उत्तर प्रदेश में माफिया की कमर तोड़ने को लेकर योगी सरकार की ओर से पिछले 5-6 सालों से जिस तरह का अभियान चालाया जा रहा था, उमेश पाल की हत्या की घटना एक तरह से उस नीति को चुनौती थी. सूबे की सरकार माफिया के खत्म होने की बात कर रही है, तो अपराधी लोग ये जताना चाह रहे हैं कि हमारा तंत्र अभी भी बचा है.


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर जवाब देते हुए कहा था कि  'मिट्टी में मिला दूंगा इस माफिया तंत्र को'. ये उनका बड़ा स्पष्ट संदेश है कि डर आम लोगों के मन में नहीं बल्कि माफिया, गुंडों और बदमाशों के मन में होना चाहिए. कानून का राज स्थापित होना चाहिए. कानून से डरना अच्छी बात है, लेकिन माफिया और गुंडों से डरना बुरी बात है.


48-72 घंटों के अंदर जो एक्शन हुआ है वो कानून की राज की स्थापना की ओर इंगित करता है. इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि सरकार की इस तरह के ऑर्गेनाइज्ड क्राइम के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी है. जिस तरह से कार्रवाई हुई है, इससे यह साफ है कि अगर ऑर्गेनाइज्ड क्राइम से जुड़े हुए लोग इस तरह की हरकत करते हैं तो वे इसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहें. 


अतीक अहमद का जो पूरा इकोसिस्टम है उस पर सरकार का, सुरक्षा एजेंसियों का हमला है. अब ईडी की भी जांच शुरू हो गई है. चूंकि अतीक के खिलाफ 2021 में एक मनी लॉन्ड्रिंग का केस भी दर्ज हुआ था. उसके दो बेटे गिरफ्तार हुए हैं. दो जेल में भी बंद हैं और एक फरार चल रहा है. पूरे परिवार को यह बात समझ में आ गई है कि उनसे गलती हो गई है. उसने जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया उससे एक बात बड़ी स्पष्ट हो गई की वो सरकार और पुलिस की धैर्य को चुनौती दे रहे थे और इस सरकार की जो माफिया विरोधी नीति है उसको भी चैलेंज कर रहे थे. अब सरकार ने उसका जवाब दिया है.


जो दशकों से माफिया है, उसको आप इतनी आसानी से और इतने कम समय में खत्म नहीं कर सकते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने ऑर्गेनाइज्ड क्राइम की रीढ़ तोड़ दी है. उनका जो पूरा आर्थिक साम्राज्य था उसको तोड़ कर रख दिया है. इतने बड़े पैमाने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करना, उनकी संपत्तियों की जब्ती- नीलामी के साथ उनकी अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर चला कर उसे नष्ट करना इस तरह की कार्रवाई उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुई थी. ऑर्गेनाइज्ड माफिया के खिलाफ इस तरह अभियान पहले कभी नहीं चला.


दुनिया में कहीं भी अपराध हमेशा के लिए कभी खत्म नहीं होता. सरकार की परीक्षा ये होती है कि अपराध होने के बाद वो क्या करती है. वो एक तरह से डिटरेंट का काम करता है और ये दूसरे अपराधियों के लिए संदेश होता है कि अगर ऐसा करोगे तो उसका नतीजा यही होगा. इसीलिए आपने देखा कि पिछले पांच-छह सालों में 100-200 मामले सामने आए, जिसमें अपराधी अपने गले में तख्ती लगाकर थाने पहुंचे कि मुझे गिरफ्तार कर लीजिए. कई अभियुक्तों ने अपनी जमानत रद्द करा दी और उसके बाद थाने में सरेंडर कर दिया. ये कानून के राज का डर है और अगर कानून का डर होगा तो आम आदमी सुरक्षित होगा और अगर गुंडे का डर होगा तो आम आदमी असुरक्षित महसूस करेगा.


इसका मतलब एक संदेश देने की कोशिश है कि माफिया संभल कर चलें. ये सरकार माफिया से जुड़े किसी व्यक्ति को माफ करने के लिए तैयार नहीं है और विकास दुबे के एनकाउंटर में जो गाड़ी पलटी थी उसका इस्तेमाल एक मेटाफर के रूप में किया जा रहा कि अगर ऐसा करोगे तो गाड़ी पलट भी सकती है. मतलब जरूरी नहीं की गाड़ी ही पलटे. मतलब ये कि आपके खिलाफ उसी तरह का एक्शन हो सकता है. सरकार ये मैसेज दे रही है कि हम इस तरह की हरकत बर्दाश्त नहीं करते हैं. हम इस तरह के अपराध को बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम इस तरह के अपराध को हर संभव दबाने का, कुचलने का प्रयास करेंगे.


कई लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि इस तरह से कैसे किसी का बुल्डोजर से घर गिरा देंगे. सरकार को ये बात अच्छे से मालूम है. ये सरकार कानून के मुताबिक कार्रवाई कर रही है. गौर करने वाली बात है कि इतने मामले हुए, कहीं से किसी कोर्ट का कोई एडवर्स रिएक्शन नहीं आया, कोई फैसला नहीं आया क्योंकि इनकी संपत्ति जो बनी है वो ज्यादातर अवैध कब्जा करके बनाई गई हैं. बिना नक्शा पास कराए बनाई गई हैं. इसलिए सरकार के लिए एक्शन लेना आसान होता है. उस पर कोई कानूनी सवाल भी नहीं उठा सकता है कि आपने ऐसी कार्रवाई क्यों की. उसको गिराने का पर्याप्त कानूनी आधार है.


मुझे तो इसमें कहीं कोई राजनीतिक रंजिश का मामला नजर नहीं आता क्योंकि अतीक अहमद की जो राजनीतिक विरासत है वो कई साल पहले ही खत्म हो चुकी है. उसके जेल में रहने से उसकी कोई राजनीतिक हैसियत है नहीं. लेकिन ये समझा जा रहा था की उसका जो इकोसिस्टम है, उसके जो साथी हैं वो इस तरह की हरकत नहीं करेंगे. उन्होंने सरकार को टेस्ट करने की कोशिश की कि अगर हम ऐसा करेंगे तो देखते हैं कि क्या होता है. तो अब जो हो रहा वो सब लोग देख रहे हैं. एक्शन पूरी तरह से होगा. जितना उनका तंत्र है और जिस तरह से ये सभी जुड़े हुए हैं, जो इनका समर्थन करते हैं और इन्हें संरक्षण देते हैं, उन सबके खिलाफ एक्शन होने वाला है. ये मैसेज है उन लोगों के लिए जो ऐसे तत्वों को सहारा देते हैं, उनकी दूसरी तरह से मदद करते हैं तो ये मामला उन्हीं तक सीमित नहीं रहेगा. जो भी ऐसा करेंगे, वे घेरे में आएंगे.


उमेश पाल गवाह था या नहीं था ये तो मुद्दा ही नहीं है क्योंकि अगर वो था भी तो उसकी हत्या तो नहीं की जा सकती है. मान लीजिए वो गवाह नहीं था, तो क्या उसकी हत्या कर दी जाएगी. ये तो कोई जस्टिफिकेशन नहीं हो सकता. वो मुद्दा मेरी नजर में गौण है. सवाल ये है कि एक व्यक्ति की जिसका कोई अपराध नहीं है, उसकी हत्या की गई. एक व्यक्ति जो कानून की मदद करने की कोशिश कर रहा था उसकी हत्या की गई है.   


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)