पीएम मोदी के तरकश से निकले तीर क्या विपक्ष को कर देंगे मुद्दा विहीन?
देश की सबसे समृद्ध कहलाने वाली बृहन्मुंबई नगर निगम BMC के जल्द चुनाव होने वाले हैं, जहां बीते कई सालों से उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिव सेना का कब्ज़ा है. बीजेपी अब उसे बेदखल करने की तैयारी में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई में दाऊदी बोहरा समाज के एक कार्यक्रम में इस समुदाय के साथ अपने रिश्तों का जिस आत्मीयता के साथ बखान किया है, उससे साफ हो गया है इस चुनाव में बीजेपी ने "बोहरा कार्ड" खेलकर मास्टरस्ट्रोक लगाने की रणनीति बनाई है. समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरू सैय्यदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन के साथ मंच साझा करके मोदी ने बड़ा सियासी संदेश भी दे दिया है.
चूंकि मुंबई के कई वार्डों में बोहरा समुदाय की ठीकठाक आबादी है और उनका एकमुश्त वोट बाजी पलट सकता है लिहाज़ा,.मोदी के इस भाषण का असर सिर्फ मुंबई में ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में होना भी लाजिमी है, जहां बोहरा समुदाय की खासी आबादी है और वहां साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. लिहाज़ा, सवाल उठता है कि मोदी के तरकश से निकले तीर क्या विपक्ष को मुद्दा विहीन कर देंगे? वैसे मुसलमानों में बोहरा समुदाय को आर्थिक तौर पर सबसे प्रभावी माना जाता है जिनकी अधिकांश आबादी महाराष्ट्र, गुजरात व मध्यप्रदेश में ही बसी हुई है, लेकिन महज 20 लाख की आबादी वाला ये समुदाय मोदी के एजेंडे पर तबसे ही है, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे. इस कारण वे इस समुदाय की खुलकर तारीफ करने में कोई कंजूसी नहीं बरतते लेकिन शुक्रवार को मुंबई में अल्जमीया-तुस-सैफियाह अरबी अकादमी परिसर का उद्घाटन करने के मौके पर पीएम मोदी ने जिस आत्मीयता व गर्मजोशी के साथ अपने रिश्तों का जिक्र किया है, उसके गहरे सियासी मायने भी हैं. ये सिर्फ़ मुंबई नगरपालिका चुनाव तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी इसमें बड़ा संदेश है.
मोदी ने कहा कि मैं आपके परिवार का सदस्य हूं. मेरी एक शिकायत है कि आपने बार-बार माननीय प्रधानमंत्री कहा है, मैं आपके परिवार का सदस्य हूं, न मैं मुख्यमंत्री हूं न प्रधानमंत्री हूं. मैं चार पीढ़ियों से बोहरा समाज से जुड़ा हुआ हूं. इस समुदाय से अपने गहरे रिश्ते का जिक्र करते हुए मोदी ने ये भी कहा कि दाऊदी बोहरा समुदाय से मेरा नाता पुराना ही नहीं बल्कि किसी से छिपा भी नहीं है. अलजामिया-तुस-सैफियाह परिसर का दौरा करना मेरे अपने परिवार का दौरा करने जैसा है. यह मेरा परिवार है और मैं घर पर हूं. मेरे पास जो सौभाग्य है, वह शायद बहुत कम लोगों को मिला है. सभी चार पीढ़ियों ने मेरे घर का दौरा किया है. सियासी जानकार मानते हैं कि मोदी के इस मार्मिक भाषण का असर सिर्फ बोहरा समुदाय पर ही नहीं बल्कि बाकी मुस्लिमों के प्रगतिशील तबके पर भी पड़ेगा और कह सकते हैं कि इसके जरिये उन्होंने 2024 में अल्पसंख्यक वोट हासिल करने के लिए भी अपनी पिच तैयार का ली है.हालांकि मोटे तौर पर माना जाता है कि देश की कुल मुस्लिम आबादी में 10 प्रतिशत आबादी दाऊदी बोहरा समुदाय की है,जो मुख्य रूप से इन तीन राज्यों में ही बसे हुए हैं.
वैसे बीजेपी की ओर से हमेशा यही दावा किया जाता रहा है कि गुजरात में बोहरा मुस्लिम बीजेपी के साथ हैं और पिछले दो दशक में हुए चुनावों में ये दावा काफी हद तक सही भी साबित हुआ है. लिहाजा,बृहनमुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव में दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रभाव को देखते हुए पीएम मोदी का इस समुदाय के कार्यक्रम में शामिल होना राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. बीएमसी के कई वार्डों में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में हैं. शायद यही वजह है कि उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना ने भी इस साल अपनी रणनीति में इन्हीं मुस्लिम वोटों को अहमियत दी है और इसके नतीजे भी दिखने लगे हैं. उस लिहाज से भी देखें तो इस कार्यक्रम में मोदी की मौजूदगी ने महाराष्ट्र की सियासत को एक नया मोड़ दे दिया है.वोटों के लिहाज से देखा जाये, तो मुसलमान मुंबई में दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है और बताते हैं कि इनका सीधा प्रभाव 50 से अधिक वार्डों पर है. नगर निगम चुनाव में इनका महत्व इसलिए है क्योंकि वार्डों के मतदाताओं की संख्या विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम होती है. ऐसे में वोटों का मामूली अंतर भी जीत-हार में निर्णायक साबित हो सकता है.
साल 2011 की जनगणना के अनुसार मुंबई में मुसलमानों की आबादी 20.65 प्रतिशत थी. मुस्लिम समुदाय का वोट नगर निगम चुनाव में पहले कांग्रेस को मिलता रहा था जो बाद में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और औवेसी की पार्टी में भी बंट गया है. जबकि शिवसेना की छवि हमेशा कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी की रही है, लेकिन 2017 में हुए चुनाव में बीएमसी में चुने गए कुल 31 मुस्लिम नगर सेवकों में से शिवसेना के दो नगर सेवक भी शामिल थे. हालांकि अधिकांश मुस्लिम पार्षद कांग्रेस से ही चुनकर आये थे, लेकिन अब वहां चुनावी समीकरण बदलते हुए दिख रहे हैं. शिवसेना ने अपने हिंदुत्व के रुख़ को व्यापक व उदार बनाने और कांग्रेस-एसीपी के साथ 'महाविकास अघाड़ी' बनाने के बाद मुंबई के मुसलमान मतदाताओं का भी साथ मांगा है. मुंबई की लोकल राजनीति पर नजर रखने वाले कुछ विश्लेषक मानते हैं कि दाऊदी बोहरा समुदाय के मुसलमानों के बीच लगभग दस प्रतिशत वोट हैं. देशभर के मुसलमान, जो 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रति कुछ नरम रुख़ रखते थे, अब उनका कहीं और ध्रुवीकरण हो रहा है. मुंबई नगर निगम के चुनाव में बीजपी को रोकने के लिए मुस्लिम मतदाता हिंदू समर्थक शिवसेना की ओर रुख़ कर सकते हैं. इसलिए, मोदी के इस कार्यक्रम में पहुंचने से यह संदेश गया है कि बीजेपी मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं हैं.
मोटे तौर पर इस समय भारत में बोहरा समुदाय की कुल आबादी लगभग 20 लाख है, जिसमें 12 लाख से ज्यादा दाऊदी बोहरा हैं, तथा शेष आठ लाख में अन्य शाखाओं के बोहरा शामिल हैं. दो मतों में विभाजित होने के बावजूद दाऊदी और सुलेमानी बोहरों के धार्मिक सिद्धांतों में कोई ख़ास बुनियादी फ़र्क़ नहीं है. दोनों समुदाय सूफियों और मज़ारों पर भी ख़ास आस्था रखते हैं. बता दें कि पिछले महीने हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी मोदी ने पार्टी नेताओं से बोहरा समुदाय और आर्थिक रुप से पिछड़े समझे जाने वाले पसमांदा मुसलमानों के बीच जाकर काम करने की सलाह दी थी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)