पाकिस्तान के 'आंसू' पर न पसीजे भारत, दुश्मन से न लगाए दिल
पाकिस्तान हर मोर्चे पर नाकाम हो गया है. पाकिस्तान 15-20 साल से जिस दिशा में चल रहा था, आज के हालात उसी का नतीजा है. अर्थव्यवस्था से जुड़ी समस्या दो या तीन साल की नहीं है. बीते 25 साल में पाकिस्तान में जितने भी हुक्मरान आए हैं, उन सभी ने समस्या को और बढ़ाया ही है, उसको बचाया नहीं है.
अतीत में जब कभी ऐसा लगा कि पाकिस्तान की अर्थव्यस्था खतरे से बाहर आ भी गई है, तो उस वक्त जो कदम उठाए गए, उन कदमों ने एक हिसाब से अगले संकट की बुनियाद रखी. चाहे वो मुशर्रफ का दौर हो या बाकी दौर हो, सबमें यही हुआ कि अर्थव्यवस्था दो-तीन साल के लिए थोड़ी रफ्तार पकड़ती थी, उसके बाद फिर ठप हो जाती थी.
पाकिस्तान चौतरफा संकट से घिर चुका है
ये हालात तब से है और अब समस्या ज्यादा गंभीर इसलिए हो गई है कि पाकिस्तान कई मोर्चे पर संकट में है. एक तरफ आर्थिक संकट है, जो देश को डूबा सकता है. दूसरी तरफ राजनीतिक संकट है. वहां उठा-पटक चल रही है और लोग राजनीति में ज्यादा रुचि ले रहे हैं, जबकि अर्थव्यवस्था बिल्कुल डूबती जा रही है. तीसरी तरफ आतंकी संकट है. इन्होंने तालिबान को खड़ा किया और ये सोचा कि तालिबान को लेकर ये क्षेत्र के ऊपर अपना वर्चस्व बना सकेंगे. अब इनको अपने आप को संभालने में मुश्किल हो रही है क्योंकि वो चीज पाकिस्तान को उल्टी पड़ गई है. चौथी चीज ये है कि घर के अंदर इतना संकट है कि एक तरीके से उबाल पैदा हो रहा है.
पाकिस्तान में किसी के पास समाधान नहीं
पाकिस्तान में किसी के पास इन संकटों का हल निकालने के लिए कोई उपाय नहीं है. हालात लगातार बद से बदतर ही होते जा रहे हैं. जो भी कोशिशें अभी चल रही हैं, वे ये हैं कि अगला दिन निकल जाए, एक हफ्ता निकल जाए या फिर एक महीना निकल जाए. कोई दूरदर्शिता नहीं है, कोई दूर की सोच नहीं है. कोई ऐसी चीज नहीं है कि कोई प्लान किया जाए कि कैसे हम इस संकट से बाहर निकल पाएंगे. कैसे हम इस देश को बचा सकेंगे.
पाकिस्तान के पीएम कर रहे हैं दिखावा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने जिस तरह का बयान दिया है, उस तरह का बयान हम लोगों ने कम से कम दो सौ बार सुने हैं. इस तरह का बयान देना तो बड़ा ही आसान है, उसमें किसी का कुछ नहीं जाता. सवाल है कि क्या आपने आतंकी गुटों को बंद किया है, आपने आतंकवाद बंद किया है, आपने जो दहशतगर्दी का माहौल शुरू किया था, उसे बंद किया है. पाकिस्तान अपने देश में हिन्दुओं के खिलाफ नफरत का माहौल पैदा किए हुए है. आज की तारीख में भी इनके सिन्ध प्रांत में बारह-तेरह साल की लड़कियों को अगवा किया जाता है, उनके साथ रेप किया जाता है, उनका धर्म परिवर्तन किया जाता है और फिर उनको मंडी में छोड़ दिया जाता है. क्या पाकिस्तान ने ये सब बंद किया है. अगर पाकिस्तान अपने लोगों के साथ ये काम कर रहा है, तो भारत को लेकर उसकी मंशा बदल गई है क्या. असल मुद्दा ये है.
मजबूरी और अंतरराष्ट्रीय दबाव में दिया है बयान
भारत को लेकर जिस तरह का बयान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री दे रहे हैं, ये उनकी थोड़ी मजबूरी है, शायद दुनिया भर से थोड़ा दबाव है कि आप भारत के साथ अपने हालात थोड़े बेहतर करिए, ताकि आपका व्यापार शुरू हो सके. अब अगर प्याज का दाम 400 रुपये प्रति किलो पहुंच जाएगा और फिर आप कहीं और से प्याज मंगवाएंगे, तो उससे दाम तो कम होंगे नहीं. अमृतसर से मंगवाएंगे तो बिल्कुल सस्ता प्याज आपको 50 रुपये में मिल जाएगा. ये भी पाकिस्तान के सामने मजबूरियां हैं.
पाकिस्तान का सबसे बड़ा निर्यात कॉटन और कॉटन टेक्सटाइल्स का है. इनके यहां पर इस बार लगभग 40 से 50% कॉटन की फसलें बाढ़ से तबाह हो गई. पूरी की पूरी जो इंडस्ट्री है, जिसपर इनका निर्यात आधारित है, वो सारी की सारी बिल्कुल डूब जाएगी. तो अब इनको कॉटन लेना है, तो ये कहां से लेंगे कॉटन. जहां से भी लेंगे वो महंगा पड़ेगा. भारत से लेंगे तो सस्ता पड़ेगा. लेकिन ये तो कश्मीर के घोड़े के ऊपर चढ़े हुए हैं. अब वो घोड़े से उतरेंगे नहीं. तो फिर कैसे बात बनेगी.
पाकिस्तान बदलने वाला नहीं
ये बेकार की बातें हैं कि 20 साल बाद देखेंगे. भारत के साथ भी एक समस्या है. वो पृथ्वी राज चौहान वाले कॉम्प्लेक्स में रहता है. एक बार जब दुश्मन को हरा दिया, तो पूरा समझौता करना चाहिए. यहीं हमने 1971 में नहीं किया. उस वक्त चीजें सुलटानी चाहिए थी, लेकिन हमने ये नहीं किया. भारत ने सोचा कि ये बदल गए हैं, अगले दो तीन साल में इसको ठीक कर लेंगे. 1971 के बाद जैसे ही थोड़े से उनके पैर संभले, जैसे ही थाड़ा सा उनमें स्थिरता आई, उन्होंने आतंकवाद का बाजार शुरू कर दिया. पहले पंजाब में किया, फिर कश्मीर में किया. अब इतिहास में इतनी बार ये झेल चुके हैं, लेकिन अगर आप फिर से ये सोचें कि पाकिस्तान इस बार बदल गया है, तो ये पागलपन और बेमानी है. एक ही चीज बार-बार दोहराना समझदारी नहीं है.
पाकिस्तान का भविष्य अंधकारमय है
आर्थिक संकट से घिरे पाकिस्तान का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. मुझे नहीं लग रहा है कि पाकिस्तान इससे उभर पाएगा. अगर किसी ने भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को समझने की कोशिश की है, तो ये स्पष्ट हो जाता है कि ये बहुत गंभीर समस्या है जिसकी जड़े काफी अंदर तक है. इनके पास सिर्फ इसके अलावा कि आज इधर से थोड़ा पैसा ले लो, उधर से थोड़ा अनाज ले लो, और कोई उपाय है नहीं. इससे काम चलेगा नहीं. किसी तरह से दो या छह महीने या ज्यादा से ज्यादा एक साल काम चला लेंगे. फिर दोबारा से इसी संकट में आएंगे. एक तरह से इनका दिवालिया होना अनिवार्य हो गया है क्योंकि जो इनका सरकारी तंत्र है, वो बना हुआ है, जिस तरीके की फौज इन्होंने खड़ी कर रखी है, इनके पास जो संसाधन है, उसमें वो फौज को पाल-पोस नहीं सकते. वो सारे खर्चे जो इन्होंने पाले हुए हैं, उसे अब नहीं उठा सकते. पाकिस्तान का जो समृद्ध तबका है, उसको जो रियायतें दी हुई हैं, वो अब नहीं दे सकते. ये सब बदलना भी इतना आसान काम नहीं है. उसमें भी वक्त लगेगा. पाकिस्तान को अपने खर्चे कम करने होंगे, जितनी चादर है, उतनी ही पैर फैलाने पड़ेगें. अगर ऐसा नहीं करेंगे तो संकट और बढ़ते ही जाएगा. ये स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान को संकट से कोई 6 महीने के लिए बचा लेगा या फिर एक साल के लिए, जबतक ये अपने आप में पूरी तरह से बदलाव नहीं करेंगे, स्थायी समाधान नहीं निकलेगा.
भारत के लिए है सुनहरा मौका
भारत के लिए ये एक अवसर है कि आप जो कुछ चाहते हैं, वो सारा कुछ अभी लीजिए, भविष्य के पोस्ट डेटेड चेक पर मत रहिए. ये पहले भी हम करते रहे हैं क्योंकि वो चेक बाउंस करेगा. आज लिखवा लीजिए जो भी लिखवाना है. बाद में बोलेंगे कि बड़ी गलती हो गई. जब भी दुश्मन डूब रहा हो, तो उसे बचाना नहीं चाहिए.
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