बतौर अध्यक्ष भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी 20 के 18वें शिखर सम्मेलन का आयोजन करने को बिल्कुल तैयार है. जी 20 का ये समिट 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होना है. ये वो वक्त होगा, जब अमेरिका, कनाडा, जापान, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस समेत दुनिया के तमाम विकसित देशों के राष्ट्र प्रमुख या कार्यकारी प्रमुख एक साथ भारत की धरती पर होंगे.


भारत के लिए ये एक ऐतिहासिक मौका होगा. नवंबर 2008 से जी 20 समूह के सालाना शिखर सम्मेलन की शुरुआत हुई है. इसका पहला समिट अमेरिका में 14-15 नवंबर 2008 में हुआ था. इसके 15 साल बाद भारत पहली बार जी 20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा. जी 20 समूह की सबसे बड़ी बैठक सालाना शिखर सम्मेलन ही है. इंडोनेशिया के बाली में हुए 17वें शिखर सम्मेलन में 16 नवंबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी 20 की अध्यक्षता सौंपी गई थी. अध्यक्षता सौंपे जाने के बाद, भारत की साल भर चलने वाली जी 20 अध्यक्षता 1 दिसंबर, 2022 को शुरू हुई. भारत इस साल 30 नवंबर तक जी 20 का अध्यक्ष है.


अफ्रीकन यूनियन को मिले G20 की सदस्यता


इस समूह का अध्यक्ष बनने के बाद भारत ने वैश्विक मामलों पर दुनिया भर के तमाम विकसित देशों को एकजुट करने और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए पिछले 8 महीने से कड़ी मेहनत की है. भारत चाहता है कि यूरोपीय संघ की तरह अफ्रीकन यूनियन भी जी 20 का स्थायी सदस्य बने. अगर ऐसा हुआ तो बतौर जी 20 अध्यक्ष भारत की ये सबसे बड़ी उपलब्धि होगी.


पीएम मोदी के प्रस्ताव पर सकारात्मक रुख


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये प्रस्ताव दिया था कि अफ्रीकन यूनियन को इस समूह का सदस्य बनाया जाए. पिछले कुछ दिनों के राय मशविरा के बाद पीएम मोदी के इस प्रस्ताव पर सदस्य देशों की ओर से उत्साहित करने वाला सकारात्मक रुख देखने को मिल रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव पर सदस्य देशों के रुख के बारे में खुद भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत ने जानकारी दी है. उनका कहना है कि प्रस्ताव पर अभूतपूर्व प्रतिक्रिया मिली है.



अफ्रीकन यूनियन को सदस्यता मिलने की संभावना बढ़ी


जिस तरह से सदस्य देश भारत के इस प्रस्ताव पर सकारात्मक रुख दिखा रहे हैं, उससे भारतीय अध्यक्षता में ही अफ्रीकन यूनियन को जी 20 में स्थायी सदस्यता मिलने की संभावना बढ़ गई है. अगर ऐसा हुआ तो ये कूटनीतिक कारणों से भारत के लिए काफी मायने वाला कदम साबित होगा.


भारत लंबे वक्त से कहते आ रहा है कि वैश्विक स्तर पर चाहे आर्थिक नीति हो या फिर फूड चेन से जुड़ा मसला हो..या कार्बन उत्सर्जन और क्लीन एनर्जी से जुड़े मुद्दा हो.. हर मामले में आर्थिक तौर से कमजोर और अल्प विकसित देशों की भी आवाज सुनी जानी चाहिए. जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, भारत ने तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस पक्ष को और भी मजबूती से रखा है.


ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरा है भारत


यही वजह है कि पिछले साल जी 20 समूह की अध्यक्षता संभालने के साथ ही भारत ने पूरी दुनिया को स्पष्ट संदेश दे दिया था. उस वक्त पीएम मोदी ने कहा था कि भारत दुनिया में एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा. उन्होंने ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का मंत्र देते हुए ये स्पष्ट कर दिया था कि वैश्विक मसलों पर अब ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज और उनके हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती है.


ग्लोबल साउथ की आवाज़ और गरीब-अल्पविकसित देशों के हितों को प्राथमिकता देना दुनिया के अमीर देशों  की न सिर्फ जिम्मेदारी है, बल्कि ये वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के नजरिए से भी जरूरी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हमेशा ही इस बात के हिमायती रहे हैं. जी 20 में अफ्रीकन यूनियन की स्थायी सदस्यता से जुड़े पीएम मोदी के प्रस्ताव से भी इसकी झलक मिलती है.


G20 के महत्व को देखते हुए प्रस्ताव


दरअसल G20 दुनिया का सबसे ताकतवर आर्थिक समूह है. यह यूरोपीय संघ और दुनिया की 19 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. यह समूह अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर वैश्विक सोच को आकार देने और मजबूत बनाने का काम करता है. वैश्विक जीडीपी में जी 20 का हिस्सा करीब 85% है. इस समूह का वैश्विक व्यापार में योगदान 75 फीसदी से भी ज्यादा है. मानव संसाधन के नजरिए से भी ये काफी महत्वपूर्ण है. इस समूह के सदस्य देशों में विश्व की कुल आबादी का 67% हिस्सा रहता है. हम कह सकते हैं कि यही सारे देश वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करते हैं. पिछले कुछ सालों से जी 20 समूह दुनिया के सबसे विकसित 7 देशों के समूह जी 7 से भी ज्यादा महत्व वाला हो गया है.


अफ्रीका महाद्वीप की भागीदारी न के बराबर


इतने महत्वपूर्ण समूह में अगर महाद्वीप के नजरिए से सोचें तो इसमें अफ्रीका महाद्वीप की भागीदारी न के बराबर है. अफ्रीका महाद्वीप से सिर्फ़ दक्षिण अफ्रीका ही इसका स्थायी सदस्य है. बाकी महाद्वीपों की बात करें तो जी 20 में उत्तर अमेरिका से कनाडा, मेक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका तीन देश हैं.  दक्षिण अमेरिका  अर्जेंटीना और ब्राज़ील दो देश हैं.  पूर्व एशिया से तीन देश चीन, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं. दक्षिण एशिया से भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया से इंडोनेशिया शामिल हैं. वहीं मध्य-पूर्व एशिया से सऊदी अरब शामिल हैं. यूरेशिया से रूस और तुर्की के अलावा यूरोप से फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूनाइटेड किंगडम इसके सदस्य हैं. ओशियानिया से ऑस्ट्रेलिया जी 20 का सदस्य है. इनके अलावा यूरोपीय संघ के सदस्य होने से यूरोप के ज्यादातर देशों की सहभागिता भी इस समूह में सुनिश्चित हो जाती है.


आबादी और एरिया में अफ्रीका दूसरा बड़ा महाद्वीप


सहभागिता के नजरिए से सोचें तो अफ्रीकन देशों की भूमिका इसमें नगण्य हो जाती है. जबकि आबादी और एरिया के हिसाब से एशिया के बाद अफ्रीका दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है. धरती के लैंड एरिया का 20 फीसदी हिस्सा इसके दायरे में है और दुनिया की करीब 18 फीसदी आबादी भी यहीं रहती है. दुनिया की सबसे युवा आबादी इसी महाद्वीप में है.


प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे गरीब महाद्वीप


अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, इसके बावजूद प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे गरीब महाद्वीप है. अफ्रीका में कुल 54 तरह से मान्यता प्राप्त देश हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया के लिए अफ्रीका कितना बड़ा और महत्वपूर्ण हैं. इन देशों को जो समूह है, उसे ही अफ्रीकन यूनियन  कहते हैं. हालांकि इसमें 55 सदस्य देश हैं. 1963 में बना ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी (OAU) ही 2002 में अफ्रीकन यूनियन बनता है.


अल्प विकसित देशों की बढ़े भागीदारी


अफ्रीकन यूनियन की आबादी, एरिया और देशों की संख्या को देखते हुए जी 20 में अफ्रीकी देशों का प्रतिनिधित्व गौण है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि इसके मद्देनजर अफ्रीकन यूनियन को भारत की अध्यक्षता में ही जी 20 की स्थायी सदस्यता मिल जाए. इस मकसद से पीएम मोदी ने जून में ही सदस्य देशों को पत्र भेज दिया था. इसमें भारत में सितंबर में होने वाले आगामी शिखर सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन  को जी 20 की पूर्ण सदस्यता देने का प्रस्ताव रखा गया था.


पीएम मोदी के प्रस्ताव को व्यापक समर्थन


सदस्य देशों की ओर से इस प्रस्ताव पर भारतीय आशा के अनुरूप ही प्रतिक्रिया आई. इसी वजह से जब  13 से 16 जुलाई तक कर्नाटक के हम्पी में जी 20 शेरपाओं की तीसरी बैठक हुई तो उसमें अफ्रीकन यूनियन को स्थायी सदस्य बनाने के प्रस्ताव को नेताओं की घोषणा के मसौदे में औपचारिक रूप से शामिल किया गया. ये दिखाता है कि पीएम मोदी के प्रस्ताव को लेकर समूह में व्यापक समर्थन है. 


भारतीय पहल से दुनिया को जाएगा संदेश


अगर ऐसा हो गया तो पूरी दुनिया में ये संदेश जाएगा कि जी 20 की अध्यक्षता का लक्ष्य भारत के लिए अफ्रीकी देशों समेत ग्लोबल साउथ के तमाम गरीब देशों को फायदा पहुंचाना है. इस साल जनवरी में हुए 'वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ' में 125 देशों के सामने भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि आने वाले वक्त में वो ग्लोबल साउथ के देशों की आवाज को जी 20 समूह में शामिल करने का और प्रयास करेगा. अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने का भारत का जो प्रस्ताव है, वो उसी कमिटमेंट का हिस्सा है. जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है, ऐसा लगता है कि भारत बतौर अध्यक्ष इस मसले पर जी 20 के सदस्य देशों को अपनी बात समझाने में कामयाब रहा है. यही कारण है कि पीएम मोदी के प्रस्ताव के आधार पर भारत की अध्यक्षता के दौरान ही अफ्रीकन यूनियन  को जी 20 में शामिल कर लिया जाएगा, इसकी पूरी संभावना है.


सितंबर से पहले बनानी होगी पूर्ण सहमति


हालांकि जी 20 का स्थायी सदस्य बनने के लिए मौजूदा हर स्थायी सदस्य की सहमति चाहिए और अगर किसी एक भी सदस्य ने आपत्ति जता दी तो फिर अफ्रीकन यूनियन के लिए फिलहाल जी 20 के रास्ते बंद हो जाएंगे. भारत को बतौर अध्यक्ष अगले डेढ़ महीने में इस चुनौती को भी साधना है. ये इसलिए भी जरूरी है कि शिखर सम्मेलन में हर सदस्य देश भारत के इस प्रस्ताव पर एक सुर में समर्थन करे.


'भारत सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचता'


भारत का हमेशा से मानना रहा है कि दुनिया के शीर्ष ताकतों को सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए. आर्थिक रूप से संपन्न देशों को छोटे-छोटे देशों के हितों का भी उतना ही ख्याल रखना चाहिए. जिस तरह से अफ्रीकन यूनियन को जी 20 का सदस्य बनाने के लिए भारत प्रयास कर रहा है, उससे दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियां भी अब स्वीकर करने लगी हैं कि वैश्विक चिंता के प्रमुख मुद्दों पर दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता भारत में है.


ग्लोबल साउथ के दु:ख-दर्द को समझने वाला देश


अगर ऐसा हो गया तो ये भी संदेश जाएगा भारत विकसित देशों से तो मजबूत रिश्ते रखता ही है, विकासशील और गरीब देशों के हितों को भी अच्छी तरह से समझता है. भारत अपने ग्लोबल साउथ के सभी दोस्तों के दु:ख-दर्द को समझते हुए उनकी मदद के लिए हमेशा आगे रहता है. भारत का मानना रहा है कि छोटे-छोटे गरीब और अल्पविकसित देशों की बातें अक्सर अनसुनी कर दी जाती हैं.


सामरिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण पहल


भारतीय प्रयासों से अगर अफ्रीकन यूनियन जल्द ही जी 20 का स्थायी सदस्य बन जाता है, तो अफ्रीका में भारत के सामरिक और व्यापारिक हितों के हिसाब से भी ये महत्वपूर्ण है. चीन लगातार अफ्रीकी देशों में निवेश बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. अफ्रीका में भरपूर प्राकृतिक संसाधन तो है ही, इसके अलावा युवा आबादी भी एक बड़ी ताकत है. अफ्रीका एक बड़ा बाजार भी है.


भौगोलिक नजरिए से भी अफ्रीका की स्थित इंडो पैसिफिक रीजन के साथ ही अटलांटिक ओशन में भी एक तरह से जियो पॉलिटिकल एडवांटेज है. चीन इंडो पैसिफिक रीजन में विस्तारवादी और आक्रामक रुख अपनाकर लगातार बैलेंस ऑफ पावर अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटा है. इंडियन ओशन की ओर आने वाले अफ्रीकी देशों की स्थिति सामरिक बढ़त के लिहाज से बहुत ही क्रिटिकल है. चीन अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए इन देशों में निवेश बढ़ा रहा है. चीन का छोटे-छोटे देशों में निवेश बढ़ाना उसके सैन्य प्रभुत्व बढ़ाने के नापाक मंसूबों से जुड़ा होता है. ऐसा हम हिंद और प्रशांत महासागर के कई देशों में देख चुके हैं.


अफ्रीकी देशों का भरोसा और होगा मजबूत


अब अगर भारत की अध्यक्षता में अफ्रीकन यूनियन को जी 20 की सदस्यता मिल जाती है तो अफ्रीकी देशों का भारत पर भरोसा और भी मजबूत होगा. इससे द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसके जरिए अफ्रीकी देशों के साथ भारत का संबंध उस ऊंचाई तक पहुंच सकता है, जिसकी मदद से भारत के लिए चीन के खतरनाक इरादों की भी काट खोजने में मदद मिल सकती है.


भारत के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने से ये भी संदेश जाएगा कि भारत एक ऐसा देश जो गरीब देशों के लिए न सिर्फ आवाज़ बनता है, बल्कि उनके हितों के लिए आर्थिक और सैन्य तौर से दुनिया के ताकतवर मुल्कों को समझाने का भी माद्दा रखता है. ग्लोबल साउथ को लेकर भारत की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है. भारत सिर्फ चुनिंदा देशों को लेकर चलने वाला नहीं है. उसके लिए पूरी मानवता महत्वपूर्ण है.


गरीब देशों की उम्मीदों को लगेंगे पंख


अफ्रीकन यूनियन के जी 20 में शामिल होने से अफ्रीकी देशों का तो भारत पर भरोसा बढ़ेगा ही, इसके साथ ही लैटिन अमेरिकी देशों, कैरेबियाई देशों, एशिया के गरीब देशों के साथ ही कई छोटे-छोटे द्वीपीय देशों के लिए भारत का महत्व और भरोसा और भी बढ़ जाएगा. भारत के इस पहल की सफलता से दुनिया के सौ से ज्यादा देशों की उम्मीदों को पंख लगने लगेंगे. उनमें विश्वास जागेगा कि भले ही उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी बातों को पुरजोर तरीके से रखने के भारत जैसा एक भरोसेमंद और मजबूत देश मौजूद है.


अफ्रीकन यूनियन को सदस्य बनाए जाने की भारतीय पहल की सफलता से ये भी सुनिश्चित हो जाएगा कि G20 की प्राथमिकताओं को तय करने में भविष्य में गरीब और अल्प विकसित देशों की राय और हितों को भी उतना ही महत्व मिलेगा.


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