देश आज 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मना रहा है. 1947 में हमें आजादी तो मिली लेकिन देश दो टुकड़ों में बंट गया- भारत और पाकिस्तान. इसके बाद फिर पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए और बांग्लादेश के रुप में नई शक्ल अख्तियार की देश के विभाजन से करीब डेढ़ करोड़ लोगों का इस दौरान विस्थापन हुआ. 80 लाख गैर मुस्लिम लोगों का पाकिस्तान से भारत की ओर पलायन हुआ जबकि करीब 75 लाख मुलसमान भारत से पाकिस्तान चले गए. तो वहीं 5 से 10 लाख लोगों को उस वक्त हुए साम्प्रदायिक दंगे में मौत के घाट उतार दिए गए.


पीएम मोदी की तरफ से साल 2021 में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का एलान किया गया था. इसके पीछे एक बड़ा उद्देश्य ये बताने का प्रयास था कि हमारे देश की आजादी बहुत आसानी से नहीं मिली है.इसकी बहुत कीमत चुकानी पड़ी है। आजादी की लड़ाई में  हमारे अनगिनत लोग शहीद हुए और आजादी मिलने के साथ देश को जो विभाजन हुआ उसमें भी बड़ी संख्या में इस देश के लोग प्रभावित हुए.  कुछ ब्रिटिश पत्रकारों ने तो यहां तक कहा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा और रक्त रंजित  विभाजन था, जिसमें डेढ़ करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ. इसमें पंजाब और बंगाल के हिस्से के लोग सबसे अधिक प्रभावित हुए.


दुनिया का सबसे रक्त रंजित विभाजन


इस विभाजन के सही आंकड़े तो नहीं आए, लेकिन ऐसा माना गया कि करीब 10 लाख लोग मारे गए. इतनी रक्त रंजित हिंसा के बाद देश को जो आजादी मिली, उसको बहुत गंभीरता से सुरक्षित रखना है. हमें बहुत ही प्राण - प्रण से इसकी सुरक्षा करनी है। कोई भी ऐसा काम किसी को नहीं करना है जिससे देश की अखंडता प्रभावित हो और दुनिया में देश को बदनामी हो. हमें हर हाल में देश की अखंडता,संप्रभुता और एकता को बनाये रखना है. हमने जो खोया है,उसे भूलें नहीं और जो पाया है उसे खोयें नहीं. इतनी महंगी मिली आबादी को सुरक्षित रखना और अपने शहीदों को याद रखना ही हमारा धर्म है. देश सबसे ऊपर है. राष्‍ट्र है तो हम हैं. ये याद दिलाने के लिए पीएम मोदी की तरफ से साल 2021 में इसकी घोषणा की गई थी.



विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस, स्वतंत्रता दिवस से महज एक दिन पहले 14 अगस्‍त को मनाया जाता है. इसमें सिर्फ ये याद किया जाता है कि इस विभीषिका के दौरान किस तरह से देश आजाद हुआ और भारत हमेशा के लिए तीन टुकड़ों में बंट गया. विभाजन किसी भी रुप में अच्छा नहीं होता है. परिवार में जब दो भाइयों के बीच विभाजन होता है, तो वो भी अच्छा नहीं माना जाता है. उनकी ऊर्जा, उनकी शक्ति, उनकी प्रतिष्ठा सब खंडित हो जाती है. ठीक इसी तरह से भारत के साथ भी हुआ.


आप याद करिए कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में और उसके बाद भी आजादी के लिए हिन्दू और मुसलमान दोनों मिलकर लड़े थे. अंग्रेजों को मिलकर बहुत ही मजबूत टक्कर दी गई थी. उनकी चूलें हिल गईं थीं।अंग्रेजों ने समझा कि अगर दोनों कौम आपस में मिल जाएंगी तो हमें यहां से उखाड़ फेकेंगी. इसलिए, फूट डालो और राज करो की तर्ज पर हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाना शुरू किया.


अंग्रेजों की खतरनाक चाल


अंग्रेजों ने कहा भी कि हिंदू और मुस्लिम बदो अलग धर्म है और दोनों अलग-अलग धर्म के मानने वाले एक साथ नहीं रह सकते हैं. बहुत से लोग इन बातों में आ गए. इस तरह लोगों के मन में एक कुंठा पैदा हुई. छोटे-मोटे दंगे शुरू हो गए. मुस्लिम लीग, जिन्ना आदि  नेताओं ने मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की मांग शुरू कर दी. एक ऐसा देश जो सिर्फ मुसलमानों का हो. इसके पीछे राजनीतिक कारण ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार थे. हालांकि, सामाजिक कारण भी माना गया. लेकिन, मैं ऐसा मानता हूं कि जिन्ना की महत्वाकांक्षा और राजनीति में अपने श्रेष्‍ठ, अपने प्रभाव को दिखाने की मंशा मुख्य वजह रही.



इसलिए उन्होंने आजादी के करीब सालभर पहले बंगाल में डायरेक्ट एक्शन की धमकी देकर एहसास कराया कि हमें अलग नहीं करते हैं तो हम ऐसा कुछ कर सकते हैं. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद ब्रिटेन बुरी तरह से टूट चुका था. भारत और अन्य गुलाम देशों को वो संभाल नहीं पा रहा था. इसलिए उसने भारत को आजाद करने की घोषणा की. लेकिन अंग्रेजों ने जब आजादी स्वीकार की तो उसके मन में ये जरूर था कि ये दोनों देश शांति से न रहे और बंटवारे की घोषणा कर दी. पूरी दुनिया में हम देखेंगे की द्वि-राष्ट्र सिद्धांत कहीं सफल नहीं रहा और वही भारत में भी हुआ. रेडक्लिफ जिसे भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, से बंटवारे और सीमांकन का काम दिया गया. उसने जहां से चाहा बांट दिया. इससे चारों तरफ अफरातफरी मच गई. 


विभाजन के दौरान सबसे अधिक खून खराबे का असर पंजाब और बंगाल के लोगों पर पड़ा. हालांकि, जिन्ना ने कहा था कि पाकिस्तान धर्मनिरपेक्ष होगा और मंदिर, मस्जिद, चर्च जाने की आजादी होगी. किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा. यही मान कर काफी हिंदू वहां रुक गए और योगेन्द्र मंडल इन्हीं प्रलोभनों के चलते पाकिस्तान चले गए. वहां पर कानून मंत्री भी बने. लेकिन साल दो साल में उनका मुगालता दूर हो गया कि पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्षता रहेगी. वे भारत आ गए और एक शरणार्थी के रुप में उनका बंगाल में निधन हो गया.  


विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के मायने


पाकिस्तान की द्विराष्ट्र थ्योरी गलत थी. धार्मिक आधार पर विभाजन गलत था. जिन्ना ने जो कुछ कहा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ. पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम लोगों की आबादी करीब 15 से 16 फीसदी थी जो आज घटकर 1 फीसदी रह गई है. ये वहां के राजनीति फैसलों के कारण हुआ है. धर्मांतरण आज भी वहां धड़ल्‍ले से हो रहा है. हिंदू अल्‍पसंख्‍यकों की कोई सुनने वाला नहीं है. वे भाग कर भारत आ रहे हैं.  


लेकिन, बंगाल में भाषाई तौर पर हिन्दू और मुसलमान दोनों एक थे. जो पूर्वी पाकिस्तान बाद में बांग्लादेश बना, वहां भी भाषा को लेकर काफी एकजुटता थी. बांग्‍ला आज भी वहां पर उसी तरह से प्रभावी है.उर्दू बोलने वाले कम हैं. ‍लेकिन, पाकिस्तान में ऐसा कुछ नहीं हुआ.वहां कभी जो हिंदू मुस्लिम कभी भाई-भाई की तरह रह रहे थे,वे एक दूसरे के खून के प्‍यासे हो गए. लोगों को अपना घर बार संपत्ति छोड कर भागना पड़ा. पाकस्तान से आने के बाद वे  शरणार्थी का जीवन जीने पर मजबूर हो गए. भारत से जो मुसलमान पाकिस्तान गए, उनको भी वहां पर ज्यादा सम्मान के साथ नहीं देखा जाता है.


कुल मिलाकर देखें तो ये अंग्रेजों की जो कुटिल चाल थी, उसमें वो सफल हो गए. दोनों पक्षों के लोग इस दौरान मारे गए थे. अगर विभाजन नहीं हुआ होता तो भारत आज काफी मजबूत स्थिति में होता और हम दुनिया के ताकतवर देशों में होते गए. इससे हम काफी पीछे हो गए.   



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