सत्ता का मीठा जहर पीने के लिए इमरान ने क्यों लिया 'कुरान' का सहारा?
उस जमाने की बादशाहत वाली सत्ता की कारगुजारियों के खिलाफ अपनी बातों से लोगों के दिमागी दरवाजे खोलने वाले यूनान के मशहूर दार्शनिक सुकरात को जहर का प्याला पिलाकर हमेशा के लिये मौत की नींद सुला दिया गया था, लेकिन उसी सुकरात ने अपनी मौत से पहले यूनान के लोगों के जरिये समूची दुनिया को एक संदेश दिया था, "सत्ता एक मीठा जहर है और इसकी कमान संभालने वाले इस जहर को पीने के बाद मरते दम तक उसका स्वाद चखना अपना हक़ समझते हैं.मेरे इस दुनिया से विदा होने के बाद इस मीठे जहर की कड़वी हकीकत पूरी दुनिया में देखने को मिलेगी."
हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में इस समय जैसा राजनीतिक हाहाकार मचा हुआ है, उसे देखकर आखिर हम ये मानने पर मजबूर क्यों नहीं होंगे कि ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी में पैदा हुआ एक दार्शनिक इतना बड़ा भविष्यवक्ता भी था कि तब उसकी कही इन बातों को हम 21 वीं सदी में अपने सामने हक़ीक़त में बदलते देख रहे हैं. सिर्फ पाकिस्तान का अवाम ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम मुल्क ये जानते हैं कि इमरान खान सत्ता के गणित में फेल हो चुके हैं, लेकिन फिर भी वे अपनी मर्जी से इस तख्तो ताज को छोड़ने से पीछे हटकर अपनी भड्ड पिटवा रहे हैं. कार्ल मार्क्स ने बरसों पहले कहा था-"धर्म वह अफीम है जिसे खाकर सारा संसार सोया हुआ है." इमरान खान ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए अब पाकिस्तानी अवाम की सबसे कमजोर समझी जाने वाली मज़हब की नब्ज़ को दबाने का अपना आखिरी सियासी हथियार इस्तेमाल किया है.
आज शुक्रवार से पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली यानी संसद का सत्र शुरु हो रहा है और समूचा विपक्ष अपने द्वारा इमरान सरकार के खिलाफ लाये गए अविश्वास प्रस्ताव पर आज ही चर्चा कराकर उस पर वोटिंग करवाने की जिद पर अड़ा हुआ है. लेकिन इमरान इसे 28 मार्च तक टालना चाहते हैं, ताकि उन्हें इस कुर्सी पर बने रहने के लिए शायद अलाउद्दीन का कोई चिराग़ ही मिल जाये. हम नहीं जानते कि जब आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे,तब तक इमरान अपने पद पर बने रहते हैं या उससे पहले ही वहां की सेना तख्तापलट करके मुल्क की कमान अपने हाथों में ले ले, लेकिन संसद का सत्र शुरु होने से ऐन पहले इमरान ने जिस मज़हबी जुनून को अपना सियासी औजार बनाने की कोशिश की है, वो पाकिस्तान समेत भारत के लिए भी चौंकाने वाली घटना है. इमरान खान ने विपक्ष पर हमला करने के लिए इस्लाम की पवित्र किताब कुरान का सहारा लेते हुए पाकिस्तानी जनता के सामने अपनी हारी हुई बाज़ी को जीतने की आखिरी गुहार लगाई है.
दरअसल वे संसद में अविश्वास प्रस्ताव आने से पहले 27 मार्च को इस्लामाबाद में लाखों समर्थकों की भीड़ जुटाकर अपनी ताकत की नुमाइश दिखाना चाहते हैं. लेकिन शायद वे यह भूल गए हैं कि लोकतंत्र की सियासत क्रिकेट का मैदान नहीं है, जहां स्टेडियम में बैठे हजारों-लाखों लोगों के जोशीले उत्साह की बदौलत आप किसी को क्लीन बोल्ड कर देंगे. यहां संसद के भीतर मौजूद कुल 342 सदस्य ही किस्मत का फैसला करने वाले हैं कि आप कितने रनों से ये बाजी हारते हैं. पाकिस्तानी मीडिया में आने वाली रिपोर्ट्स के मुताबिक इमरान खान फिलहाल बहुमत के जादुई आंकड़े से 20 नंबर कम पर अपनी सरकार गंवाते हुए नज़र आ रहे हैं. यानी उनके कम से कम 20 सांसदों ने विपक्ष का दामन थाम रखा है और उनके इमरान के पाले में वापस आने की उम्मीद लगभग नामुमकिन ही है.
इमरान भी इस हकीकत से वाकिफ हैं और शायद इसीलिये गुरुवार को उन्होंने कुरान का जिक्र करते हुए विपक्ष पर तगड़ा हमला किया. उन्होंने कहा, "कुरान में अल्लाह का हुक्म है...मुसलमानों को अल्लाह हुक्म देता है कि तुम्हें अच्छाई के साथ खड़े होना है और बुराई और बदी के खिलाफ खड़े होना है. इससे इमान और मुआशरा जिंदा रहता है." विपक्षी नेताओं की तुलना डाकुओं से करते हुए इमरान ने ये भी कहा कि "खुलेआम सारी अवाम के सामने डाकुओं का टोला 30 साल से इस मुल्क को लूट रहा है. करप्शन कर रहे, पैसा बाहर भेज रहे हैं, इन्होंने इकट्ठे होकर पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव की जमीर की कीमतें लगाई हैं. उनको खुलेआम खरीद रहे हैं. मैं ये चाहता हूं कि सारी मेरी कौम 27 मार्च को मेरे साथ निकले, सिर्फ एक पैगाम देने के लिए कि हम बदी के खिलाफ हैं. इस मुल्क में जो जुर्म हो रहा है, मुल्क की जम्हूरियत के खिलाफ, कौम के खिलाफ, अवाम के खिलाफ कि आप चोरी के पैसों से पब्लिक के नुमाइंदों की जमीर खरीद रहे हैं, कौम इसके खिलाफ है."
इमरान खान पाक की जनता के जेहन में ये भरोसा पैदा करने के लिये बौराये हुए हैं कि विपक्षी दलों ने उनके सांसदों को मोटा पैसा देकर खरीदा है और इसी दौलत के दम पर उनकी सरकार गिराने की ये साजिश है. इमरान की बात कुछ हद तक सच भी हो सकती है क्योंकि जंग और सियासत में सब कुछ जायज समझा जाता है और हमने अपने यहां के कुछ राज्यों में भी खरीदफरोख्त के बल पर सरकार गिराने और बनाने के खेल को देखा है, लेकिन बीजेपी की तरफ से देश के पहले प्रधानमंत्री बनने वाले दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति का इकलौता ऐसा अपवाद माना जाता है, जिन्होंने सांसदों की खरीदफरोख्त करके सत्ता में बने रहने की बजाय अपनी 13 दिन पुरानी सरकार को कुर्बान कर देना नैतिक रुप से ज्यादा बेहतर समझा. 14 मई 1996 को वाजपेयी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद के रूप में शपथ ली और उन्हें संसद में बहुमत साबित करने के लिए 2 हफ्ते का समय दिया गया था, लेकिन वाजपेयी संसद में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए और केंद्र में बनी बीजेपी की पहली सरकार ही मात्र 13 दिन में ही गिर गई थी.
राजनीति में नैतिकता और ईमानदारी कितनी मायने रखती है,इसकी मिसाल अटलजी का लोकसभा में दिया गया वह भाषण है, जो आज इतिहास का एक अमूल्य दस्तावेज़ बन चुका है. राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपने से पहले 27 मई को लोकसभा में दिए भाषण में अटलजी ने कहा था-‘‘मैं पिछले 40 साल से संसद में हूं. मैंने यहां कई सरकारें बनते और गिरते देखी हैं. इस सियासी उठापटक भरे दौर में भारत का लोकतंत्र और मजबूत हुआ है. आज मुझ पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि मैं सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकता हूं, मैं इससे पहले भी सत्ता में रहा हूं लेकिन मैंने कभी किसी तरह का अनैतिक काम नहीं किया है. यदि कुर्सी पर बने रहने के लिए पार्टियों को तोडऩा जरूरी है तो मैं इस तरह का गठबंधन कभी नहीं करूंगा, लेकिन पाकिस्तान में ऐसा कौन-सा नेता है जो इस मौके पर इमरान खान को अटलजी के इस भाषण की याद कराते हुए वहां के सियासी इतिहास में एक नई इबारत लिखने की नसीहत दे सके?
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