मशहूर समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने कहा था "जिस दिन सड़क खामोश हो जायेगी, उस दिन संसद आवारा हो जायेगी." फिलहाल सड़क तो खामोश होती नहीं दिखती लेकिन संसद के भीतर जनहित से जुड़े मुद्दों पर आवाज़ उठाने वाले विपक्षी सांसदों को सदन से निलंबित करने का सिलसिला जिस तरह से बढ़ रहा है, उसे लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं कह सकते. सरकार कोई भी हो, वह ऐसे मुद्दों पर सदन में चर्चा कराने से अक्सर बचती ही है, जहां उसे अपनी कमजोरी उज़ागर होने व जनता के बीच इमेज ख़राब होने का डर रहता है. 


महंगाई भी कुछ ऐसा ही मुद्दा है,जिस पर चर्चा कराने को लेकर विपक्ष दोनों सदनों में हंगामा कर रहा है.बड़ा सवाल ये है कि ऐसे ज्वलन्त मुद्दे पर सरकार चर्चा कराने से आखिर क्यों बच रही है और विपक्ष की आवाज़ चुप कराने के लिए सदस्यों का निलंबन ही क्या एकमात्र रास्ता है? लोकतंत्र में संसद से लेकर सड़क तक सरकार और विपक्ष के बीच तीखी नोंकझोंक होना आम बात है, जो सिलसिला आज़ादी के बाद से निरंतर चला आ रहा है.


विरोध की आवाज़ के बगैर तो लोकतंत्र का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता और अगर उस आवाज को ही दबा दिया जायेगा, तो फिर भारत और चीन या उत्तर कोरिया में फ़र्क ही क्या रह जायेगा! सांसदों के निलंबन को लेकर सरकार के अपने तर्क हैं, तो विपक्ष के अपने दावे.कुछ हद तक दोनों ही अपनी जगह पर सही भी हैं. सरकार की दलील है कि अगर विपक्ष को सदन में ऐसे ही हंगामा करने की छूट मिलती रही, तो फिर संसद की कोई गरिमा व मर्यादा ही नहीं बचेगी. लिहाज़ा उसे कायम रखने के लिए ऐसे सदस्यों के खिलाफ कोई सख्त फैसला तो लेना ही होता है.


जबकि विपक्ष का दावा है कि सरकार उसके सदस्यों को निलंबित करके समूचे विपक्ष को डराना-झुकाना चाहती है लेकिन वह झुकने वाला नहीं है.सदन नहीं चलने देना अगर विपक्ष का हथियार है,तो सदन चलाने की जिम्मेदारी तो सरकार की ज्यादा है.ऐसे में,विपक्ष से संवाद की बजाय निलंबन को ही सरकार अपने हथियार के रुप में आखिर क्यों इस्तेमाल कर रही है?


महंगाई के मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग को लेकर सदन में हंगामा करने वाले 19 सांसदों को मंगलवार को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया.इनमें सबसे अधिक 7 सदस्य ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के हैं.हालांकि इन सदस्यों का निलंबन शुक्रवार तक ही है.इससे पहले सोमवार को लोकसभा में भी इसी मुद्दे पर तख्तियां लेकर नारेबाजी करने वाले कांग्रेस के 4 सदस्यों को तो इस पूरे सत्र के लिए ही निलंबित कर दिया गया था.


हालांकि विपक्ष की मांग और सांसदों के निलम्बन पर सरकार का पक्ष रखते हुए संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि सरकार महंगाई पर चर्चा करने के लिए तैयार है, लेकिन महंगाई पर चर्चा के लिए वित्त मंत्री का सदन में उपस्थित होना आवश्यक है. चूंकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अभी अस्वस्थ होने के कारण संसद नहीं आ पा रही हैं. जैसे ही वे स्वस्थ होकर संसद आएंगी, सरकार महंगाई पर चर्चा जरूर कराएगी. लेकिन विपक्ष सरकार के इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं है. उसे लगता है कि वित्त मंत्री के संसद आने के बाद भी चर्चा से बचने के लिए फिर कोई नया बहाना तलाश लेगी.


अपनी पार्टी के चार सदस्यों के निलंबन पर लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि सरकार हमारे सांसदों को निलंबित करवा कर हमें धमकाने की कोशिश कर रही है. इन सदस्यों की गलती क्या है? वो तो सिर्फ जनता से जुड़े मामले उठा रहे थे. लेकिन कांग्रेस झुकने वाली नहीं है.


वहीं पार्टी प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल कहते जेम कि संसद की एक परंपरा रही है कि निलंबन बहुत ही विरले मामलों में होता है. अगर कुछ ऐसा हो गया है जिसमें निलंबन के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है, तो निलंबन किया जाता है.


हालांकि दोनों सदनों में ये पुरानी परंपरा रही है कि जनहित से जुड़े मुद्दों पर नारे लगाते हुए विपक्षी सदस्य आसन के निकट यानी वेल में आ जाते हैं.जब बीजेपी विपक्ष में थी, तब उसके सदस्य भी इस हथियार का खूब इस्तेमाल करते थे. ऐसे शोरगुल के बाद अक्सर सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है और फिर स्पीकर और सभापति के कक्ष में सरकार और विपक्षी नेताओं के बीच बातचीत के जरिये बीच का रास्ता निकाला जाता है, ताकि सदन को सुचारू रूप से चलाया जा सके. लेकिन इसके लिए सरकार संवाद को अपना हथियार बनाती है, न कि निलंबन को.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)