछ समय बाद इमरान खान की भी गिरफ्तारी हो सकती है. लेकिन अगर ऐसा होता है तो हालात और खराब हो सकते हैं.


इमरान से अब करिश्मा की उम्मीद कम


इमरान खान एक सिंबल बन गए हैं, उन लोगों की यूनिटी का, जो चाहते हैं कि डेमोक्रेसी मे रूल ऑफ लॉ हो. लेकिन, उनके पास भी तो कोई करिश्मा नहीं है. वो एक फेल प्राइमिनिस्टर थे. जब उन्होंने देखा कि सत्ता से हटाए जाने वाले हैं तो उन्होंने वो बातें की जो लोगों की आम तौर से पसंद थी. 


जहां तक नवाज शरीफ की बात है तो वे बाहर बैठे हुए हैं. उनके भाई शाहबाज शरीफ सरकार चला रहे हैं. लेकिन एक हकीकत ये है कि स्थिति बेहतर होने की बजाय और बिगड़ चुकी है.


सेना के खर्च में करें कटौती


अगर अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कुछ कटौती करनी ही है तो सेना के खर्च में कटौती करें. सेना में इतनी बड़ा खर्च है. न्यूक्लियर विपन के रख-रखाव में काफी खर्च है, उसे खत्म करें. उससे कुछ पैसा बचेगा. नई खरीद बंद करें. इनको पॉलिसी में बदलाव करनी होगी. अगर पाकिस्तान को बचाना है तो ये सारी चीजें करनी होगी.


पाकिस्तान क्यों बर्बाद हुआ क्योंकि उसकी पुरानी पॉलिसी थी. पुरानी पॉलिसी थी कि आतंकवाद के माध्यम से अपना वर्चस्व बढ़ाएँगे. कश्मीर को पूरा हड़प लेंगे. अफगानिस्तान पर अपना प्रभुत्व जमाएंगे. इसलिए पॉलिसी में बदलाव की जरूरत है. आतंकवाद को बंद करें और भारत से बातचीत करें. बिना भारत से बातचीत के हालात नहीं सुधर सकते हैं.


कितने मुसलमानों के मुल्क तबाह हो गए


सेना बैरक में वापस जाए, डेमोक्रेसी आए. लेकिन ये सब ये होने नहीं देंगे. इसी में हमने देखा कि कई मुसलमान मुल्क बर्बाद हो गए हैं. ये सबसे बड़ा अपना दुश्मन भारत को मानते हैं. इनका एजेंडा कभी भी विकास का नहीं रहा है. हमेशा धर्म की बात की है. दूसरे मुल्कों के हितों का समर्थन किया. अमेरिका की अफगानिस्तान मदद की, मुजाहिदीन की हेल्प करके. फिर इनके हौसले बुलंद हो गए. इसने तालिबान से अपना हित साधना चाहा. लेकिन जब तालिबान सत्ता में आ गया तो उसने सोचा कि हम पाकिस्तान की क्यों सुने.


इसलिए पाकिस्तान कभी विकास के बारे में नहीं सोचा. वहां भ्रष्टाचार काफी है. अभी भी लोग और नेता मध्यकालीन युग में जी रहे हैं. न लीडर है और न कोई धार्मिक नेता नजर आ रहा है. 


डर इस बात का है कि कहीं अराजकता न फैल जाए. इतने आतंकी संगठन हैं, माफिया काफी एक्टिव है. आए दिन फिरौती की खबरें सामने आ रही है. हथियार लोगों को पास काफी है. इसलिए मुझे नहीं लगता है कि हालात सुधर पाएंगे क्योंकि सेना को वापस बैरक में जाना पड़ेगा और सेना किसी भी हालत में वापस नहीं जाएगा. मुझे लगता है कि सेना खुद सत्ता में आना की कुछ समय बाद कोशिश करेगी. 


पहले जब सेना सत्ता में आती थी तो लोग उसे स्वीकार कर लेते थे. लेकिन अब ये समझ चुके हैं कि पॉलिटिकल लीडरशिप को सेना चलने नहीं देती है, और जब फेल हो जाती है तो खुद सत्ता में आ जाती है और खुद भी कुछ बदलाव नहीं कर पाती है. सेना की जो छवि थी गार्जियन के रूप में काम करने का, वो छवि अब खत्म हो चुकी है.    


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