नोटबंदी के बाद देश में सबसे बड़ा चुनाव होने जा रहा है. यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनावों की तारीखें तय हो चुकी है. कुल मिलाकर करीब 25 करोड़ इन पांच राज्यों में रहते हैं. यानि सवा सौ करोड़ के देश का पांचवा हिस्सा इन चुनावों को प्रभावित करने वाला है. नोटबंदी के बाद पच्चीस करोड़ लोगों में से 16 करोड़ वोटर इस फैसले पर जनमत पेश करेंगे. इस नाते यह विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं. यह चुनाव बीजेपी , कांग्रेस, आप, सपा और बसपा सभी के लिए करो या मरो जैसे हैं. बीजेपी को अगर 2019 में लोकसभा चुनाव जीतना है तो उसे यूपी को जीतना ही होगा. अगर मायावती की पार्टी बसपा यूपी में हार जाती है को उसके लिए पार्टी के वजूद को बचाए रखने का संकट खड़ा हो सकता है. आम आदमी पार्टी दिल्ली के बाहर पहली बार किस्मत आजमा रही है. अगर पंजाब और गोवा में वह सिर्फ वोटकटवा ही साबित होती है तो अरविंद केजरीवाल का मोदी को चुनौती देना लगभग असंभव हो जाएगा. कांग्रेस अगर उत्तराखंड और मणिपुर हारती है और गोवा पंजाब नहीं जीत पाती है, साथ ही यूपी में वह हाशिए पर ही छूट जाती है तो राहुल गांधी के नेतृत्व पर खुलकर सवाल खड़े होंगे. समाजवादी पार्टी अगर दो धड़ों में टूटकर अलग अलग चुनाव लड़ती है और दोनों ही धड़े पिटते हैं तो 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को फायदा हो सकता है.


वैसे सबकी नजरें यूपी पर ही रहने वाली है. यूपी में इस समय सारा चुनाव समाजवादी पार्टी पर जा टिका है. अगर सपा एक होकर चुनाव लड़ती है और कांग्रेस के साथ साथ अजीत सिंह के लोकदल को अपने साथ ले लेती है तो वह यूपी में परचम लहरा सकती है. ऐसे में सारा मुस्लिम वोट एकतरफा उसके पास जा सकता है. अगर सपा टूटती है और मुस्लिम वोट दोनों धड़ों के साथ साथ मायावती और कांग्रेस के बीच बंटता है तो जाहिर है कि इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है. अगर सपा की टूट के बाद मुस्लिम वोट मायावती की तरफ जाता है तो मायावती के सत्ता में आने की संभावना बढ़ सकती है और बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. एबीपी न्यूज का ताजा सर्वे भी इसी तरफ इशारा कर रहा है. हैरानी की बात है कि छह महीने पहले सत्ताधारी सपा को तीसरे नंबर का बताया जा रहा था. तब मुख्य मुकाबला बीजेपी और बसपा के बीच का बताया जा रहा था. सर्जीकल स्ट्राइक के बाद बीजेपी आगे निकलती दिखी लेकिन नोटबंदी के बाद वह कुछ बैकफुट पर आती दिखी तो उसे सपा की फूट का सहारा फिलहाल मिलता नजर आ रहा है.


बाकी राज्यों में इतनी भसड़ नहीं है. पंजाब में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आप के बीच है. गोवा में जरुर पेंच फंसा है. वहां बीजेपी के लिए संघ से निकाले गये सुभाष वेलिंगकर मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं जिन्होंने शिव सेना के साथ मिलकर गावो सुरक्षा मंच के तहत चुनाव लड़ने का फैसला किया है. उधर आप भी कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है. मणिपुर में मुकाबला कांग्रेस और ममता की पार्टी के बीच हो सकता. यहां अभी तक तो बीजेपी कहीं नहीं नजर आती थी लेकिन इस बार उसने कांग्रेस के कुछ नेता तोड़ कर असम और अरुणांचल जैसा खेल रचने की कोशिश की है. नोटबंदी के दौरान ममता और कांग्रेस के बीच दूरियां घटी है. अब मोदी हटाओ, देश बचाओ के नारे के तहत ममता कांग्रेस की मदद करे तो मणिपुर में बीजेपी की संभावना को खत्म किया जा सका है. वैसे मणिपुर में लगातार 3 बार से सीपीएम सत्ता में है. चौका मारना उसके लिए आसान नहीं होगा. उत्तराखंड में मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. यहां की 11 सीटों पर मुस्लिम और दलित अपना असर रखते हैं जहां अगर मायावती ने अच्छा प्रदर्शन किया तो बीजेपी की सरकार बन सकती है. वैसे तो बीजेपी ने अपना कोई मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है लेकिन उसके यहां 5-5 संभावित मुख्यमंत्री चुनाव लड़ रहे हैं. इनमें कांग्रेस से आए विजय बहुगुणा और हरकसिंह रावत शामिल है. अगर पांचों ने आपस में ही एक दूसरे को निपटाने की सुपारी नहीं ली तो बीजेपी की वापसी के पक्के आसार नजर आते हैं.


चुनाव आयोग के कुछ नये फैसलों पर नजर डालना जरुरी है. अभी तक 20000 रुपये तक का चंदा बिना रसीद के लेने को दल आजाद है. यह आजादी इन चुनावों में भी रहने वाली है लेकिन बीस हजार से ज्यादा का खर्चा चैक से ही उम्मीदवार चुकी सकेंगे. नकद नहीं दे पाएंगे. उम्मीद है कि इससे काले धन पर रोक लग सकेगी. चुनाव आयोग नो उम्मीदवारों पर अपना शिकंजा कसा है. उसका कहना है कि वही उम्मीदवार चुनाव लड़ पाएंगे जिनपर पानी बिजली और किराए का कोई बकाया नहीं होगा. यह एक बड़ी पहल है. हाल ही में हरियाणा में पंचायत राज और स्थानीय निकाय के चुनावों में यह नये नियम लागू किए गये थे और इसका सकारात्मक नतीजा सामने आया था. वहां पानी , बिजली के आलावा सहकारी सरकारी बैंक से लिए कर्ज की किश्तें नहीं चुकाने वाले पर भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गयी थी. विधानसभा चुनावों के साथ साथ लोकसभा चुनावों में भी इस पर लागू किया जाना चाहिए. हरियाणा में तो बिजली और पानी विभाग को बरसों से अटके पैसों का एकमुश्त भुगतान हो गया था. सहकारी बैंकों से कर्ज लेने वालों ने या तो एक झटके में पूरा कर्जा ही उतार दिया या फिर अटकी हुई किश्तों का भुगतान कर दिया.


यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि विधायक निवास का पानी बिजली का बिल चुकाया नहीं जाता है, टेलिफोन का पैसा बकाया रहता है, यहां तक कि डाक बंगले और सर्किट हाउस का भी पैसा बहुत से विधायक वक्त पर नहीं चुकाते हैं. हाल ही में राजस्थान हाई कोर्ट ने ऐसे पूर्व विधायकों और सांसदों का बकाया पैसा वसूलने के लिए उनके नाम सार्वजनिक करने की धमकी अपने फैसले में दी थी. इसके आलावा पेड न्यूज पर चुनाव आयोग ने नजर रखने की बात की है. आयोग का कहना है कि पेड न्यूज पर सजा छह महीने से बढ़ाकर दो साल कर दी जानी चाहिए ताकि आरोपी आरोप साबित होने पर छह साल के लिए चुनाव लड़ने से भी महरुम रह जाए. इस सुझाव पर सब को मोदी सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जाति, धर्म, नस्ल और मजहब के नाम पर चुनाव लड़ने को गैर संवैधानिक बताया है. इस पर चुनाव आयोग का कहना है कि वह राजनीतिक दलों से उम्मीद कर रहे हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करेंगी. चुनाव आयोग का यह जवाब साफ बता रहा है कि वह खुद इस मसले पर अपनी तरफ से कोई बड़ी पहल करने के लिए तैयार नहीं दिखता. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विकास का नारा सिर्फ जुमला बन कर रह जाएगा और जाति धर्म के नाम पर वोट मांगने से उम्मीदवार नहीं हिचकिचाएंगे.