छत्तीसगढ़ में हार से हमें हैरानी, मोदी जी हमेशा 'विक्टिम' कार्ड खेलने में कामयाब होते हैं
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आ गए. कांग्रेस के हाथ से दो अहम राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान निकल गया, जबकि मध्य प्रदेश की सत्ता में भी बीजेपी की वापसी हुई. हालांकि वे दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना की सत्ता में आने में कामयाब रही. छत्तीसगढ़ में ऐसे समय में हार हुई जब ये तमाम प्री-पोल और एग्जिट पोल में बताया जा रहा था कि वहां की भूपेश बघेल सरकार की वापसी हो रही है. दूसरी तरफ, राजस्थान में गहलोत की लोकप्रिय योजनाओं के दम पर कांग्रेस वापसी का दंभ भर रही थी. ऐसे में इस हार पर कांग्रेस की प्रवक्ता अलका लांबा ने एबीपी डिजिटल के राजेश कुमार के साथ बातचीत की. लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की हार पर आइये जानते हैं कि उनका क्या कुछ कहना है-
सवाल- पांच राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आ गए. आप इसे किस तरह से देखते हैं?
जवाब: पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम देश के सामने आ गए. लेकिन, जो भी परिणाम आए उसमें तेलंगाना में बहुमत के साथ कांग्रेस की बड़ी जीत हुई, लेकिन खासकर दो राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जहां पर हम सत्ता में थे अब हम विपक्ष की भूमिका में आ गए हैं. मैं ये कहना चाहूंगी कि हमलोग चुनाव हारे नहीं हैं बल्कि परिणाम हमारे पक्ष में नहीं रहे. हार तब होती है जब आप मैदान छोड़ देते हैं और पीठ दिखा देते हैं. हम मैदान में बने हुए हैं और विपक्षी धर्म और भूमिका इन तीनों ही राज्यों में निभाएंगे. जहां पर हमारी सत्ता है, वहां पर जो भी हमने वायदे किए या गारंटी दी उसे पूरा करेंगे.
सवाल: अधिकतर एग्जिट पोल में ये दिखाया गया था कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार की वापसी हो रही है, फिर चूंक कहां पर हो गई?
जवाब: बिल्कुल आप सही कह रहे हैं, जितने भी एग्जिट पोल थे, अधिकतर में ये संभावना जताई जा रही थी कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की वापसी हो रही है. हमारा जो इंटरनल सर्वे था, जमीनी हकीकत थी और जिस तरह छत्तीसगढ़ हो या राजस्थान की सरकार, उसके खिलाफ किसी तरह की सत्ता विरोधी लहर नहीं थी. जबकि, मध्य प्रदेश में एंटी इनकंबैन्सी था, लोग वहां पर बदलाव चाह रहे थे. ऐसे में ये परिणाम सभी के लिए, खासतौर से छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश हम सबके लिए बहुत ही चौंकाने वाले रहे हैं. हमारे शीर्ष नेतृत्व जो उन राज्यों में चुनाव लड़वा रहे थे, या बाद में भेजे गए वो दिल्ली नहीं लौटे हैं. जो हमारी जीत-हार हुई है, उस पर कार्यकर्ताओं और विधायकों से पार्टी में बातचीत चल रही है. स्वभाविक तौर पर हार को लेकर मंथन होगा और ये जानने का प्रयास किया जाएगा कि आखिर क्यों इस तरह का फैसला आया है.
सवाल: अभी आगे लोकसभा का चुनाव है, लेकिन उससे पहले पार्टी तीन राज्यों में हार से क्या सबक लेगी?
जवाब: हार हो या जीत हो, हम सबक दोनों से ही लेंगे. तेलंगाना में हम टक्कर में नहीं थे. बीआरएस और बीजेपी आमने-सामने थी. बीजेपी को हमने वहां पर धकेला और सेकेंड पॉजिशन पर आने के बाद पहले नंबर पर आ गए. इससे पहले, हमने कर्नाटक में बीजेपी की डबल इंजन सरकार को बुरी तरह से हराया. पूरा दक्षिण भारत आज बीजेपी मुक्त हो चुका है. अब जो तीन राज्यों में हार हुई है, उस पर जरूर पार्टी के अंदर मंथन किया जाएगा, ये स्वभाविक है.
गहलोत जी ने ये कहा कि अगर वो चुनाव जिसमें उन्हें लग रहा था कि बहुमत मिलना था, अगर नहीं मिलेगा तो उसके कारण है. ईडी का पूरा खेल जो जमीन पर चल रहा था, ईडी का रोल कहें या कन्हैयालाल के मुद्दे को उठाकर साम्प्रदायिक रंग देने की जो कोशिश की गई, ये विक्टिम कार्ड मोदी जी हमेशा खेलने में कामयाब होते हैं. वे कहते हैं कि मैं ओबीसी हूं, लेकिन जब हम जातीय जनगणना कर ओबीसी को उनके अधिकार देने की बात करते हैं तो वे कहते हैं कि ये कोई जाति ही नहीं है, सिर्फ गरीब ही एक जाति है. साम्प्रदायिकता, ईडी का बड़ा रोल... राजस्थान में बीजेपी दो फाड़ दिख रही थी. वसुंधरा राजे नाराज चल रही थीं. लेकिन, वहां भी बीजेपी की वो चीजें कामयाब हुई और बीजेपी के पक्ष में जनादेश गया.
छत्तीसगढ़ में बेवजह महादेव एप को बड़ा मुद्दा बनाया गया. मोदी जी दो दिन पहले ही यूएई गए थे. आरोपी को अपने साथ जहाज में ले ही आते. लेकिन, उन्होंने उसके बारे में कभी चर्चा ही नहीं की. यानी, छत्तीसगढ़ में महादेव एप को मुद्दा बनाकर, ईडी को छत्तीसगढ़ में भेजकर चुनाव जीते हैं. वो मुद्दे अब बीजेपी के लिए रहेंगे.
कन्हैया लाल को बीजेपी न्याय दिलाएगी नहीं, एनआईए के अधीन ये केस चल रहा है. इसके आरोपियों के फांसी पर चढ़ाने की बजाय बीजेपी जमानत दिलाने का काम कर रही है. हो सकता है कि कहीं कन्हैया लाल के साथ हुए अन्याय और हत्या के खिलाफ लोगों तक कांग्रेस सच्चाई लोगों तक ठीक से नहीं पहुंचा पाई. इसलिए बीजेपी का झूठ चला कि वहां पर कि गहलोत सरकार ने न्याय नहीं दिलाया. जबकि, सच्चाई ये है कि न्याय केन्द्र की सरकार को देना था.
सवाल: राजस्थान की बात करें तो वहां पर गहलोत सरकार की स्कीम काफी लोकप्रिय थी. उसके बावजूद अगर वो सरकार वहां पर हारी है तो उसकी वजह क्या देख रहे हैं आप?
जवाब: देखिए, 2018 से पहले हमारे पास 22-23 सीटें थी. लेकिन, हमने वहां से सीधा राजस्थान में बहुमत हासिल किया था. आज हमारे पास राजस्थान में 70 सीटें हैं. इसलिए, ऐसा भी नहीं है कि राजस्थान में कांग्रेस की बहुत करारी हार है. हम विपक्ष की भूमिका में हैं. गहलोत सरकार पांच सौ का एलपीजी दे रही थी. लोगों ने मोदी जी के साढ़े चार सौ रुपये के सिलेंडर पर मुहर लगाई है. अब हम विपक्ष में बैठकर ये सुनिश्चित करेंगे कि 1 दिसंबर 2024 को मोदी जी की गारंटी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बहनों को साढ़े चार सौ रुपये का एलपीजी गैस सिलेंडर मिलता है या नहीं, जो देशभर में 1100 रुपये से ज्यादा का है.
तीन हजार रुपये हम एक तरह से हर बहन के खाते में डालते थे. ऐसे में हम विपक्ष में हैं, हारे नहीं हैं. सत्ता से हमारी भूमिका बदली है. विपक्ष में मजबूत नंबर के साथ जनता ने हमें अवसर दिया है. हम इसे अवसर के तौर पर देख रहे हैं. इस इस लड़ाई को लड़ेंगे.
सवाल: बीजेपी इस बार के चुनाव में इस स्ट्रेटजी पर काम किया कि उसने कहीं भी सीएम फेस को प्रोजेक्ट नहीं किया. आपको लगता है कि बीजेपी का कहीं न कही इस बात का फायदा मिला?
जवाब: चूंकि, बीजेपी के अंदर बहुत फूट थी. इसलिए उनकी यही शूट किया और उन्होंने मोदी जी का नाम, मोदी जी का चेहरा और मोदी जी का गारंटी और ईडी, सत्ता धनबल पर लड़ने का फैसला किया. जबकि, कांग्रेस ने स्थानीय चेहरों को आगे बढ़ाया था. तो वहीं बीजेपी ने स्थानीय चेहरे वो चाहे रमन सिंह हो, वसुंधरा राजे हो या फिर शिवराज चौहान हो, उन्हें खत्म करने का काम किया.
बीजेपी इस बार का चुनाव मोदी और शाह जी के नाम पर चुनाव लड़ा है. ऐसे में पार्टी का भविष्य कितना दूर तक जाता है, ये देखने की बात होगी. मोदी-शाह जी के नाम पर बीजेपी नगर निगम का चुनाव लड़ेगी, राज्य का चुनाव भी लडे़गी और दिल्ली की सत्ता भी अपने पास रखेगी. अटल जी के समय ऐसा नहीं होता था. लेकिन मोदी जी किसकी देन है? अटल और आडवाणी जी की देन है. एक नई पीढ़ी उन्होंने शुरू कई और पुरानी पीढ़ी को खत्म करने का काम किया है. लोकतंत्र तो बीजेपी में है ही नहीं. राष्ट्रीय अध्यक्ष बीजेपी में नागपुर से तय होते हैं.
जबकि, कांग्रेस में लोकतंत्र है और राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चुनाव होता है. हमारे जैसे लोग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अपना एक वोट से पांच साल के लिए चुनते हैं. हमने भी गहलोत जी के नेतृत्व और भूपेश बघेल जी के नेतृत्व में अपने कामों को आगे रखा. हम पूरा संगठित होकर आगे चुनाव लड़ेंगे.