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पाकिस्तान की हालत हर कसौटी पर बेहद खराब, चीन का दामन छोड़ फिर जाएगा अमेरिका के पास

पाकिस्तान के चुनाव संपन्न होने के बाद पीएम पद की शपथ शहवाज शरीफ ने ले ली है. उसके बाद उन्होंने भारत के खिलाफ विश्व को अमन चैन कायम करने की बात कही. पाकिस्तान के आर्थिक हालात भी खराब है. नेशनल एसेंबली में बहुमत पाने के बाद पाकिस्तान के पार्लियामेंट में ही कश्मीर और फिलिस्तीन के बारे में शहवाज शरीफ ने मुद्दे को उठाया. ऐसी नयी बात नहीं है जो भी पाकिस्तान की सत्ता में आया वो ऐसा शुरू से ही करता रहा है. कश्मीर के मुद्दे को पाकिस्तान हमेशा से लोकल स्तर और इंटरनेशनल स्तर पर उठाते रहा है. ये कोई बयान सरप्राइज जैसा नहीं है. यह एक तरह का उनका एक प्रोपगेंडा होता है. हालांकि, पाकिस्तान के अपने दामन में इतने छेद हैं, बलूचिस्तान से लेकर अफगान सीमा और सिंध तक में, कि पहले उनको अपना घर देखना चाहिए था. 

जिहादियों से पाकिस्तान का नुकसान 

 पाकिस्तान का हाल खराब है. अफगानिस्तान से भी रिश्ते खराब हैं. टेरेरिस्ट और अन्य जो मुद्दे हैं इससे पाकिस्तान को भी खतरा है. अफगानिस्तान का साफ कहना है कि जो भी खैबर पख्तूनख्वा  है वो उनका ही है. इसको लेकर रहने की बात कह रहा है. एक तरह से पाकिस्तान के लिए यह बड़ी चुनौती है, लेकिन पाकिस्तान इन सब जैसे चीजों से बाज नहीं आ रहा. और जिहादियों को सपोर्ट कर रहा है चाहें हम बात करें भारत के खिलाफ  या इरान के की..  पाकिस्तान कश्मीर में का स्पोंसर्ड टेरेजिज्म तो भारत में देखने को मिलता है. पाकिस्तान जो जिहादियों को साथ दे रहा है. वो कहीं न कहीं पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को नीचे ला रहे है.

इन सब चीजों से वहां पर कोई शांति बहाल नहीं है. इसलिए पाकिस्तान की इकोनॉमी में कोई इनवेस्ट नहीं करना चाहता. टेरोरिस्ट ग्रुप वहां पर इतने एक्टिव हैं कि वहां विकास की गति पर भी रोक लग सी गई है. इकोनॉमी की स्थिति नहीं सुधर रही हैं और लगातार गरीबी बढ़ती जा रही है तो कहीं न कहीं इस्लामिक जिहाद भी इसके लिए जिम्मेदार है. ऐसे मुद्दों पर भारत ने हमेशा से शांति की पॉलिसी को अपनाया है, लेकिन भारत का एक स्टेंड रहा है कि किसी मुद्दे पर टेरर और शांति दोनों एक साथ नहीं हो सकती. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति दयनीय होने में कहीं न कहीं टेरर मुख्य भूमिका निभाता है.

चीन के विस्तारवाद को नहीं समझता पाक

चीन शुरू से ही विस्तवारवाद का समर्थक रहा है.  पूरे विश्व में चीन विस्तारवाद को बढ़ावा दे रहा है. चीन अपने बीआरआई प्रोजेक्ट से साउथ एशिया के ज्यादातर देश पर पकड़ बना रहा है. जिसमें मालदीव, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल आदि शामिल है. जहां तक इकोनॉमी की बात है कहीं न कहीं इसको कंट्रोल करने में चीन अपनी भूमिका अदा कर रहा है इसके अलावा चीन और पाक दोनों ही खुराफाती देश हैं, आतंक के समर्थक भी हैं. अभी हाल ही में भारतीय नौसेना ने एक शिप को रोका है. जिसके परमाणु कार्यक्रम से जुड़े होने की आशंका थी. उसे सीज किया हुआ है.

उसमें जो कंप्यूटर और आइसीआर जो इटली से बना है. तो देश ने इसे सुरक्षा के लिहाज से रोक रखा है और सीज कर के रखा है. पाकिस्तान इसको भी लेकर हल्ला कर रहा है.  चीन और पाकिस्तान दोनों मिलकर हमेशा से भारत के खिलाफ रहे हैं. दोनों का हमेशा से ऐसा प्रयास रहा है. छोटे देशों को तो इसने अपने जाल में फंसा ही लिया है, जैसे मालदीव की 40 प्रतिशत इकोनॉमी कर्ज चुकाने में जा रही है.  यही हाल श्रीलंका और अन्य देशों का है. श्रीलंका का हरमनटोटा बंदरगाह जा चुका है. बांगलादेश ने खुद को अलग कर लिया है.

अमेरिका की ओर मुड़ेगा पाक

पाकिस्तान भी चीन और अमेरिका दोनों की ओर है, लेकिन बड़े जानकार मानते हैं कि अब पाकिस्तान भी शायद अमेरिका की पॉलिसी को ओर देख रहा है. क्योंकि दोनों की पॉलिसी में काफी अंतर है. चीन किसी भी दूसरे देश के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता. बीआरआई प्रोजेक्ट में मोडस आपरेंटी को देखा जाए तो इसमें जो इनवेस्ट किया है. वो हमेशा अपना फायदा देखता है. और उसी के अंतर्गत काम करता है. पाकिस्तान की एनर्जी सबसे ज्यादा हानि में है. नई सरकार को सबसे बड़ी परेशानी है कि वो आइएमएफ से पैसा कैसे लें. 31 मार्च से पहले उनको इकोनॉमी को मजबूत करने के लिए अभी चर्चा शुरू करेगा. पाकिस्तान तो फिलहाल अमेरिका से अपने रिश्तों को सही करेगा और चीन से अभी कुछ समय थोड़ी दूरी बनाएगा.

चीन उतनी पाकिस्तान की मदद नहीं कर पा रहा. भारत पाकिस्तान के संबंधों को अभी कोई खास खराब नहीं करेंगे . भारत शांति की राह अपनाएगा. लेकिन टेरर के साथ कोई शांति की बात नहीं होगी. फिलहाल आने वाले समय में तो ऐसा ही होता दिख रहा है. और इसी कदम पर आगे भारत बढ़ता हुआ दिख रहा है. इस बार हमने देखा ही है कि हमारे प्रधानमंत्री ने शाहबाज शरीफ के लिए कोई सोशल मीडिया पोस्ट तक नहीं लिखी है. भारत वैसे भी अभी चुनावी मूड में है, पाकिस्तान से तो अधिक गर्मी बढ़ाएगा नहीं. भारत अगर कोई कदम उठाएगा भी, तो नयी सरकार के गठन के बाद ही उठाएगा. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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