करीब दो साल से दिल्ली और कश्मीर की वादियों के बीच बढ़ गई दूरी को ख़त्म करने की चाहत जताकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज यह भी साबित कर दिया कि वे कुशल वक्ता होने के साथ ही अच्छे श्रोता भी हैं. पहले जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग विचारधारा रखने वाले 14 नेताओं के मन की बात सुनना और फिर किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचने से पहले अपनी बातों के जरिये बैठक के माहौल को मार्मिक बनाकर एक तरह से मोदी सरकार ने सहमति बनाने की पहल में शुरुआती कामयाबी हासिल कर ली है. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लेने के बाद से जो सियासी बर्फ जमी हुई थी, कह सकते हैं कि उसने इस सर्वदलीय बैठक के बाद से पिघलना शुरू कर दिया है.
दरअसल, आज हुई बैठक में जम्मू के बीजेपी नेताओं और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद को अगर छोड़ दें, तो बाकी कोई भी नेता ऐसा नहीं था जो पीएम मोदी के राजनीतिक व्यक्तित्व के अलावा उनके मनोविज्ञानी व्यक्तित्व को भी नजदीक से जानता हो. चूंकि घाटी के अधिकांश नेताओं ने मोदी के प्रति यह धारणा बनाई हुई है कि वे जिद्दी स्वभाव के हैं और विपक्षी नेताओं की बातों को तवज्जो नहीं देते हैं, सो वे उसी धारणा के साथ इसमें शरीक हुए. लेकिन बैठक में आकर उनकी यह सोच काफी हद तक गलत साबित हुई.
मोदी ने सबको अपने मन का गुबार निकालने दिया लेकिन वे इस जटिल मुद्दे की नब्ज जानते थे कि भले ही इन नेताओं के सुर अलग-अलग हों लेकिन उनकी मूल चाहत क्या है. वह यही है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले और वहां जल्दी चुनाव हों. सो मोदी ने इन दोनों मसलों पर जिस ईमानदारी के साथ आश्वासन दिया, उस पर इन नेताओं को भरोसा न करने की कोई वजह ही नहीं नज़र आई.
पहले संघ के प्रचारक और फिर बीजेपी के पदाधिकारी के रूप में मोदी का जम्मू-कश्मीर से गहरा नाता रहा है और उस दौर में कश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था. दोनों क्षेत्रों की सामाजिक, आर्थिक परेशानियों को उन्होंने नजदीक से देखा-समझा है. इसीलिये आज उन्होंने अपने उसी अनुभव का इस्तेमाल करते हुए इन नेताओं से कहा कि "घाटी के युवाओं की सुरक्षा करना सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों का भी दायित्व है."
इसके जरिये उनका इशारा यही था कि केंद्र सरकार तो उनके लिए रोजगार के और भी नए अवसर पैदा करने को तैयार है, लेकिन उन्हें भटकने से रोकने की जिम्मेदारी तो स्थानीय नेताओं को भी लेनी चाहिए. सरकार उन्हें रोजगार उपलब्ध भी करवा दे, लेकिन फिर भी वे सीमापार से आने वाले आतंकवादियों के खैरख्वाह व मददगार बने रहें, तो यह कैसे संभव है. कई मर्तबा जो काम बंदूक नहीं कर पाती, वो काम किसी की कही भावुक बात कर जाती है. शायद यही वजह थी कि पीएम को आज यह कहना पड़ा कि "जम्मू-कश्मीर का हर नागरिक मेरे परिवार का हिस्सा है और घाटी में अगर एक भी बच्चा मारा जाता है, तो मुझे यहां बैठकर भी दर्द होता है."
देश का हर नागरिक कश्मीर की वादियों में पहले की तरह ही बेख़ौफ होकर आजादी से घूम सके, वैसा कश्मीर बनाने के लिए पीएम मोदी ने आज दिमाग की जगह दिल को और सियासत की बजाय मुहब्बत को ज्यादा महत्व दिया.
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