भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये अमेरिका का पहला राजकीय दौरा बेहद ऐतिहासिक महत्व का होने जा रहा है. इसका रणनीतिक महत्व भी बहुत ही ज्यादा है. इस यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच जो सामरिक साझेदारी है, उसको पहले से ही कंप्रिहेंसिव ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप का दर्जा प्राप्त है. दोनों देश सभी महत्वपूर्ण विषयों पर सहयोग करते हैं.
साझेदारी और अधिक ऊंचे स्तर पर जाएगी
इस दौरे के बाद दोनों देशों के बीच साझेदारी और अधिक ऊंचे स्तर पर जाएगी. भारत-अमेरिका संबंधों के बारे में मैं एक और बेसिक बात कहना चाहता हूं कि दोनों देशों के बीच जो रणनीतिक साझेदारी है, वो हमारे साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, साझा हितों, साझा अवसरों और साझा चुनौतियों पर आधारित है. भारत और अमेरिका विश्व के सबसे बड़े दो लोकतांत्रिक देश हैं. दोनों के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों बनी हुई संबंधों की नींव इतनी गहरी है कि इसके आधार पर साझेदारी बढ़ेगी और इसका भविष्य बहुत उज्ज्वल है.
जहां तक साझा हितों की बात है,रक्षा, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, कृष, स्पेस और साइंस टेक्नोलॉजी ..सभी महत्वपूर्ण सेक्टर में दोनों देश गहरे तरीके से सहयोग कर रहे हैं. एक बात और भी जिक्र करना चाहूंगा कि शीत युद्ध के समय जब भारत और अमेरिका के संबंध उतने अच्छे नहीं हुआ करते थे, उस दौरान भी साझा मूल्यों की वजह से भारत में आईआईटी की स्थापना में अमेरिका के एमआईटी जैसी संस्था का सहयोग मिला था. भारत में जो हरित क्रांति हुई थी, उसमें भी नॉर्मन बोरलॉग जैसे अमेरिकी वैज्ञानिक से बहुत मदद मिली थी.
पिछले 20 वर्षों में आपसी संबंध मजबूत हुए
भारत और अमेरिका के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों का आधार इतना गहरा है कि शीत युद्ध के समय तनाव के बावजूद भी अलग-अलग मुद्दों पर सहयोग होते रहा था. जब शीत युद्ध समाप्त हुआ और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की जब भारत यात्रा हुई, तो उसके बाद से तो ये संबंध तेजी से बदलने लगे. पिछले 20 वर्षों में आपसी संबंध पूरी तरीके से बदल चुके हैं. ये बेहद मजबूत हो चुका है.
चीन दोनों देशों के लिए साझा चुनौती
दोनों देश द्विपक्षीय मसलों पर सहयोग बढ़ा ही रहे हैं. साथ ही साथ एक बड़ा विषय है कि इंडो-पैसिपिक रीजन में लोकतांत्रिक आधार पर नियम आधारित व्यवस्था कैसे बनाकर रखा जाए. चीन इस क्षेत्र में लगातार खतरे पैदा कर रहा है. पूरे इंडो-पैसिपिक रीजन में चीन दबदबा बनाना चाहता है. इस रीजन में नियम आधारित व्यवस्था कैसे बनाकर रखा जाए, ये भारत और अमेरिका दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती है. चीन की चुनौती भारत और अमेरिका की साझा चुनौती है.
इसके अलावा भारत और अमेरिका आतंकवाद के मुद्दे पर, वातावरण को संरक्षित रखने के विषय पर, ग्लोबल कॉमर्स को सुरक्षित रखने के विषय पर, हाइड्रो सिक्योरिटी से जुड़ी चुनौतियों के विषय पर भी गहरे तरीके से सहयोग आगे बढ़ाएंगे.
इंडो-पैसिफिक रीजन में साझा हित
हम देखेंगे कि जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका के कांग्रेस के संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे, जब वे वाशिंगटन डीसी में भारतीय समुदाय को संबोधित करेंगे, भारत के प्रधानमंत्री के जो विचार हैं कि दोनों देशों के संबंधों को कैसे बढ़ाया जाए, इंडो-पैसिफिक रीजन में नियम आधारित व्यवस्था को कैसे मजबूत बनाया जाए और अनेक जो महत्वपूर्ण वैश्विक विषय हैं, उन पर दोनों देश कैसे सहयोग करेंगे, उस विजन को पीएम नरेंद्र मोदी साझा करने जा रहे हैं.
आज भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी इतनी मजबूत हो गई है कि दोनों देश इस पर भी विचार कर रहे हैं कि दुनिया में कैसी व्यवस्था होनी चाहिए, इसके लिए साझा विजन बनाया जाए. दुनिया में शांति, संपन्नता, स्थिरता की व्यवस्था स्थापित करने के लिए भारत और अमेरिका एक क्लियर विजन पर भी बात करेंगे.
रक्षा समझौतों से बढ़ेगा सहयोग
इस यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका अनेक महत्वपूर्ण रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं. अभी हमने देखा था कि हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हों, अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन हों, अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन हों, हमारे विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा हों, एक-दूसरे देशों की यात्रा की. इन सबके जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के लिए ग्राउंड वर्क तैयार कर लिया गया है. विजिट के दौरान का जो आउटकम है, उस पर सहमति बन चुकी है. आने वाले समय में प्रतिनिधिमंडल स्तर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच वार्ता के बाद इन सभी समझौतों पर हस्ताक्षर हो जाएंगे.
इन समझौतों के तहत अब GE-414 सैन्य जेट इंजन का भारत में निर्माण किया जाएगा. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) का करार होगा. ये हमारे लड़ाकू विमान तेजस के लिए आधार स्तंभ का काम करेगा. इससे तेजस की लड़ाकू क्षमता विश्व स्तरीय हो जाएगी. इसमें कोई दो राय नहीं है.
साथ ही साथ MQ-9 रीपर ड्रोन को लेकर जो डील है, वो भी एक महत्वपूर्ण डील है. हम सब जानते हैं कि आज वारफेयर ड्रोन का कितना महत्व बढ़ गया है. MQ-9 रीपर ड्रोन एक कॉम्बैट ड्रोन है. अमेरिका ने जितने भी एंटी टेरर ऑपरेशन किए हैं, उनमें इस ड्रोन का इस्तेमाल बखूबी किया गया है. अल कायदा प्रमुख अयमान अल जवाहिरी को काबुल में मार गिराने में इस ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था.
एडवांस्ड टेक्नोलॉजी साझा करेगा अमेरिका
अब अमेरिका, भारत को एडवांस्ड वेपन सिस्टम देगा और न सिर्फ वेपन सिस्टम देगा, बल्कि टेक्नोलॉजी भी ट्रांसफर करेगा. इससे पता चलता है कि दोनों देशों के बीच विश्वास का फैक्टर गहरा हो रहा है. भारत और अमेरिका के संबंधों के जो आलोचक रहे हैं, वे कई बार कहते रहे हैं कि अमेरिका के ऊपर कितना भरोसा किया जाए या कितना भरोसा न किया जाए. इस तरह के प्रश्न को वे अक्सर उठाया करते थे. अब जिस तरीके से अमेरिका अपनी एडवांस्ड टेक्नोलॉजी को भारत के साथ साझा करने जा रहा है, ये इस बात को जताता है कि भारत और अमेरिका के बीच में विश्वास बढ़ता जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से आपसी संबंध उच्चतर स्तर तक पहुंचेगी. संबंधों में विस्तार की संभावना काफी है. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा कहा करते थे कि भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी 21वीं सदी को परिभाषित करने वाली महत्वपूर्ण साझेदारियों में से एक है. भारत-अमेरिका की साझेदारी दोनों देशों के लिए तो महत्वपूर्ण है, साथ ही पूरे विश्व के लिए भी महत्वपूर्ण होने जा रही है.
भारत पूरे विश्व में चाहता है शांति
अमेरिकी दौरे से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान बहुत ही सकारात्मक और विवेकपूर्ण बयान है. ये प्रधानमंत्री मोदी के विजन को भी दर्शाता है कि भारत एक ऐसा राष्ट्र हो, जो पूरे विश्व में शांति, सुरक्षा, स्थिरता और संपन्नता देखना चाहता है. हम अभी जी20 के अध्यक्ष भी हैं. जी20 के लोगो देखें, तो उसमें भारत वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करता है. 'वन फैमिली, वन अर्थ, वन फ्यूचर' की हम बात करते हैं. भारत जी20 के सभी राष्ट्रों के साथ संपर्क में है. हम इन देशों के साथ जो संपर्क कर रहे हैं, वो प्रो एक्टिव इंगेजमेंट है. ऐसा नहीं है कि भारत ने किसी पक्ष को सही बताया या किसी पक्ष को ग़लत बताया है.
भारत शुरू से ही संवाद का रहा है पक्षधर
यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में देखें तो भारत शुरू से ही संवाद का पक्षधर रहा है. किसी एक पक्ष को सही या ग़लत न बताते हुए भारत ने हमेशा ही संवाद की बात कही है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर जो भी प्रस्ताव आए हैं तो भारत ने जब-जब उस प्रस्ताव से खुद को दूर रखा है, समय-समय पर एक्सप्लेनेटरी नोट्स भी जारी किया है. उसमें भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यूक्रेन संकट का समाधान सिर्फ़ और सिर्फ़ संवाद से ही निकल सकता है.
सामने से तो ये लगता है कि ये रूस और यूक्रेन के बीच लड़ी जा रही है लड़ाई है, लेकिन परोक्ष रूप से ये महाशक्तियों के बीच लड़ी जा रही वर्चस्व की लड़ाई है. रूस ने यूक्रेन के ऊपर जो हमला किया वो NATO के विस्तार को आधार बनाकर किया. यूक्रेन चूंकि NATO में शामिल होना चाहता है और हम उसे शामिल नहीं होने देंगे, ये कहकर रूस ने युद्ध छेड़ा. नैटो ने उसे इस तरीके से लिया कि रूस उसके वर्चस्व को चैलेंज कर रहा है. रूस के इस हमले का जवाब अमेरिका और नैटो ने यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक मदद देते हुए परोक्ष रूप से दिया है.
सच्चाई यही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध महाशक्तियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई है और भारत का यही कहना है कि युद्ध से कोई नतीजा नहीं निकल सकता है. इसका समाधान बातचीत से ही संभव है. भारत का विचार बहुत ही बुद्धिमत्तापूर्ण है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]