यूपी में पेंशन बड़ा मुद्दा, राजस्थान में हुई घोषणा - जानिए राजनीतिक दलों का पेंशन प्लान
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यूपी में समाजवादी पार्टी ने सत्ता में आने पर पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया है. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज नए वित्तीय साल का बजट पेश किया . इसमें भी पुरानी पेंशन योजना फिर से शुरु करने का ऐलान किया गया है . कहा गया है कि 2004 में बंद की गई पेंशन योजना को बहाल किया जाएगा. सरकारी कर्मचारियों को रिटायर होने पर तनख्वाह का आधा पेंशन के रूप में मिलेगा.
यूपी में पेंशन योजना से वोटर्स पर नजर
यूपी में अखिलेश यादव को भी भरोसा है कि पेंशन योजना से 18 लाख कर्मचारियों को फायदा होगा. वहां से खबरें आ रही हैं कि सरकारी कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग इस वायदे से खुश होकर चुनावों में हर तरह से अखिलेश यादव का साथ दे रहा है. आखिर नौकरियां हैं नहीं या कम होती जा रही हैं ऐसे में पेंशन से कुछ राहत मिल सकती है. यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या 2004 में शुरू की गई नई पेंशन योजना विफल हो गयी है या फिर दलों को लगने लगा है कि पेंशन देकर वोट खरीदे जा सकते हैं. 2004 में केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों के साथ मिलकर पेंशन योजना खत्म की थी और बदले में एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) लागू की थी. 2004 से लेकर अगले 18 सालों तक यानी 2022 तक किसी सियासी दल ने नई पेंशन योजना का विरोध नहीं किया और न ही पुरानी योजना बहाल करने की मांग की.
यूपी में पांच सालों से अखिलेश यादव सत्ता से बाहर हैं. अगर इस बार अखिलेश सरकार में नहीं आते हैं तो सत्ता से दस साल तक बाहर रहेंगे. किसी भी क्षेत्रीय दल के लिए इतना लंबा समय वजूद बचाए रखने की दिशा में चुनौती होता है. यूपी में मायावती दस सालों से सत्ता से बाहर हैं और पार्टी का क्या हाल हुआ है यह किसी से छुपा नहीं है. अखिलेश इसे समझ रहे हैं और इसलिए पेंशन देने से लेकर तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने की बात कर रहे हैं. इस वायदे से वो दो लाभ होने की उम्मीद कर रहे हैं. एक सरकारी कर्मचारियों का वोट मिलेगा और दूसरा चुनाव प्रक्रिया में सरकारी कर्मचारी अगर साथ दें तो शाम को वोटिंग खत्म करने से पहले दल विशेष को लाभ पहुंचाने की स्थिति में रहते हैं. ऐसा लाभ अखिलेश यादव को मिलेगा ऐसा उन्हें लग रहा है.
राजस्थान में गहलोत के समीकरण
राजस्थान की बात करें तो अगले साल के अंत में चुनाव होने हैं. इस लिहाज से इस बार का बजट एक तरह से चुनावी बजट ही कहा जाएगा . राजस्थान में भी हर पांच साल बाद सरकार बदलती रही है. अशोक गहलोत पर इस समय दोहरा दबाव है. पांच साल बाद सरकार बदलने की परंपरा को बदलना है और साथ ही सचिन पायलट से भी हिसाब बराबर करना है. ऐसे में गहलोत अपना घर ठीक करने में लगे हैं. अब यह काम दो तरह से हो सकता था. पहला विकास के कामों पर जोर देकर, सरकारी नौकरियों में तेजी लाकर और परीक्षाओं में हो रही गड़बड़ियों को रोककर और दूसरा पेंशन योजना बहाल करने जैसी सरकारी कर्मचारी लुभावन योजना लागू करके. पहले काम में मेहनत और चुनौतियां बहुत हैं. दूसरे में सिर्फ घोषणा करनी है. पॉलिटिकल प्वाइंट स्कोर करना है. विपक्ष का मुंह बंद करना है. सचिन पायलट को बैक फुट पर लाना है.
क्यों हो रही है पेंशन योजना की बात
यहां अंत में सवाल उठाया जा सकता है कि आखिर क्यों पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की बात कही जा रही है .जहां तक मेरी जानकारी है किसी भी राज्य में सरकारी कर्मचारियों ने इस मांग को लेकर भारी भरकम दबाव नहीं डाला है. हड़ताल नहीं की है. होना तो यह चाहिए था कि एनपीएस में सुधार किए जाते, एनपीएस में नए विकल्प जोड़े जाते, एनपीएस में निवेश की सीमा बढ़ाई जाती जिससे इनकम टैक्स में रियायत मिलती. लेकिन न तो केन्द्र सरकार और न ही किसी राज्य सरकार ने एनपीएस को लेकर कोई कदम उठाया है. सबसे बड़ा सवाल है कि युवा वर्ग को नौकरी दी जानी चाहिए या 60 साल नौकरी कर चुके कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के तहत लाभ दिया जाना चाहिए.
(नोट - उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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