मोदी जन्मदिन: अफ्रीकी चीतों के तोहफ़े से आख़िर क्यों बेचारे बन गए दो सौ चीतल?
दुनिया के किसी दार्शनिक ने कहा था कि "एक राष्ट्र की महानता और उसकी नैतिक प्रगति को उसके जानवरों के साथ होने वाले बर्ताव से ठीक किया जा सकता है." हम भी नहीं जानते कि उनकी बातों को कितने देश अमल में लाए होंगे लेकिन आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 72 वें जन्मदिन पर देश को कुछ ऐसी सौगात देकर ये संदेश देकर अहसास दिलाना चाहते हैं कि उनकी सरकार सिर्फ़ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि बेजुबान जानवरों के प्रति भी उतनी ही संवेदनशील है.
दक्षिण अफ्रीका के नामीबिया से 16 घंटे में 8 हजार वायु किलोमीटर का भूखा सफर तय करके मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क पहुंचने वाले ये 8 चीते सुबह 11 बजे के आसपास पीएम के हाथ में रखे रिमोट का बटन ऑन होते ही जब वे पिंजरों से बाहर निकलेंगे तब उसका नज़ारा कैद करने के लिए दुनिया का सबसे चर्चित डिस्कवरी चैनल भी उसे कैद करने की हैसियत में नहीं होगा. चूंकि उन चीतों ने इतने घंटों का लंबा सफर खाली पेट ही तय किया है इसलिये पिंजरे से बाहर निकलते ही उन्हें अपना भोजन चाहिये जो वे खुद शिकार करके ही जुटाते हैं.
ये चीते अपनी भूख के चलते आदमखोर न बन जाएं इसके लिए राजगढ़ के जंगल से 181 चीतल खासतौर पर श्योपुर भेजे गए हैं. बता दें कि मध्य प्रदेश के श्योपुर में ही कूनो नेशनल पार्क है जहां आज इन चीतों को छुट्टा छोड़ दिया जायेगा. बेशक चीता भारत में गायब हो चुका था और इस लुप्त होती प्रजाति को बढ़ावा देने के लिये मोदी सरकार की इस पहल को हर तरफ से सराहना भी मिल रही है. लेकिन संघ में सनातन प्रकृति को पूरी आस्था से मानने वाला एक वर्ग ऐसा भी है जो किसी भी तरह से न तो मांसाहार पर विश्वास रखता है और न ही इस पर यकीन रखता है कि कुछ बड़े जानवरों को जिंदा रखने के लिए अनगिनत छोटे पशुओं की जिंदा बलि दे दी जाये.
उनका मानना है कि प्राचीन शास्त्रों के हिसाब से भी इसे पुण्य नहीं बल्कि पाप की श्रेणी में रखा जाता है और हम अपेक्षा करते हैं कि संघ की शाखाओं में जाने वाला कोई भी स्वयंसेवक ऐसे पाप का हिस्सेदार कदापि नहीं बनेगा. हम भी नहीं जानते कि संघ की इस सार्वभौमिक सोच को दरकिनार करके ये फैसला क्यों लिया गया. लेकिन सच तो ये है कि प्रदेश के राजगढ़ जिले में एक बड़ा चिड़ीखो अभ्यारण है जहां चीतल और हिरण की संख्या बहुत है. यही कारण है कि अफ्रीका से आने वाले चीतों की भूख मिटाने के लिए राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ चिड़ीखो वन अभ्यारण से 181 चीतल भेजे गए है. जबकि यहां से 200 चीतल की भेजने की डिमांड की गई थी.
आपको बता दें कि कूनो नेशनल पार्क के बाद चीतों का अगला पड़ाव गांधी सागर अभ्यारण रहेगा. गांधी सागर अभ्यारण्य के लिए राजगढ़ से 500 चीतल भेजे गए हैं. राजगढ़ जिले के वन्य क्षेत्र में कुछ दिन पहले हिरण चीतल की धमा चौकड़ी देखने को मिलती थी. अचानक इतनी बड़ी संख्या में चीतल बाहर भेजे जाने से अब वहां पहुंचने वाले पर्यटक चीतल की उस धमाचौकड़ी देखने से मोहताज़ हो चुके हैं.
हालांकि ये भी सही है कि चीता जंगल में रहने वाला सबसे तेज धावक और अहम पशु है जो पिछले कुछ दशकों में भारत से पूरी तरह से गायब हो गया और हो सकता है कि वन्य जीवों के तस्करों ने ही उसके शरीर के हर हिस्से को बेचकर इस करतूत को अंजाम दिया हो. उस प्रलुप्त होती जाति को फिर से जिंदा रखने की पीएम मोदी की इस पहल को कोई भी गलत नहीं बता रहा है.
अधिकांश लोग ये मानते हैं कि पीएम मोदी की नीति भी ठीक है और नीयत भी लेकिन उनकी बड़ी चिंता ये है कि इसके लिए जन्मदिन का पवित्र अवसर ठीक नहीं है. इसलिये कि हम ऐसे अवसरों पर तोतों, कबूतरों या फिर उसी तरह के पक्षियों को पिंजरे से आज़ाद करके उन्हें खुला आसमान देते हैं. शायद इसीलिए उनके ही मातृ संगठन से एक सवाल ये भी उठ रहा है कि अपने जन्म-दिवस के पावन अवसर पर बड़े व ताकतवर जानवरों की भूख मिटाने के लिए छोटे व बेचारे पशुओं को उनके आगे मरने के लिए छोड़ देने की आख़िर ऐसी क्या मजबूरी थी?
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