सोमवार से भारी हंगामे के बीच शुरु हुए संसद के मानसून सत्र ने ये संकेत दे दिया है कि आने वाले दिनों में बाकी मुद्दों के अलावा जासूसी कांड की गूंज भी बहुत तेजी से सुनाई देगी. इसलिए आज संसद के गलियारों में एक ही सवाल उछलता रहा कि क्या जासूसी कांड मोदी सरकार के लिए मुसीबत का सबब बनेगा और यह भी कि क्या रविशंकर प्रसाद को इसकी जानकारी थी, इसीलिये उन्हें कैबिनेट से बाहर किया गया?


हालांकि विपक्ष ने इस मसले पर सरकार को बैकफुट पर लाने की पूरी तैयारी कर रखी है लेकिन सरकार से जुड़े सूत्रो के मुताबिक, वह इस पर जरा भी नहीं झुकने वाली है. क्योंकि सरकार कभी नहीं मानेगी कि उसने जासूसी करवाई या फिर उसे इस बात का पता था कि देश में किन लोगों की फ़ोन हैकिंग हो रही है.


वैसे भी पूरी दुनिया में क्रिमिनल लॉ का एक ही सिद्धांत है कि अपराध करने के बावजूद अभियुक्त को यही समझाया जाता है कि वो इंसाफ की देवी के आगे कभी भी यह न क़बूल करे कि उसने कोई गुनाह किया है. यही सिद्धांत दुनिया की सरकारों पर भी लागू होता है. इसलिये क़ानून के जानकारों की निगाह में कुछ दिनों के शोरशराबे के बाद केंद्र सरकार भी इससे अपना पल्ला झाड़कर बच निकलेगी. पर,देश की जनता को इस सवाल का जवाब नहीं मिल पायेगा कि पत्रकारों, नेताओं, जजों समेत इतने सारे लोगों की जासूसी फिर कौन करवा रहा था?


लेकिन इतना फर्क जरुर पड़ेगा कि इस खुलासे के बाद  सरकार के इक़बाल पर सवालिया निशान लग जायेगा और विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख लोगों में यह डर बैठ जायेगा कि कहीं उनकी भी ख़ुफ़िया निगरानी तो नहीं हो रही है.


उल्लेखनीय है कि रविवार रात को एक रिपोर्ट सामने आई, जिसमें दावा किया गया कि इज़रायल के सॉफ्टवेयर Pegasus की मदद से भारत के करीब 300 लोगों के फोन हैक (Phone Hacking) किए गए. इनमें 40 पत्रकार, मंत्री, विपक्ष के नेता, जज,बिजनेसमैन और अन्य सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए लोग शामिल हैं. ये रिपोर्ट वाशिंगटन पोस्ट समेत दुनिया की करीब 16 मीडिया कंपनियों ने प्रकाशित की है. इसमें आरोप लगाया है कि दुनिया की कई सरकारें एक खास पेगासस नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, बड़े वकीलों समेत कई बड़ी हस्तियों की जासूसी करवा रही हैं, जिसमें भारत भी शामिल है. हालांकि भारत सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया है.


गार्जियन अखबार ने तो साफ लिखा है कि जासूसी का ये सॉफ्टवेयर इजरायल की सर्विलेंस कंपनी NSO ने कई देशों की सरकारों को बेचा है. अखबार के खुलासे के मुताबिक, इस सॉफ्टवेयर के जरिए 50 हजार से ज्यादा लोगों की जासूसी की जा रही है. 


बता दें कि पेगासस को इजरायल की साइबर सुरक्षा कंपनी एनएसओ ने तैयार किया है. बांग्लादेश समेत कई देशों ने पेगासस स्पाईवेयर ख़रीदा है. इसे लेकर पहले भी विवाद हुए हैं. मेक्सिको से लेकर सऊदी अरब की सरकार तक पर इसके इस्तेमाल को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं. व्हाट्सऐप के स्वामित्व वाली कंपनी फ़ेसबुक समेत कई दूसरी कंपनियों ने इस पर मुकदमे किए हैं. भारत के बारे में आधिकारिक तौर पर ये जानकारी नहीं है कि सरकार ने एनएसओ से 'पेगासस' को खरीदा है या नहीं.


हालांकि, एनएसओ कंपनी खुद पर लगे सभी आरोपों को पहले भी खारिज करती रही है और अब भी उसने यही किया है. कंपनी दावा करती है कि वो इस प्रोग्राम को केवल मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को बेचती है और इसका उद्देश्य ‘आतंकवाद और अपराध के खिलाफ लड़ना’ है.


सरकारें भी जाहिर तौर पर यही बताती हैं कि इसे ख़रीदने के लिए उनका मक़सद सुरक्षा और आतंकवाद पर रोक लगाना है लेकिन कई देशों की सरकारों पर पेगासस के 'मनचाहे इस्तेमाल और दुरुपयोग के गंभीर' आरोप लगे हैं, जैसा कि अब मोदी सरकार पर लगा है.


पेगासस एक स्पाइवेयर है. ये एक ऐसा प्रोग्राम है जिसे अगर किसी स्मार्टफ़ोन फ़ोन में डाल दिया जाए, तो कोई हैकर उस स्मार्टफोन के माइक्रोफ़ोन, कैमरा, ऑडियो और टेक्सट मेसेज, ईमेल और लोकेशन तक की जानकारी हासिल कर सकता है.


साइबर सुरक्षा कंपनी केस्परस्काई की एक  रिपोर्ट के अनुसार, पेगासस आपको एन्क्रिप्टेड ऑडियो सुनने और एन्क्रिप्टेड संदेशों को पढ़ने लायक बना देता है. एन्क्रिप्टेड ऐसे संदेश होते हैं जिसकी जानकारी सिर्फ मेसेज भेजने वाले और रिसीव करने वाले को होती है. जिस कंपनी के प्लेटफ़ॉर्म पर मेसेज भेजा जा रहा, वो भी उसे देख या सुन नहीं सकती.


पेगासस के इस्तेमाल से हैक करने वाले को उस व्यक्ति के फ़ोन से जुड़ी सारी जानकारियां मिल सकती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पेगासस से जुड़ी जानकारी पहली बार साल 2016 में संयुक्त अरब अमीरात के मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर की बदौलत मिली. इसके बाद साल 2017 में न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक मेक्सिको की सरकार पर पेगासस की मदद से मोबाइल की जासूसी करने वाला उपकरण बनाने का आरोप लगा. 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)