BLOG: पीएनबी बैंक घोटाला: क्या जैफरसन की आशंका भारत में सच साबित होगी?
यूएसए के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जैफरसन ने किसी जमाने में कहा था- “मेरा मानना है कि बैंकिंग संस्थाएं हमारी नागरिक स्वतंत्रताओं के लिए स्थायी फौज से भी ज्यादा खतरनाक हैं. अगर अमेरिकी जनता ने बैंकों को अपनी मुद्रा पर नियंत्रण दिया तो कभी मुद्रा-स्फीति तो कभी मुद्रा-संकुचन द्वारा बैंक और उनके बनाए कॉरपोरेट जनता को उसकी सारी संपत्ति से वंचित कर देंगे.”
उपर्युक्त कथन आज भारत पर सटीक बैठता नजर आता है. कभी खबर आती है कि ललित मोदी आईपीएल घोटाला करके उड़नछू हो गया, उद्योगपति विजय माल्या हजारों करोड़ रुपए लेकर भारत से चंपत हो गया, तो कभी अफवाह उड़ती है कि ग्राहकों का पैसा बैंक जमा तो कर लेंगे लेकिन उसे निकालने की सीमा खुद बैंक तय करेंगे. ताजा समाचार है कि रोटोमैक पेन बनाने वाला व्यवसायी विक्रम कोठारी बैंकों को अरबों का चूना लगाकर निकल लिया! आज भी अगर बैकों के बड़े लेन-देन की पारदर्शी जांच हो जाए तो पता नहीं कितने घोटालेबाज भागने की फिराक में बैठे नजर आएंगे और जाहिर होगा कि पहले वाले भागे नहीं बल्कि उन्हें भगा दिया गया!
आजकल सरकारी स्वामित्व वाले पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में दिनदहाड़े कथित 11,360 करोड़ रुपए का नीरव मोदी घोटाला सामने आने से चहुं ओर हड़कंप मचा हुआ है. बैंकिंग सेक्टर के कुछ विशेषज्ञ इसे 60,000 करोड़ से भी ज्यादा का घोटाला बता रहे हैं! बीते सात सालों से जारी इस घोटाले में पीएनबी के अलावा इलाहाबाद बैंक, एसबीआई, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक और एक्सिस बैंक की ओवरसीज शाखाओं और कर्मचारियों की संलिप्तता भी सामने आ रही है. ये लोग खरबपति आभूषण व्यापारी नीरव मोदी की छद्म कंपनियों के अवैध लेटर ऑफ अंडरटेकिंग्स के आधार पर फर्जी तरीके से भुगतान करवा देते थे.
ज्यादातर लोग विभिन्न बैंकों में अपनी मेहनत की कमाई ब्याज के लोभ में नहीं बल्कि इस उम्मीद में रखते हैं कि जरूरत पड़ने पर उनका पूरा पैसा सुरक्षित मिल जाएगा. लेकिन अब ग्राहकों को बैंकों द्वारा अमानत में खयानत किए जाने का डर सता रहा है. नोटबंदी का घाव अभी हरा ही है जब लोग अपने बेटे-बेटियों की शादी के लिए अपना ही पैसा बैंकों से नहीं निकाल पाए थे. अब इस नए घोटाले ने लोगों को फिर असुरक्षा के सागर में डुबो दिया है कि पता नहीं उनके पैसे बैंक ही के पास हैं या कोई नटवरलाल ले उड़ा!
हालत यह है कि जनता की पूंजी पर धीरे-धीरे नियंत्रण करके बैंकों ने हमारी पूरी अर्थव्यवस्था पर ही कब्जा कर लिया है और बड़े-बड़े पूंजीपतियों के साथ मिलकर वे हमारे पैसों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. इसमें सरकारें समान रूप से उनका सहयोग करती हैं. कुछ न पैदा करने वाले बैंक-मालिकों और घोटाले में मददगार बनने वाले प्रबंधकों का बाल तक बांका नहीं होने दिया जाता और फिर कोई नया घोटाला सामने आ जाता है.
पिछले 25-30 सालों के दौरान भारतीय बैंकों के अंदर लाखों करोड़ रुपए के फ्रॉड को अंजाम दिया जा चुका है. इस चक्कर में कई बैंक दिवालिया हो गए, कइयों का विलय हो गया लेकिन अरबों का कर्ज डुबोने वाले बड़े आसामी कुबेर बने बैठे हैं. उनकी सम्पत्तियां और उद्योग-धंधे भारतभूमि पर ही स्थित हैं लेकिन है किसी सरकार में हिम्मत कि नीलामी करके जनता का पैसा वसूल कर सके! उल्टे बैंक प्रणाली के संकट का सारा बोझ ग्राहकों पर डाल दिया गया है. छोटी-छोटी बैंकिंग सेवाओं तक के नाम पर बात-बात पर औने-पौने शुल्क वसूले जा रहे हैं.
इतना ही नहीं, हमारा सिस्टम इतना अनैतिक हो चुका है कि जिन जिम्मेदार लोगों पर भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के आरोप लगे होते हैं उन्हें शीर्ष ईनाम-इकराम से नवाजा जाता है. दिलचस्प बात यह है कि जिस पंजाब नेशनल बैंक में इतना बड़ा घपला हुआ, उसी बैंक को भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को मान्यता देने हेतु 206-17 का 'विजिलेंस एक्सीलेंस अवॉर्ड' मिल चुका है! विडंबना देखिए कि जब देश के दूसरे सबसे बड़े सरकारी बैंक में बैंकिंग इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला पनप रहा था, उसी वक्त उसे सम्मानित किया जा रहा था! इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक और इस घोटाले के व्हिसिल ब्लोअर दिनेश दुबे का दावा है कि बोर्ड की बैठक में गीतांजलि जेम्स को लोन देने का एजेंडा शामिल करने को नीति-नियमविरुद्ध बताने पर उन्हें इस्तीफा देने हेतु मजबूर किया गया. घर की बात घर में ही रखने की नसीहत दी गई. इससे घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों के लिए क्या संदेश जाता है?
ललित मोदी और विजय माल्या की ही तरह पीएनबी घोटाले का मास्टरमाइंड नीरव मोदी जांच एजेंसियों की पकड़ से बाहर है. फिलहाल उसके खिलाफ सीबीआई जांच 2017-18 के बीच हुए लेनदेन तक ही सीमित है. अगर जांच 2011 से शुरू हो, तो घोटाले की रकम 11,360 करोड़ रुपए से कई गुना ज्यादा हो सकती है. समूची बैंकिंग प्रणाली के लिए यह ‘टिप ऑफ द आइसबर्ग’ भी साबित हो सकती है.
पिछला इतिहास बताता है कि यूपीए और एनडीए सरकारें इसी बात में मुब्तिला रहती हैं कि मेरे घोटाले से उजला तेरा घोटाला क्यों? इस बार भी भाजपाई और कांग्रेसी टीमें एक-दूसरे पर पिली पड़ी हैं. हालांकि घोटाले के मास्टरमाइंड मामा-भांजा की जोड़ी मेहुल चौकसी और नीरव मोदी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई और आयकर विभाग के बाद अब सीवीसी ने भी कार्रवाई शुरू कर दी है. ईडी ने 5,600 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त करने का दावा किया है. पीएनबी ने अपने जूनियर और मिडिल स्तर के 18 लापरवाह अधिकारियों को निलंबित भी कर दिया है. लेकिन क्या भरोसा है कि यह जांच भी महज आंख में धूल झोंकने की एक कार्रवाई बन कर ही नहीं रह जाएगी?
क्या केंद्रीय वित्त-मंत्रालय नीरव मोदी का लोन मंजूर करने वाले शीर्ष अधिकारियों की मिलीभगत और बोर्ड-प्रबंधन के दबाव की जांच करा रहा है? क्या बैंक की आंतरिक ऑडिट रपट तैयार करने वाले उच्चाधिकारियों के कान उमेठे जा रहे हैं, जिनके सामने सब कुछ आईने की तरह स्पष्ट था? बता दें कि मेहुल चौकसी के ‘गीतांजलि जेम्स’ के लोन प्रपोजल ने वर्ष 2013 में ही बोर्ड की बैठकों में हलचल मचा दी थी लेकिन जिम्मेदार लोग कान में तेल डालकर बैठे रहे! पीएनबी के बाद अब तार जुड़ने से दूसरे बैंकों में भी हाहाकार मचा हुआ है. समूची बैंकिंग प्रणाली में लगा बदबूदार घुन अब जनता के सिर पर बरस रहा है. भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जैफरसन की आशंका भारत में सच साबित होने जा रही है!
क्या गरीबों, किसानों, मजदूरों, नौकरीपेशा व्यक्तियों और मध्य-वर्ग की जेब से पैसा छीनकर बैंकों के माध्यम से पूंजीपतियों की झोली भरने वाले राजनीतिक दलों से अब भी कोई उम्मीद की जानी चाहिए?
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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)