पीके घूम-घूमकर तेजस्वी के खिलाफ चला रहे डिग्री का अस्त्र, लालू के लाल के पास है एक ही काट
प्रशांत किशोर शुरू से किसके खिलाफ क्या बोल रहे हैं? वो सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी यादव के खिलाफ बोल रहे हैं और यही बोल रहे है कि तेजस्वी 9वीं फेल हैं, वो बिहार को नहीं चला सकते और यह भी कि उनकी एकमात्र योग्यता लालू प्रसाद यादव का पुत्र होना है. यह बात के. कामराज या ज्ञानीजैल सिंह के जमाने में कही गयी होती तो शायद कोई बात न होती, लेकिन जिस वक्त मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं, उस वक्त न जाने बिहार में कितने जेन अल्फा (नई पीढ़ी की एक किस्म) जन्म ले चुके होंगे. उनसे या उनके ठीक पहले वाले जेनरेशन (जो 18 साल से अधिक के हैं) से यह उम्मीद करना कि वे के.कामराज के बहाने तेजस्वी यादव की डिग्री वाली बात को अन्यथा लेंगे, मुझे सही नहीं लगता. मुझे लगता है कि पीके ने बहुत चतुराई से इन शब्दों को चुना है और वे उसमें कुछ हद तक सफल भी हुए, जिसकी बानगी हाल ही के बिहार विधानसभा उपचुनाव के परिणामों में झलकी है. तो, सवाल है कि तेजस्वी यादव के पास इन आरोपों के क्या जवाब है?
डिग्री महत्वपूर्ण है?
बिहार में जिस दिन श्रीमती राबडी देवी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब शायद इस डिग्री की उतनी जरूरत नहीं थी. लेकिन, आज केजरीवाल हों, पीके हों या और भी बहुत सारे अन्य नेता, वे शान से अपने डिग्री, अपनी पूर्व की नौकरी पर इतराते हैं. उसे अपनी मजबूती बताते है और जनता भी उन्हें इस बात के लिए रिवार्ड दे देती है. ऐसे दौर में जब प्रधानमंत्री की डिग्री पर एक सतत विवाद चल रहा हो, वहाँ डिग्री की अनदेखी भारी पड़ सकती है, जैसाकि हालिया बिहार विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिली. राजद की करारी हार हुई. एनडीए को भारी जीत मिली. चारों की चारों सीटें एनडीए ने जीती. राजद 30-31 फीसदी वोट से आगे नहीं बढ़ पाई, जो एक तरह से उसका बेस वोट है. जनसुराज ने निश्चित ही ओवरऑल १० फीसदी वोट ले कर राजद को नुकसान पहुंचाया हो, लेकिन इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि पीके जो आरोप तेजस्वी यादव पर लगा रहे हैं (9वीं फेल वाली), क्या उन आरोपों का असर भी बिहारी युवा मन पर हो रहा है? या तेजस्वी यादव मान कर चल रहे हैं कि डिग्री का मुद्दा बेवजह ही है. मुझे ऐसा लगता है कि यह एक जरूरी मुद्दा है, जिसे जल्द से जल्द तेजस्वी यादव को हल कर लेना चाहिए. उपाय बहुत साधारण है. उन्हें याद रखना चाहिए की नीतीश कुमार जहां इंजीनियर है, वहीं उनके पिता लालू जी भी एलएलबी की पढाई कर चुके हैं. ऐसे में पीके ने बहुत ही सावधानी से एक ऐसा मुद्दा चुना है, जो आने वाले चुनाव में तेजस्वी यादव के लिए मुश्किल का सबब बन सकता है.
तेजस्वी क्या करें?
नए साल में तेजस्वी यादव को एक संकल्प लेना चाहिए कि उन पर जो यह 9वीं फेल का कलंक हैं, उसे मिटा देंगे. अलबत्ता, उन्हें यह काम अब तक कर लेना चाहिए था. न जाने ऐसी क्या बाध्यता थी जो वे ऐसा नहीं कर पाए. इग्नू या नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी से अन्य किसी संस्थान से वे 10वीं, 12वीं, स्नातक, परा-स्नातक तक की पढाई घर बैठे और यहां तक कि चुनावी रैली करते हुए भी कर सकते हैं और अगले कुछेक सालों में इस कलंक को समूल मिटा सकते हैं. जनता हमेशा अपने उस नेता के प्रति उदार रहती है, जो ईमानदारी से अपनी कमियों को स्वीकार कर उसे दूर करने का भरोसा अपनी जनता को देता है. मुझे अच्छी तरह याद है कि केजरीवाल ने जब 49 दिनों की सरकार से इस्तीफा दिया था, तो उसकी बहुत आलोचना हुयी थी. बाद के विधानसभा चुनाव में उन्हें घूम-घूम कर जनता से माफी मांगनी पडी थी. ये वादा करना पड़ा था कि ऐसी गलती वे फिर कभी नहीं करेंगे. अंतत:. जनता ने उन्हें 70 में से 67 सीटें दे दी थी. तो तेजस्वी यादव को भी सार्वजनिक तौर पर अपनी जनता के समक्ष यह स्वीकार करना चाहिए की उन्होंने आगे की पढाई न करके गलती की थी और अब वे इस गलती को सुधार रहे हैं. उन्हें तत्काल कहीं एडमिशन लेना चाहिए. मुझे पूरा भरोसा है कि एक तरफ उन्हें जनता इस बात के लिए माफ़ भी कर देगी, उनकी साख भी बढ़ जाएगी और दूसरी तरफ, ऐसा कर के वे पीके के एक अस्त्र को निस्तेज भी कर देंगे. क्या तेजस्वी यादव ऐसा करेंगे? मुझे यकीन है कि उनके आसपास के लोग उन्हें कामराज की कहानी सुना-सुना कर अंधेरे में रखते होंगे याकि इस तरह के सुझाव देने का साहस भी उनमें न होगा. लेकिन, दोनों ही स्थितियों में नुकसान तेजस्वी यादव का ही होगा.
जाति बनाम विकास वाया डिग्री
जाति निश्चित ही बिहार की राजनीति का एक महत्वपूर्ण फैक्टर है, लेकिन, यही जाति है, जिसने लालू प्रसाद यादव के 15 साल के शासन को ख़त्म भी किया. क्या कोई यह दावे से कह सकता है कि मुस्लिम और अन्य पिछड़ी जातियों ने नीतीश कुमार और भाजपा का साथ नहीं दिया था या नहीं दे रहा है और सब के सब राजद के साथ जुड़े रहे. यकीनन, इसका जवाब नकारात्मक है. इनलोगों ने राजद का साथ छोड़ा था, तभी तो राजद को इतनी भी सीटें तब नहीं मिली थी, जिससे कि वह सदन में नेता विपक्ष का दर्जा संवैधानिक रूप से पा सके. क्या तेजस्वी यादव मानते हैं कि यह सब कल की बाते हैं और बिहार अब ऐसी बातों पर यकीन नहीं करता. मुझे लगता है कि अगर वे ऐसा सोच रहे हैं, तो गलत सोच रहे हैं. बिहार भले आगे गया या न गया हो, बिहार के युवा मन की आकांक्षाएं बहुत दूर आगे जा चुकी है. वह बेचैन है. वह आगे बढ़ना चाहता है. बिहार प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य यकीनन द्रुत गति से पिछले दिनों में बदला है. नए प्रतिभावान लोग मैदान में आए हैं, शायद और भी आएं. लालू जी भी, मुझे ऐसा लगता है, थोड़ा सशंकित हुए हैं. शायद तभी, उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर दबाव बनाने के लिए कह दिया कि ममता बनर्जी को इंडिया ब्लाक का नेता बना दो. तो, कन्हैया हो कि पीके, उनके खिलाफ आप राजनीतिक लड़ाई जरूर लड़ें, लेकिन डिग्री के साथ. क्या तेजस्वी यादव इस सेशन में कहीं एडमिशन ले लेंगे?
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