महाकुंभ, जो हर 12 साल में आयोजित होता है, सनातन धर्म का एक बेहद महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और धार्मिक आयोजन है. यह आयोजन लाखों श्रद्धालुओं को एकत्रित करता है, जो पवित्र नदियों में स्नान करके आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन जीने का आयोजन करते हैं, ईश्वर से अपने पुण्यों को जाग्रत करने की प्रार्थना करते हैं और अपने इहलौकिक-पारलौकिक जीवन को त्याग मोक्ष हेतु ध्यान और धारणा का प्रण करते हैं. महाकुंभ का मुख्य और एकमात्र उद्देश्य धार्मिक और आध्यात्मिक होता है, और इसे राजनीति से दूर रखना चाहिए. अफसोस, इस बार के महाकुंभ को भी राजनीतिक दलों ने अपनी क्षुद्र राजनीति की प्रयोगशाला बना डाला है और इसमें सभी राजनीतिक दल शामिल हैं. 


महाकुंभ है ध्यान, समाधि और मोक्ष की कामना के लिए


राजनीति का महाकुंभ पर प्रभाव डालना न केवल इसके धार्मिक महत्व को कम करता है, बल्कि श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास को भी ठेस पहुंचाता है. राजनीतिक दलों को इस आयोजन का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए नहीं करना चाहिए. इसके बजाय, उन्हें इस आयोजन को सफल बनाने के लिए सहयोग करना चाहिए और श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए. दुखद बात यह है कि महाकुंभ को भी राजनीतिक लाभ और हानि का अखाड़ा बना दिया गया है और इसमें कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं छूट रहा है. सबसे पहले तो मौलाना बरेलवी ने कुंभ के आयोजन का स्वाद खट्टा करने की शुरुआत की जब उन्होंने यह बेतुका दावा कर दिया कि कुंभ जिस जमीन पर हो रहा है, उसकी 54 बीघा जमीन वक्फ की है. यह बात मौलाना शहाबुद्धीन बरेलवी को भी अच्छे से पता होनी चाहिए कि कुंभ का आयोजन उससे बहुत पहले से हो रहा है, जब इस्लाम भारत पहुंचा भी नहीं था, फिर इसके वक्फ की जमीन होने की बात विशुद्ध राजनीतिक थी और एक मौलाना, जो मुस्लिमों का मजहबी मार्गदर्शक होता है, उसे तो कम से कम इससे बहुत दूर रहना चाहिए था. यहां तक कि चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा-वृत्तांत में कुंभ का जिक्र किया है, जो राजा हर्षवर्द्धन के काल में भारत आया था और हर्षवर्द्धन का शासन काल 606 ईस्वी से 647 ईस्वी का है. ह्वेसांग 623 ईस्वी में भारत आया था. 


राजनीति दे बस सुरक्षा और शांति


महाकुंभ को राजनीति की काली छाया से मुक्त रखना ही चाहिए. राजनीतिक दल और नेता अधिक से अधिक कुंभ के स्वच्छ, सुरक्षित आयोजन में अपना योगदान दें न कि अपनी तुच्छ राजनीति का इसे अखाड़ा बनाएं. यह आयोजन हमें हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है और एकजुट करता है. इसलिए, हमें इसे एक पवित्र और धार्मिक आयोजन के रूप में ही मनाना चाहिए और इसे राजनीति से दूर रखना चाहिए. मौलाना बरेलवी की बात से हुआ विवाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जवाब देने के बाद बंद हुआ, जबकि इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी. योगी आदित्यनाथ को भी मुख्यमंत्री के तौर पर केवल कुंभ की सुरक्षा और संवर्द्धन पर ध्यान देना चाहिए, न कि विवादित बयानों में पड़ना चाहिए. इससे पहले 2019 में जब अर्द्धकुंभ का आयोजन था, तो राजनीति या कहें प्रचार की भूख से तत्कालीन उत्तर प्रदेश शासन ने उसको जबरन कुंभ की तरह पेश किया था, जबकि छह वर्ष पर कोई कुंभ नहीं होता है. 


वैसे भी देश में इस वक्त न जाने कितने मजहबी मामले अपना सिर उठा रहे हैं, उस वक्त सनातनियों के इस सबसे बड़े आयोजन पर बेवजह की बयानबाजी का कोई मतलब नहीं बनता है. बरेलवी अभी चुप हुए ही थे कि आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर ने बेवजह का वितंडा फिर खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि कुंभ में तो पापी अपने पाप धोने जाते हैं. यह बेहद निचले स्तर का बयान है और चंद्रशेखर यह भूल जाते हैं कि वह जिस समाज से आते हैं या जिस समाज का नुमाइंदा होने का दावा करते हैं, उस समाज से सबसे अधिक लोग ऐसे आयोजनों में शामिल होते हैं, कुंभ में भी आते हैं. इस तरह के बयान बहुसंख्यक हिंदू समाज को बेहद दुखी करते हैं, लेकिन शायद नेताओं के लिए बहुसंख्यक समाज की भावनाओं की कद्र नहीं है, यह देखकर तो ऐसा ही लगता है. 


महाकुंभ में मुलायम की मूर्ति


तमाम विवादों के बीच आज से कुंभ शुरू हुआ है, लेकिन विवादों की ताबूत को समाजवादी पार्टी ने फिर से खोल दिया है. महाकुंभ, जो एक महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है, को राजनीति से दूर रखना चाहिए, यह सामान्य समझ शायद सपा के लीडरान को नहीं है. इसीलिए, उन्होंने अपने संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मूर्ति ही इस धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन में लगा दी. मुलायम स्मृति का टेंट लगाने के बहाने मुलायम की मूर्ति का महाकुंभ में लगाना एक विवादास्पद मुद्दा है, क्योंकि यह आयोजन धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व का है, न कि राजनीतिक. मुलायम सिंह यादव एक प्रमुख राजनीतिक नेता थे, और यही उनकी प्राप्ति है. वह कोई धार्मिक गुरु या महात्मा नहीं थे, इसलिए उनकी मूर्ति का महाकुंभ में लगाना इस आयोजन के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को कम कर सकता है.  यह श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास को ठेस पहुंचा सकता है, जो इस आयोजन में भाग लेने आते हैं. महाकुंभ का मुख्य उद्देश्य धार्मिक और आध्यात्मिक होता है, और इसे राजनीति से दूर रखना चाहिए. मुलायम सिंह यादव वैसे भी कई तरह के विवादों से घिरे हुए हैं. उन पर मुसलमानों के तुष्टीकरण के लिए 1990 में कारसेवकों पर अंधाधुंध गोली चलवाने का आरोप है, तो परिवारवाद के भी वह पुरोधा माने जाते हैं. कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं और घोटालों के भी उन पर आरोप हैं, सैफई से लेकर मैनपुरी तक कई तरह के आयोजन भी विवादित रहे हैं. ऐसे में उनकी मूर्ति लगाना जान-बूझकर हिंदू बहुसंख्यकों की भावना को आहत करने की चेष्टा के तौर पर ही देखी जाएगी. 


इस प्रकार के विवादास्पद मुद्दों से बचने के लिए, महाकुंभ को केवल धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन के रूप में ही मनाना चाहिए. राजनीतिक हस्तियों की मूर्तियों का इस आयोजन में कोई स्थान नहीं होना चाहिए. इससे न केवल महाकुंभ का धार्मिक महत्व बना रहेगा, बल्कि श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास भी मजबूत होगा.


यात्रीगण ध्यान दें, महाकुंभ को न बनाएं पिकनिक-स्पॉट


एक बात और गौर करने की है कि इस तेज तकनीकी युग में रील और वीडियो बनाने की चाहत भी बढ़ी है. उस चक्कर में कई बार साधुओं-संन्यासियों से ऐसे अजीब सवाल भी पूछे जा रहे हैं, जिस पर क्रोधित होकर वह पूछने वाले को चिमटे से मार भी बैठते हैं (ऐसे कई वीडियोज वायरल हैं). इस महाकुंभ में नागा साधु भी हैं, दशनामी भी, किन्नर अखाड़ा भी है और तमाम तरह के सनातनी पंथ और संप्रदाय भी मौजूद हैं. तो, अगर आपके पास सनातन पर श्रद्धा है, आस्था है, तो ही इस कुंभ में जाएं और कुछ भी करने या बोलने से पहले सोचें जरूर. आप सनातन की विविधता को देखें, उसकी उत्सवधर्मिता को एकसार करें, उसकी समृद्ध अनेकानेक परंपराओं और विरासतों को देख कर चकित-आश्चर्यित हों, श्रद्धा और आस्था से कुंभ का हिस्सा बनें और अगर आपमें यह नहीं है, तो दूर से देखें, 40 करोड़ (अनुमानित) सनातनी श्रद्धालुओं और महाकुंभ को उनके हाल पर ही छोड़ दें. आखिर, किसी डॉक्टर ने तो कहा नहीं है कि प्रयागराज जाना ही है, लेकिन वहां जाकर और कोई उल्टी हरकत करना ठीक नहीं कहा जाएगा. 


खासकर, राजनीतिक दल तो बिल्कुल ही अपनी राजनीति को इस आयोजन से दूर रखें. यही शुभेच्छा हम सब की होनी चाहिए.  



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