आज मोदी सरकार पार्ट-टू के पहले संसद सत्र की शुरुआत हो चुकी है। मोदी की अगुवाई में एनडीए पहले से ज्यादा बड़े आकार में अपने एजेंडे को लेकर हाजिर है लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र का पूरक माने जाने वाला विपक्ष इस बार भी पहले से ज्यादा लस्त-पस्त और अस्वस्थ है। ना नेता है ना नीति है और जनता के सरोकारों को मजबूती से उठाने की नीयत। चुनावी नतीजों में जनता की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद विपक्ष अब तक उबरता हुआ नहीं दिख रहा है। जबकि मजबूत विपक्ष की भूमिका से भाजपा ने 2 सांसदों से 303 तक का सफर तय कर लिया है वहीं बहुमत की बजाय सर्वमत से सरकार चलाने के लिए पक्ष और विपक्ष से उपर उठकर निष्पक्ष होने की बात करने वाले नरेंद्र मोदी विपक्ष की भावना को तो मूल्यवान बता रहे हैं लेकिन लोकसभा में 44 से 52 सांसदों वाली कांग्रेस को इस बार भी मोदी नेता विपक्ष का पद देंगे या नहीं इसपर फैसला होना अभी बाकी है।


17वीं लोकसभा में चुन कर पहुंचे सांसदों के शपथ ग्रहण के साथ ही संसद के सत्र की शुरुआत हो गई। लेकिन 16वीं लोकसभा के मुकाबले इस बार सिर्फ पीएम मोदी की अगुवाई वाले एनडीए का दायरा और बढ़ चुका है जबकि संख्याबल में विपक्ष की ताकत और घट चुकी है।


2019 के चुनावों में भाजपा की प्रचंड विजय के बाद से ही आशंका जताई जा रही थी कि पहले से ज्यादा कमजोर विपक्ष आखिर कैसे सरकार का मुकाबला करेगा लेकिन संसद सत्र की शुरुआत के साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा है विपक्ष को लोकतंत्र में उसकी भूमिका की याद दिलाते हुए न्यू इंडिया के लिए हर दल से निष्पक्ष होकर काम करने की अपील की है।


संसद सत्र से पहले विपक्ष को भरोसे में लेने की कोशिश हर सरकार की रवायत रही है ताकी संसद में गतिरोध जैसे हालात पैदा ना हों। हालांकि विपक्ष ने खुद को कमजोर ना दिखाते हुए प्रधानमंत्री की अपील पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है।


लेकिन सबको निष्पक्ष रहने की नसीहत देने वाले प्रधानमंत्री मोदी के सांसद और मंत्री ही अपने बयानों से मोदी के 'सबका विश्वास' एजेंडे पर सवाल खड़ा कर चुके हैं। मसलन नेताओं की इफ्तार पार्टी पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का ट्वीट और हैदराबाद को आतंकियों के लिए सुरक्षित स्थान बताने वाले केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किशन रेड्डी।


ऐसे में सबको निष्पक्षता की घुट्टी पिलाने से पहले अपने सांसदों और मंत्रियों को निष्पक्षता की परिभाषा बताना पीएम मोदी की सबसे बड़ी चुनौती होगी। साथ ही मजबूत विपक्ष को मजबूत लोकतंत्र की जरूरत बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी को ही तय करना है कि संख्याबल कम होने के बाद भी वो विपक्ष के सबसे बड़े दल कांग्रेस को नेता विपक्ष का पद सौंपेंगे या नहीं, क्योंकि 16वीं लोकसभा ने बिना नेता विपक्ष के ही अपना कार्यकाल पूरा किया था।


लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की भूमिका उतनी ही अहम होती है जितनी कि सरकार की, लेकिन पिछली सरकार के दौरान विपक्ष ना सिर्फ दिशाहीन बल्कि अहम मुद्दों पर भी बिखरा हुआ दिखा। जनहित से जुड़े मुद्दों पर भी सरकार को घेरने की बजाय, आरोपों की नकारात्मक राजनीति का खामियाजा विपक्ष भुगत चुका है, ऐसे में पहले से ज्यादा मजबूत सरकार के सामने विपक्ष की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है, लेकिन ताली दोनों हाथों से बजती है इसलिये प्रधानमंत्री मोदी के सामने निढाल पड़े विपक्ष को एक नेता देकर, सर्वमत की सरकार की अपनी कथनी को सही साबित करने का मौका है, ताकि जनता में ये भरोसा रहे कि उसके पास ना सिर्फ मजबूत सरकार के अलावा जनहित से जुड़े मुद्दों की आवाज उठाने वाला विपक्ष भी है।