भारत आने वाले समय में विश्व गुरु बनेगा..ये एक ऐसा विमर्श है, जो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही सुर्खियों में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही बीजेपी के तमाम बड़े नेता इस बात को सार्वजनिक मंचों से लगातार कहते आए हैं. इनके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत और उससे जुड़े लोग भी इस बात को दोहराते रहते हैं.
अभी 9 अप्रैल को ही मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान मोहन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने फिर से दोहराया कि 20 से 30 साल के बाद भारत विश्व गुरु होगा. आरएसएस प्रमुख ने इसके लिए बताया कि आने वाली दो-तीन पीढ़ियों को इस तरह से तैयार करना होगा, जो सजग होकर काम करे. उन्होंने विश्व गुरु बनने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कुछ आयामों का भी जिक्र किया. इनमें संघर्ष, जागरण के लिए सक्रियता, दुनिया के बाकी देशों के साथ संबंध बनाने के तरीके शामिल हैं. इसके साथ ही मोहन भागवत ने ये भी कहा कि छल-कपट फैलाने वाले आसुरी शक्तियों को उत्तर देना भी जरूरी है.
2019 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है. आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर 15 अगस्त 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से इस बात की घोषणा की थी कि ये 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बना देना है. उन्होंने अगले 25 साल को देश के लिए अमृत काल बताया था. इस ऐलान के बाद चाहे बीजेपी के नेता हो या फिर आरएसएस के लोग, सभी बड़े ही जोर-शोर से भारत के विश्व गुरु बनने की बात को जनता के बीच रखते रहे हैं.
दरअसल विश्व गुरु की बात को जोर-शोर से उठाकर नए नैरेटिव को स्थापित किया जा रहा है. ये एक तरह से नया राजनीतिक और सामाजिक विमर्श बनाने की कोशिश है. जब मोहन भागवत कहते हैं कि छल कपट फैलाने वाले लोगों को उत्तर देना जरूरी है, तो ये सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि हर तरह के प्रोपेगैंडा पर रोक लगे. चाहे उस प्रोपगैंडा को फैलाने वाले शख्स का संबंध किसी भी धर्म से हो. लेकिन मौजूदा हालात में इस तरह का माहौल बनाने की कोशिश सरकार की ओर से की जा रही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है.
सिर्फ भाषणों में या बयानों में विश्व गुरु बनने की बात से कोई भी देश वैसा नहीं बन जाता. विश्व गुरु बनने के लिए जरूरी है कि पहले हम अपने देश के हर नागरिक को वो माहौल दें, जिनसे उनका सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो सके.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या फिर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत..उनके विश्व गुरु की अवधारणा में देश के हर नागरिक, हर धर्म और हर समुदाय को समान मानने की बात जरूर शामिल होनी चाहिए. ये सिर्फ कागजी नहीं होना चाहिए, बल्कि कार्यों के साथ ही बिना भेदभाव के कार्यवाही में भी दिखनी चाहिए.
जब आजादी के 75 साल बाद भी बड़े-बड़े मंचों से सरकार के प्रतिनिधि इस बात को गर्व के साथ कहते हैं कि सरकार देश की 80 करोड़ जनता को हर महीने 5 किलो फ्री राशन दे रही है, तो विश्व गुरु बनने के लिए इस दिखावे और प्रोपेगेंडा को खत्म करना होगा. ये गर्व या दंभ की बात नहीं है, बल्कि शर्म की बात है कि अभी भी हमें इतनी बड़ी आबादी को जीवन यापन के लिए फ्री राशन देना पड़ रहा है और हम उसका भी जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं.
विश्व गुरु सिर्फ कहने से नहीं बन जाएंगे, जब तक देश में सौहार्द और भाईचारे का माहौल नहीं होगा, तब तक विश्व गुरु का विमर्श बेमानी है या सिर्फ राजनीतिक एजेंडा ही रहेगा. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और नफरत भरे माहौल को बनाने में सरकारी स्तर और सत्ता से जुड़े लोगों या संगठनों की भूमिका को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा, तभी हम विश्व गुरु की राह पर आगे बढ़ पाएंगे.
चाहे विश्व गुरु की बात हो या फिर विकसित राष्ट्र बनने की ..सबसे ज्यादा जरूरी है देश के हर लोगों तक बेहतर शिक्षा और उम्दा चिकित्सा सुविधा पहुंचे. इसकी शुरुआत तभी हो सकती है, जब इसके लिए हर नागरिक तक गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा और प्राथमिक हेल्थ फैसिलिटी मिलने लग जाए.
विश्व गुरु बोलने से नहीं बनते हैं, विश्व गुरु भारत को कौन बनाएगा..सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये हैं और इसका जवाब है यहां के नागरिक बनाएंगे. तो फिर इसके लिए नागरिकों को सक्षम बनाने की जरूरत है, तार्किक बनाने की जरूरत है. यहां पर नागरिक कहने से मतलब हर एक नागरिक है. अगर हम मानते हैं कि फिलहाल देश की आबादी 135 करोड़ या 140 करोड़ के बीच है तो, हर एक नागरिक की अहमियत उस विश्व गुरु की संकल्पना में होनी चाहिए.
ये सच है कि आर्थिक मोर्चे पर या जीडीपी बढ़ने के मोर्चे पर भारत ने पिछले 9 साल में तेजी से छलांग लगाई है. हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गए हैं. ये भी तय है कि भारत 2023 में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखेगा. भारत 2023 में 3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा और यूनाइटेड किंगडम पर अपनी बढ़त बनाए रखेगा.
लेकिन वास्तविक मायने में हम विकसित भारत तो तभी बनेंगे या फिर आर्थिक तौर से विश्व गुरु भी तभी कहलाएंगे, जब Per Capita Income या प्रति व्यक्ति आय के मोर्चे पर भी दुनिया की अगुवाई करें. हम भले ही जीडीपी के मामले में पांचवीं अर्थव्यवस्था हैं, लेकिन पर कैपिटा इनकम के मामले में हम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक दुनिया के 197 देशों की रैंकिंग में 142वें पायदान पर हैं. दरअसल विश्व गुरु हम तभी बन सकते हैं, जब हम इस रैंकिंग को भी टॉप फाइव के भीतर पहुंचा दें. विश्व गुरु की अवधारणा में इस बात को शामिल करने की जरूरत है.
सिर्फ भावनात्मक मुद्दा बनाकर राजनीतिक फायदे के लिए विश्व गुरु को लेकर बार-बार बयान देना सही नहीं है. इसके लिए हर नागरिक तक राजनीतिक और सामाजिक के साथ ही आर्थिक समानता के संकल्प को पूरा करने की जरूरत है, जिसमें नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत को वास्तविकता के धरातल पर उतारा जा सके.
राष्ट्र तभी मजबूत बनता है या फिर विकसित होता है, जब उसमें हर नागरिक के विकास को सुनिश्चित किया जा सके. सिर्फ साक्षरता दर बढ़ाने के लिए शिक्षा नहीं हो, बल्कि तार्किक इंसान बनने के लिए शिक्षा हो, ऐसी शिक्षा प्रणाली के जरिए ही हम आने वाले वक्त में विश्व गुरु बन सकते हैं. विश्व गुरु बनने के लिए राजनीतिक व्यवस्था में सहमति और असहमति की जगह हो, इस सोच वाली पीढ़ी को बनाने की जरूरत है.असली राष्ट्रवाद भी वहीं है जिसमें हर नागरिक के चेहरे पर मुस्कान हो.
अभी विश्व गुरु की बातें सिर्फ सत्ताधारी पार्टी के नेताओं या फिर सत्ताधारी पार्टी से जुड़े संगठनों से सुनने को मिल रही है. लेकिन ये अनुभव देश के लोगों को होना चाहिए कि उनके पास वो सारी सुविधाएं और परिस्थितियां उपलब्ध होने लगी हैं, जिससे भविष्य में वे देश को विश्व गुरु बनाने में अपना योगदान दे सकेंगे. सिर्फ विश्व गुरु का माहौल बनाने से हम उस दर्जा को हासिल नहीं कर पाएंगे.
इसलिए ये बहुत जरूरी है कि विश्व गुरु की संकल्पना मात्र एक राजनीतिक विमर्श बनकर नहीं रह जाए, बल्कि इसे देश के नागरिकों से भी जोड़ा जाना चाहिए. तभी हम आने वाले 25 साल में सही मायने में विकसित राष्ट्र बन पाएंगे और खुद की बजाय दुनिया कहेगी कि भारत विश्व गुरु है.
(ये निजी विचारों पर आधारित आर्टिकल है)