PFI पर बैन लगाने से क्या हो जायेगा समस्या का ख़ात्मा?
देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बताते हुए केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. पीएफआई के साथ ही उसके अन्य 8 सहयोगी संगठनों को भी बैन कर दिया है, जो उसके लिए विदेशी फंडिंग जुटाने के साथ ही ये भी तय करते थे कि कब, किस राज्य में कैसी वारदात को अंजाम देना है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि पीएफ आई पर बैन लगा देने भर से क्या समस्या ख़त्म जो जायेगी?
वह इसलिये कि साल 2001 में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी 'सिमी' पर भी ऐसा ही बैन लगाया गया था, जो आज भी लागू है. लेकिन नतीजा क्या हुआ कि 6 साल बाद ही सिमी के स्थान पर पीएफआई के नाम से एक नया संगठन जिंदा हो गया, जिसका मकसद भी वही था. इसलिये कहा जा रहा है कि इस प्रतिबंध से बहुत कुछ हासिल हो जाने की उम्मीद करना शायद बेकार ही होगा क्योंकि कट्टरपंथी ताकतें किसी और छद्म नाम से उन्हीं घटनाओं को अंजाम देने लगेगी.
तो फिर सवाल उठता है कि आखिर इसका उपाय क्या है? कुछ जानकार मानते हैं कि इसका तरीका ये है कि अपनी कट्टरपंथी सोच से समाज को भड़काने वाले व्यक्ति विशेष के ख़िलाफ़ सरकार को उसी वक़्त कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है और ये बगैर किसी पक्षपात या भेदभाव के लागू होनी चाहिए यानी कानून को लागू करते समय अपनी आंखों पर लगे चश्मे को उतार फेंकना होगा.
ऐसे आठ-दस मामलों में भी अगर पूरी निष्पक्षता से कार्रवाई हो गई, तो न तो भविष्य में ऐसे कट्टरपंथी संगठनों का जन्म होगा और न ही उन पर प्रतिबंध लगाने को नौबत ही आयेगी. लेकिन इसके लिए सरकार को भी अपनी नीयत साफ रखनी होगी, ताकि किसी को भी ये कहने का मौका ही न मिले कि सरकार ने बदले की भावना से कोई कार्रवाई की है.
हालांकि इस सच को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि पिछले कुछ सालों में कट्टरता हर धर्म या मज़हब में ज्यादा बढ़ चुकी है. ये अलग बात है कि कहीं उसने खतरनाक रुप ले लिया है, तो कहीं वह उसी रास्ते पर आगे बढ़ रही है. वैसे केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएफआई पर बैन लगाने की अधिसूचना जारी करते हुए अन्य कई तथ्यों के अलावा ये भी कहा है-"पीएफआई कई आपराधिक और आतंकवादी मामलों में शामिल रहा है और ये देश के संवैधानिक प्राधिकार का अनादर करता है.
साथ ही ये बाहर से फंडिंग लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है. " सरकार का कहना है कि पीएफआई का संबंध आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश और प्रतिबंधित संगठन सिमी से भी रहा है. हालांकि पिछले कुछ सालों से बीजेपी, आरएसएस समेत तमाम हिन्दू संगठनों के नेता पीएफआई पर बैन लगाने की पुरजोर मांग करते रहे हैं लेकिन सरकार के लिए ऐसी कोई भी करवाई करने से पहले तमाम पुख्ता सबूत व तथ्य जुटाना कानूनी रूप से अनिवार्य प्रक्रिया होती है.
इसीलिए केंद्रीय जांच एजेंसियों ने एक साथ 23 राज्यों में पीएफआई के ठिकानों पर छापे की कार्रवाई करते हुए पहले सारे दस्तावेजी सबूत इकठ्ठा किये, उसके बाद ही इस संगठन को बैन करने का फैसला लिया गया. वैसे पीएफआई कोई पहला संगठन नहीं है, जिस पर प्रतिबंध लगाया गया है.
इससे पहले भी गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त रहे 13 संगठनों को प्रतिबंधित किया गया है जिसमें सबसे चर्चित नाम सिमी का है. इसके साथ ही उत्तर पूर्व और कश्मीर में हिंसक गतिविधियों में शामिल रहे कई संगठन भी इस लिस्ट में शामिल हैं. इसके अलावा अन्य 42 आतंकी संगठनों पर भी बैन लगा हुआ है जिसमें जिहादी समूहों के अलावा "सिख फॉर जस्टिस" भी है, जिसका संचालन कनाडा से होता है.
हालांकि आंतरिक सुरक्षा का खतरा बताते हुए सरकार जब किसी संगठन पर बैन लगाती है, तो आमतौर पर उसका विरोध नहीं होता है. लेकिन AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इसका खुलकर विरोध करते हुए कहा कि 'अपराध करने वाले कुछ लोगों के गलत काम का ये मतलब नहीं कि पूरे संगठन को ही बैन कर दिया जाए. '
ओवैसी ने इस तरह के प्रतिबंध को खतरनाक बताते हुए ये भी कहा है कि ये हर उस मुसलमान पर बैन है जो अपने मन की बात कहना चाहता है. उनके मुताबिक भारत के काले कानून, यूएपीए के तहत अब हर मुस्लिम युवा को पीएफआई पैम्फलेट के साथ गिरफ्तार किया जाएगा. मैंने यूएपीए का विरोध किया है और यूएपीए के तहत सभी कार्यों का हमेशा विरोध करूंगा.
ये बैन स्वतंत्रता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है जो संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है. ओवैसी ने एक सवाल ये भी उठाया कि पीएफआई पर बैन लगाया गया लेकिन ख़्वाजा अजमेरी बम धमाकों के दोषियों से जुड़े संगठन नहीं बैन हुए. ऐसा क्यों? सरकार ने दक्षिणपंथी बहुसंख्यक संगठनों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया? सरकार को इसका जवाब देना चाहिये.
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