भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में 8 फरवरी को चुनाव होने वाले हैं. हालांकि, पहले तो इसी पर आशंका थी कि समय से चुनाव हो पाएगा या नहीं, क्योंकि पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता इमरान खान जेल में बंद हैं और उनकी पार्टी बिना उनके ही चुनाव के मैदान में है. इसी बीच एक सर्वे आया है, जिसमें दावा किया गया है कि पाकिस्तान के कद्दावर नेता इमरान खान की पार्टी लोकप्रियता की दौड़ में सबसे आगे चल रही है. सोचने वाली बात यह है कि इमरान खान जेल में बंद हैं, फिर भी उनकी पार्टी सबसे आगे चल रही है. नवाज शरीफ को सेना ने समझौते के तहत पाकिस्तान वापस बुलाया है, ऐसे भी आरोप लग रहे हैं, सेना अपनी कठपुतली के तौर पर नवाज को ही बिठाने की सोच रही है.
इमरान खान का भविष्य नहीं ठीक
ओपिनियन सर्वे के मुताबिक, 57 प्रतिशत से थोड़ी अधिक पाकिस्तानी जनता इमरान खान को ही अपना पसंदीदा नेता मानती है. उनकी पार्टी की लोकप्रियता भी नवाज शरीफ की पार्टी से अधिक है. हालांकि, सेना की मदद से नवाज शरीफ को भी काफी हद तक मुकाबले में लाया गया है. पाकिस्तान के गरीब तबके में इमरान खान की पार्टी को ज्यादा सपोर्ट है और इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान में इमरान खान की शुरू से ही लोकप्रियता रही है और अभी है. यदि चुनावी राजनीति के संदर्भ में देखा जाए तो पाकिस्तानी सेना ने एक षड्यंत्र के तहत पहले इमरान खान के ऊपर 180 से ज्यादा आरोप लगाए, फिर उनको जेल में बेद किया, इतने पर भी वे नहीं माने. इमरान खान को जेल भेज दिया गया, चुनावी दौड़ से उनका नामांकन ही खारिज करवा दिया गया. इसके बाद इमरान खान की पार्टी पीटीआई यानी पाकिस्तानी तहरीके-इंसाफ के चुनाव-चिह्न को ही हटा दिया गया. इमरान की पार्टी का चुनाव चिह्न क्रिकेट बैट था, अब उसकी जगह किसी और चिह्न को आवंटित किया गया है. वह भी कोई एक चिह्न नहीं है. किसी प्रांत में अगर कुकर चुनाव चिह्न है, तो कहीं पर आम है, यानी अलग-अलग चुनाव चिह्न हैं. पाकिस्तान की कुल आबादी में 40 प्रतिशत लोग शिक्षित हैं मात्र, इससे ये होगा कि बाकी के लोग वोट देते समय सिर्फ चिह्न देखकर पहचान करेंगे, जब उन्हें पार्टी का चिह्न ही नहीं दिखेगा तो वो क्या करेंगे. इससे भ्रम फैलेगा, भ्रम से हताशा और फिर इमरान को व्यवस्था से बाहर कर दिया जाएगा.
चुनावी प्रक्रिया भी संदिग्ध
पाकिस्तान में जो चुनावी प्रक्रिया हुई, वह भी संदेह के घेरे में है. आशंका है कि जब अभी ये हाल है तो चुनाव के दौरान तो बैलेट को ही लूट लिया जाएगा या फिर मारपीट होगी, तोड़ दिया जाएगा. अभी तो एक ही लक्ष्य दिखता है कि कैसे भी इमरान खान की पार्टी न जीत न सकें. हर प्रत्याशी को अलग चिह्न दिए जा रहे है, नामांकन खारिज कर रहे हैं. अगर वहां फ्री एंड फेयर इलेक्शन कराना है तो एक तरह से इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशंस मॉंनिटरिंग में ही पाकिस्तान में इलेक्शन होना चाहिए. हम जिय डेमोक्रेसी की बात करते हैं, वह निष्पक्ष और बिना भेदभाव का चुनाव तो कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन ही करवा सकता है. अगर दुनिया चाहती है कि पाकिस्तान एक डेमोक्रेटिक कंट्री रहे तो किसी की निगरानी में, देखरेख में चुनाव करवाया जाए. इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान की किंग मेकर सेना है और सेना ने अपना समर्थन नवाज शरीफ को दे रखा है. नवाज शरीफ लंडन से पाकिस्तान एक प्लान के तहत ही आए है.
इमरान के सितारे गर्दिश में
जहां तक इमरान खान का सवाल है तो वह अभी जेल में ही रहेंगे, उनको जमानत नहीं मिलने वाली है. हो सकता है जब नवाज शरीफ की सरकार आ जाए फिर उसके बाद आर्मी में कुछ बदलाव हो. शुरू से ही देखा जाए तो पाकिस्तान का डेमोक्रेटिक सेटअप अलग रहा है. 1947 में भारत पाकिस्तान अलग हुए, हमारे यहां संविधान बना और 1950 में लागू किया गया. वहां 1958 में संविधान आया. पहली चुनी हुई सरकार 1973 में आई, आर्मी ने शुरू के 30 साल में शासन किया. आजतक वहां प्रजातांत्रिक तरीके से चुनाव नहीं करा पा रही है. पार्टियां भी बदल रही है लोग भी बदल रहे है. लेकिन आर्मी का पागलपन वैसे ही है. हालांकि, इस बार चैलेंज आ रहा है, इमरान खान की पॉपुलैरिटी की वजह से आर्मी अलग तरह की रणनीति अपना रही है. इस बार आर्मी को नाकों चनें चबाने पड़ रहे है. पहले आसानी से पावर इस हाथ से उस हाथ चला जाता था, लेकिन समय बदल चुका है. सब कुछ डिजिटल हो जाने की वजह से भी पॉलिटिकल ओरिएंटेशन और पॉलिटिकल जागरूकता फैली है. अब वो चीजें नहीं है जो आसानी से हो जाया करती थी. पाकिस्तान में अब आर्मी द्वारा अलग-अलग तरह की राजनीति चलाई जा रही है कि कैसे उनको रोका जाए.
भारत है बिल्कुल चौकस
पाकिस्तान के चुनाव का वैसे तो भारत में किसी तरह का असर नहीं होने वाला है, लेकिन जो चीन की उपस्थिति दक्षिण एशिया में बढ़ रही है. चाहे वो मालदीव हो, मालदीव अपने जीडीपी का लगभग 35 से 40 प्रतिशत कर्ज में चुका रहा है, इसलिए वहां चाइनीज प्रभाव बढ़ा है. तो एक तरह से सुरक्षा के कारण पैदा कर रहा है. श्रीलंका के द्वारा भी यही हो रहा है. चीन की उपस्थिति बांग्लादेश, भुटान और नेपाल में भी बीआरआई प्रोजेक्ट के तहत है. भारत इन सारे खतरों को समझ रहा है. हमारे भारत के प्रधानमंत्री इस चीज को लेकर सक्रिय हैं. हमारी सरकार इस मामले में चिंतित है औऱ निपटने को तैयार भी. साथ ही हमारे जितने भी पड़ोसी देश हैं, चाहे भूटान हो, चीन हो या मालदीव हो, हमें कांफिडेंस जीतने की जरूरत है. हमें इन्हें खाली स्थान नहीं देना है कि चीन उस खाली जगह को भरे. इस पूरे क्षेत्र में भारत का दबदबा है. भारत को अपने पड़ोसी देशों को भरोसे में लेने की जरूरत है. इससे हमारे पड़ोसी देश के साथ संबंध अच्छे होंगे.
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