भारत और फ्रांस के बीच की दोस्ती दिन प्रतिदिन और भी मजबूत होते जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 13-14 जुलाई को होने वाली दो दिवसीय फ्रांस यात्रा से संबंधों में और भी प्रगाढ़ता आएगी. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पीएम मोदी को फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस समारोह में विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है.
भारत-फ्रांस के बीच मजबूत होती दोस्ती
बैस्टिल डे परेड के नाम से मशहूर इस समारोह में भारत और फ्रांस की बढ़ती दोस्ती की झलक पूरी दुनिया देखेगी, जब परेड में फ्रांस की सेना के साथ भारतीय सेना के तीनों अंगों की एक टुकड़ी कदमताल करते हुए नज़र आएगी. इसके साथ ही समारोह में भारतीय वायुसेना के तीन विमान फ्लाईपास्ट भी करेंगे. फ्रांस पीएम मोदी के सम्मान में राजकीय भोज का भी आयोजन कर रहा है. इसके अलावा फ्रांस के राष्ट्रपति के इमैनुएल मैक्रों पीएम मोदी के लिए निजी रात्रिभोज की भी मेजबानी करेंगे. इससे पहले 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को फ्रांस ने अपने राष्ट्रीय दिवस समारोह में विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था.
भारत को क्यों इतनी तवज्जो दे रहा है फ्रांस?
ऐसे तो भारत और फ्रांस के बीच पिछले 25 साल से रणनीतिक साझेदारी है, लेकिन हाल-फिलहाल में फ्रांस जिस तरह से भारत को तवज्जो दे रहा है, उसके पीछे कई कारण हैं. इनमें भारत की बड़ी होती अर्थव्यवस्था से बनता बड़ा बाजार सबसे प्रमुख कारण है. इसके साथ ही बदलती वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था में भारत को लेकर दुनिया के तमाम देशों का जो नजरिया बन रहा है, उससे भी फ्रांस, भारत के साथ अपनी दोस्ती मजबूत करना चाहता है.
इतना महत्व देने के पीछे दो प्रमुख कारण
इन सबके अलावा दो प्रमुख वजह और हैं. पहला रक्षा क्षेत्र में भारत, फ्रांस के लिए बहुत बड़ा बाजार है. दूसरा जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत है, उसके मुताबिक फ्रांस के साथ व्यापारिक संबंधों का विस्तार नहीं हो पाया है. ये दो ऐसे पहलू हैं, जो फ्रांस को भविष्य में काफी फायदा पहुंचा सकते हैं.
ढाई दशक से है रणनीतिक साझेदारी
ऐसा नहीं है कि भारत और फ्रांस के बीच की दोस्ती रातों-रात प्रगाढ़ हो गई है. इसके लिए पिछले ढाई दशक से दोनों देशों की ओर से कूटनीतिक प्रयास किए गए हैं. जनवरी 1998 में दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलने का फैसला किया. उसके बाद से फ्रांस ने हमेशा ही एक मजबूत दोस्त की तरह भारत और बदलते वक्त में भारतीय जरूरतों का भरपूर ख्याल रखा.
जरूरत पर हमेशा साथ देते आया है फ्रांस
जब हमने मई 1998 में परमाणु परीक्षण किया था, तो अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों ने इसकी निंदा करते हुए भारत पर अलग-अलग प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके बावजूद फ्रांस मजबूती से भारत के साथ खड़ा था. फ्रांस प्रतिबंध लगाने वाले गुट का हिस्सा भी नहीं बना. वो एक कदम और आगे बढ़ते हुए भारत के उन प्रयासों का भी समर्थन किया, जिससे जरिए प्रतिबंधों को जल्द से जल्द हटाने की कोशिशों में जुटे थे. ऐसे मुश्किल वक्त में भी फ्रांस ने भारत को हथियारों का निर्यात करने से इनकार नहीं किया.
हथियारों के निर्यात के लिहाज से भारत महत्वपूर्ण
फ्रांस से भारत को मिल रही तवज्जो का एक बड़ा कारण भी हथियारों का निर्यात है. रक्षा सहयोग के तहत आने वाले इस मसले पर फ्रांस के लिए भारत ऐसे तो पिछले कुछ सालों से बड़ा साझेदार है. फ्रांस से हमें लड़ाकू विमान से लेकर पनडुब्बी तक मिल रहा है. दुनिया में रक्षा क्षेत्र से जुड़े बाजार की जो स्थिति में उसमें भारत और फ्रांस दो अलग-अलग ध्रुवों पर खड़े हैं. आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाए गए तमाम कदमों के बावजूद अभी भी भारत दुनिया का सबसे बड़े हथियार आयातक देश है. इसके विपरीत फ्रांस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है.
दुनिया में रक्षा उत्पादों का बड़ा बाजार
हम जानते हैं कि दुनिया में हथियारों समेत रक्षा उत्पादों का बहुत बड़ा बाजार है. 2018-2022 के बीच दुनिया के तमाम देशों की ओर से हथियारों की खरीद पर खर्च की गई राशि को मिला दें तो ये एक अनुमान के मुताबिक 112 बिलियन डॉलर होता है. दुनिया के जो टॉप 5 हथियार निर्यातक देश हैं.. वे अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी हैं. वैश्विक हथियार व्यापार में इन 5 देशों की हिस्सेदारी तीन चौथाई से ज्यादा है. ये पांचों देश मिलकर सालाना 85 बिलियन डॉलर मूल्य के हथियार बेचते हैं.
भारत है सबसे बड़ा हथियार आयातक देश
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के मुताबिक भारत 2018 से 2022 के बीच दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक था. . इस अवधि में भारत के हथियारों का आयात दुनिया के कुल आयात का करीब 11% प्रतिशत था.
भारत को हथियार सप्लाई में दूसरे नंबर पर फ्रांस
भारत सबसे ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है. रूस के बाद फ्रांस ही वो देश है जिससे भारत सबसे ज्यादा रक्षा उत्पाद खरीदता है. SIPRI के मुताबिक भारत के हथियार आयात में रूस की हिस्सेदारी 45% है, वहीं फ्रांस की हिस्सेदारी 29% और अमेरिका की 11% है. पहले इस मामले में अमेरिका दूसरे नंबर था. लेकिन 2018 से 2022 के दौरान फ्रांस ने इस मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया. फ्रांस से भारत को हथियार आयात में 2013-17 के मुकाबले 2018-22 के बीच 489% का इजाफा हुआ. इस वजह से 2018-22 की अवधि में फ्रांस, अमेरिका को पीछे छोड़कर भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बन गया.
फ्रांस की भारत के रक्षा बाजार पर नज़र
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में पिछले कुछ सालों में भारत ने दूरगामी प्रभाव वाले कदम उठाए हैं, जिसकी बदौलत हमारे रक्षा आयात में कुछ कमी जरूर आई है. इसके बावजूद भी ये सच्चाई है कि रक्षा जरूरतों को पूरा करने में बाहरी मुल्कों पर निर्भरता को पूरी तरह से खत्म करने में भारत को अभी लंबा सफर तय करना पड़ेगा. भारत के इस रक्षा बाजार पर अमेरिका के साथ ही फ्रांस की भी नजर है. रूस के साथ चीन की बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए फ्रांस को ये एहसास है कि भारत इस दिशा में नए विकल्प पर जरूर सोच रहा होगा और नए विकल्प के तौर पर फ्रांस से बेहतर कोई और देश नहीं हो सकता है, जो रक्षा सहयोग तो करता ही है, साथ ही तकनीक में भी सहयोग कर रहा है. अब अगर भारत, रूस से हथियारों की खरीद कम करता है तो अमेरिका और फ्रांस दोनों चाहेंगे कि कि वो इस जगह को भर पाए.
फ्रांस से भारत खरीदेगा राफेल एम लड़ाकू विमान
भारत को नौसेना के लिए लड़ाकू विमानों की जरूरत है, जिसे वो स्वेदश में बने पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर तैनात कर सके. इसके जरिए विमानवाहक पोतों से मिग 29 कैटेगरी के लड़ाकू विमानों को रिप्लेस किया जाना है. इस दिशा में फ्रांस के राफेल एम लड़ाकू विमान की खरीद को लेकर जरूरी दस्तावेजी प्रक्रिया को पूरा किया जा रहा है. उम्मीद है कि पीएम मोदी के फ्रांस दौरे पर ऐसे 26 राफेल एम लड़ाकू विमान से जुड़ी डील का एलान किया जाए. इसके साथ तीन स्कॉर्पीन श्रेणी के पनडुब्बियों को लेकर भी ऐलान हो सकता है. इन सौदों की लागत 90 हजार करोड़ रुपये होने का अंदाजा है. फ्रांस की नजर एयरबस कंपनी के NH90 हेलिकॉप्टर को भी भारतीय नौसेना के लिए बेचने पर है.
हम जानते हैं कि प्रोजेक्ट 75 के तहत छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों को भारत में ही बनाए जाने में फ्रांस का सहयोग मिला है. ये पनडुब्बी है..आईएनएस कलवरी आईएनएस खंडेरी, आईएनएस करंज, आईएनएस वेला, आईएनएस वगीर और आईएनएस वागशीर. इनमें से पहले 5 पनडुब्बियों को नौसेना में शामिल किया जा चुका है और आखिरी पनडुब्बी वागशीर के भी 2024 की शुरुआत में नौसेना के बेड़े में शामिल होने की संभावना है.
रक्षा सहयोग को लेकर समझौते पर नज़र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान सबकी नज़र इस पर भी है कि दोनों मुल्कों के बीच रक्षा सहयोग को लेकर कोई बड़ा करार हो सकता है. इस सहयोग के तहत फ्रांस से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का पहलू भी शामिल रहने की उम्मीद है.
न्यूक्लियर पावर के क्षेत्र साझेदारी
फ्रांस न्यूक्लियर पावर के क्षेत्र में भी भारत के साथ साझेदारी बढ़ाना चाहता है. भारत और फ्रांस के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के विकास पर 2008 में समझौता हुआ था. महाराष्ट्र के जैतापुर में 6 न्यूक्लियर पावर रिएक्टर बनाने की योजना में फ्रांस सहयोग करने का इच्छुक है. फ्रांस चाहेगा कि जैतापुर न्यूक्लियर पावर स्टेशन के लिए फ्रांसीसी ईपीआर न्यूक्लियर रिएक्टर भारत खरीदे. पीएम मोदी की यात्रा पर इस प्रोजेक्ट से संबंधित तकनीकी, वित्तीय और असैन्य परमाणु दायित्व के मुद्दों पर भी बातचीत होने की संभावना है.
व्यापारिक संबंध उतने मजबूत नहीं
भारत और फ्रांस के बीच जिस तरह की रणनीतिक साझेदारी पिछले ढाई दशक से है, जिस तरह का रक्षा सहयोग देखा जा रहा, उस लिहाज से दोनों के व्यापारिक रिश्ते को वो ऊंचाई अभी तक नहीं मिल पाई है. आने वाले कुछ महीनों में भारत का यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर सहमति बन सकती है. फ्रांस इस नजरिए से भी चाहता है कि उसका भारत के साथ रक्षा सहयोग की तरह ही बाकी कारोबारी रिश्तों को नई ऊंचाई मिले.
यूरोप में भारत का है छोटा व्यापारिक साझेदार
जहां भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वहीं फ्रांस दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम के बाद फ्रांस यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. यूरोप में जर्मनी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इस मोर्चे पर फ्रांस की स्थिति ब्रिटेन, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड और इटली जैसे देशों से भी नीचे हैं.
भारत का 2021-22 में जर्मनी के साथ द्विपक्षीय व्यापार करीब 25 अरब डॉलर का था. वहीं फ्रांस के साथ 2021 में द्विपक्षीय व्यापार महज़ करीब 13 अरब डॉलर तक ही पहुंचा था. यानी जर्मनी का भारत से व्यापार फ्रांस से करीब दोगुना है.
पिछले 10 साल में व्यापार में तेजी से वृद्धि नहीं
2012 से 2021 के बीच के 10 सालों में भारत और फ्रांस के बीच व्यापार में सिर्फ 4.6 अरब यूरो का इजाफा हुआ है. फ्रांस के साथ व्यापार में बैलेंस ऑफ ट्रेड भारत के पक्ष में है. यानी हम फ्रांस को निर्यात ज्यादा करते हैं और वहां से आयात निर्यात की तुलना में कम करते हैं. इस द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़ों में रक्षा उपकरणों को शामिल नहीं किया गया है. ये आंकड़े बताते हैं कि यूरोप में फ्रांस, भारत का काफी छोटा व्यापारिक साझेदार है.
भारत के बड़े बाजार पर फ्रांस की नज़र
अमेरिका और चीन भारत के दो सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं. चीन के साथ खराब होते रिश्तों की वजह से भारत को आयात के मामले में चीन पर निर्भरता को कम करने की जरूरत है. भारत इसके लिए विकल्पों पर काम भी कर रहा है और फ्रांस की नज़र इन बदलते हालातों पर है.
हालांकि दोनों देशों के बीच कृषि से जुड़े मसले, बाजार में पहुंच और पेटेंट्स को लेकर विश्व व्यापार संगठन में एत तरह की सोच नहीं है. फ्रांस के राष्ट्रपति भारत के साथ इन मुद्दों को भी सुलझाना चाहते हैं ताकि व्यापारिक संबंधों को मजबूती मिले और भारत के बड़े बाजार का लाभ फ्रांस उठा सके.
आपसी सहयोग के हैं व्यापक आयाम
बहुपक्षीय मुद्दों के तौर पर इंडो पैसिफिक रीजन में साझा हित, जलवायु परिवर्तन के साथ ही सौर ऊर्जा के तकनीक के प्रसार में सहयोग जैसे मसले हैं, जिन पर फ्रांस, भारत के साथ साझेदारी को मजबूत करने को उत्सुक है.
2015 में भारत और फ्रांस की पहल से ही अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन से जुड़ी परियोजना की शुरुआत हुई थी. इस गठबंधन से गरीब देशों में सोलर ऊर्जा तकनीक के प्रसार में काफी मदद मिल रही है और इससे आर्थिक तौर से कमजोर देशों के अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद मिल रही है.
इंडो पैसिफिक रीजन में दोनों के ही साझा हित हैं. भारत की स्थिति इस रीजन में काफी मजबूत है. दोनों ही देशों के लिए इस रीजन में चीन का बढ़ता आक्रामक रुख चिंता की वजह है. इस मसले पर भारत और फ्रांस के बीच सहयोग को लेकर फ्रांस के राष्ट्रपति पीएम मोदी से वार्ता कर सकते हैं. इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे प्रभावों को कम करने के तरीकों पर भी फ्रांस की नज़र भारत की ओर है.
रक्षा बाजार के साथ भारत के बाकी बाजारों को लेकर भी फ्रांस की दिलचस्पी बढ़ रही है. भारत के साथ दोस्ती को और प्रगाढ़ करने की फ्रांस की मंशा के पीछे बाकी कारणों के साथ ही ये दो वजह भी काफी महत्वपूर्ण हैं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]