उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर हों और वहां की सियासत में औरंगज़ेब की एंट्री न हो, ये भला कैसे संभव हो सकता है. काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज जो भाषण दिया है, उसके सिर्फ धार्मिक या सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि गहरे सियासी मायने भी हैं. इतिहास के पन्नों का जिक्र करते हुए उन्होंने मुगल आक्रमणकारी औरंगज़ेब का जिक्र किया, तो उनसे मुकाबला करने वाले मराठा शासक छत्रपति शिवाजी को याद करके इशारों में ही ये संदेश भी दे दिया कि चुनावों से पहले हिंदुओं के एकजुट होने का वक़्त आ गया है.


वैसे विश्वनाथ धाम परिसर के उद्घाटन समारोह को यूपी की बीजेपी सरकार ने जिस तरह का मेगा इवेंट बनाया है, उसकी बानगी इससे ही मिलती है कि चुनावी मौसम में पहली बार इतने सारे बीजेपी नेता एक जगह पर इकट्ठे हुए. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर राज्य के तमाम सांसदों और बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को खासतौर पर इसमें आमंत्रित किया गया.


दरअसल, पिछले कुछ दिनों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में हुई अखिलेश यादव की रैलियों में जुटी भीड़ देखकर पार्टी नेतृत्व सहित खुद पीएम मोदी को भी ये अहसास होने लगा था कि अब सिर्फ सरकार के विकास कार्यों के भरोसे ही चुनाव नहीं जीता जा सकता. इसके लिए ध्रुवीकरण करने की जरूरत है और इसके लिए विश्वनाथ धाम परिसर के समारोह से बेहतर मंच व अवसर कोई दूसरा नहीं हो सकता. शायद यही वजह थी कि परिसर में चल रहे कुछ निर्माण-कार्यों के बीच ही ताबड़तोड़ तरीके से इसके लोकार्पण की तैयारी की गई क्योंकि अगले कुछ दिनों में ही चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही आचार संहिता लागू हो जाएगी.


प्रधानमंत्री मोदी ने तकरीबन पौने घंटे के अपने भाषण में इतिहास के पांच नामों का ज़िक्र करके जिस हिन्दू एकता पर जोर दिया है, उसके पूर्वांचल की राजनीति में बीजेपी के लिए खास मायने हैं. इसीलिये उन्होंने पूर्वांचल के राजा सुहेलदेव का उल्लेख खासतौर पर करके एक साथ कई निशाने साधे हैं. उन्होंने पौराणिक कथाओं-मान्यताओं व सनातन संस्कृति को रेखांकित करते हुए इतिहास के जिन पन्नों का जिक्र किया है, उसका यूपी चुनाव में खास सियासी मकसद है और बीजेपी अबे इसे हिन्दू बनाम अन्य की दिशा की तरफ ले जाती दिख रही है. यानी ये चुनाव हिंदुत्व के नाम और मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा और आने वाले दिनों में बाकी सब कुछ हाशिये पर जाता दिखेगा.


काशी की प्राचीन संस्कृति व इतिहास का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि" समय कभी एक जैसा नहीं रहता है. कई बार आततायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किया और इसे ध्वस्त करने की कोशिशें की. औरंगजेब का अत्याचार और उसके आतंक का इतिहास साक्षी है जिसने तलवार के बल पर हमारी सभ्यता को बदलने और संस्कृति को कुचलने की कोशिश की लेकिन इस मिट्टी की बात ही कुछ और है.


यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं. अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारे एकता की ताकत का एहसास करा देते हैं. अंग्रेजों के दौर में वारेन हेस्टिंग्स का यहां के लोगों ने क्या हाल किया ये पूरी दुनिया को पता है. वारेन हेस्टिंग्स से जुड़ी कई कहावतें आज भी चर्चित है कि कैसे काशी के लोगों ने उसे भागने पर मजबूर कर दिया. लेकिन आज समय का चक्र देखिए कि आतंक का वो पर्याय इतिहास के काले पन्नों तक सिमट कर रह गया है. मेरी काशी आगे बढ़ रही है और अपने गौरव को फिर से भव्यता दे रही है.'


हालांकि पीएम मोदी के इस भाषण को राजनीतिक विश्लेषक चुनाव में फायदा उठाने के सियासी मकसद से ही जोड़कर देखते हैं. वे मानते हैं कि प्रधानमंत्री ने इन सभी नामों के जरिए दो बड़े संदेश दिये हैं. पहला यह कि 'एकता में शक्ति' है लेकिन उससे भी बड़ा संदेश है कि वह 'हिंदुओं की एकता' है. क्योंकि मोदी ने औरंगजेब और सालार मसूद जैसे आक्रांताओं के खिलाफ एकता की ताकत का जिक्र किया है. ये सभी जानते हैं कि औरंगजेब और सालार मसूद ने किस तरह हिंदुओं पर अत्याचार किया और मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदें खड़ी कर दी. लिहाज़ा, ऐसे में उनका जिक्र करके मोदी का इशारा हिंदू एकता और मजबूत करने की तरफ ही था.


हालांकि राजा सुहेलदेव के जरिए उन्होंने पूर्वांचल पर सियासी निशाना साधा है. मोदी ने अपने भाषण में राजा सुहेलदेव के नाम का जिक्र करके पूर्वांवल के राजभर वोटर्स को साधने की कोशिश की. राजा सुहेलदेव के नाम पर ही ओम प्रकाश राजभर ने क्षेत्रीय पार्टी बनाई है. वे पिछले चुनाव में बीजेपी के साथ थे लेकिन अब उन्होंने सपा से गठबंधन कर लिया है.


ऐसा माना जाता है कि राजभर समुदाय के लोगों में ओम प्रकाश राजभर की अच्छी पकड़ मानी जाती है और बीजेपी को आशंका है कि वो पूर्वांचल में कुछ हद तक उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं. यूपी के सियासी गलियारों में ये चर्चा आम है कि हाल ही में ओम प्रकाश राजभर एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी के साथ सालार महमूद की मजार पर चादर चढ़ाने गए थे जिसके बाद वे विवादों में भी घिर गए. ऐसे चुनावी माहौल में मोदी ने राजा सुहेलदेव की वीरता और आक्रांता सालार मसूद के अत्याचारों के जिक्र करके एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है.


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